कबीर साँई सेती चोरियाँ चोराँ सेती गुझ मीनिंग Kabir Sai Seti Choriya Meaning Kabir Dohe, Kabir Ke Dohe (Saakhi) Hindi Arth/Hindi Meaning Sahit (कबीर दास जी के दोहे सरल हिंदी मीनिंग/अर्थ में )
कबीर साँई सेती चोरियाँ, चोराँ सेती गुझ।जाँणैगा रे जीवड़ा, मार पड़ैगी तुझ॥
Kabir Saai Seti Choriya, Chora Seti Gujh,
Janega Re Jeevada, Maar Padegi Tujh.
Kabir Saai Seti Choriya, Chora Seti Gujh,
Janega Re Jeevada, Maar Padegi Tujh.
कबीर साँई सेती चोरियाँ : इश्वर के समक्ष तुम चोरी करते हो.
चोराँ सेती गुझ : चोरों से गुप्त सम्बन्ध रखते हो.
जाँणैगा रे जीवड़ा : तुम्हे उस समय पता चलेगा.
मार पड़ैगी तुझ : जब तुमको मार पड़ेगी.
साँई : इश्वर.
सेती : समक्ष, इश्वर के सामने.
चोरियाँ : चोरी करते हो.
चोराँ सेती: चोरों से.
गुझ : दोस्ती, सबंध रखना.
जाँणैगा : तुम जानोगे.
रे जीवड़ा : तुम जानोगे.
मार : दंड.
पड़ैगी : पड़ेगी.
तुझ : तुमको.
चोराँ सेती गुझ : चोरों से गुप्त सम्बन्ध रखते हो.
जाँणैगा रे जीवड़ा : तुम्हे उस समय पता चलेगा.
मार पड़ैगी तुझ : जब तुमको मार पड़ेगी.
साँई : इश्वर.
सेती : समक्ष, इश्वर के सामने.
चोरियाँ : चोरी करते हो.
चोराँ सेती: चोरों से.
गुझ : दोस्ती, सबंध रखना.
जाँणैगा : तुम जानोगे.
रे जीवड़ा : तुम जानोगे.
मार : दंड.
पड़ैगी : पड़ेगी.
तुझ : तुमको.
कबीर साहेब की वाणी है की तुम इश्वर से चोरी करते हो, और चोरों से सम्बन्ध रखते हो. ऐसे में कबीर साहेब जीवात्मा को आगाह करते हुए कहते हैं की जीव तुम तब जानोगे
जब तुमको मार खानी पड़ेगी. भाव है की इश्वर के दरबार में व्यक्ति के कर्मों का हिसाब देना होता है. यदि जीव के कर्म अच्छे ना हों तो अवश्य ही उसे दण्डित होना पड़ेगा.
पांच तरह के विकारों को कबीर साहेब ने चोर कहा है जो व्यक्ति को भ्रमित करने में लगे रहते हैं. इनके संपर्क में आकर जीवात्मा अपने जिवन के उद्देश्य को विस्मृत कर बैठती है.
अतः इस दोहे का मूल भाव है की हमें विषय विकारों से दूर रहकर सद्मार्ग पर चलते हुए, इश्वर के नाम का सुमिरन करना चाहिए, अन्यथा एक रोज हमें अपने कर्मों के फल की कीमत अदा करनी पड़ेगी.
जब तुमको मार खानी पड़ेगी. भाव है की इश्वर के दरबार में व्यक्ति के कर्मों का हिसाब देना होता है. यदि जीव के कर्म अच्छे ना हों तो अवश्य ही उसे दण्डित होना पड़ेगा.
पांच तरह के विकारों को कबीर साहेब ने चोर कहा है जो व्यक्ति को भ्रमित करने में लगे रहते हैं. इनके संपर्क में आकर जीवात्मा अपने जिवन के उद्देश्य को विस्मृत कर बैठती है.
अतः इस दोहे का मूल भाव है की हमें विषय विकारों से दूर रहकर सद्मार्ग पर चलते हुए, इश्वर के नाम का सुमिरन करना चाहिए, अन्यथा एक रोज हमें अपने कर्मों के फल की कीमत अदा करनी पड़ेगी.
Author - Saroj Jangir
दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं कबीर के दोहों को अर्थ सहित, कबीर भजन, आदि को सांझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें। |