सेष सबूरी बाहिरा क्या हज काबैं जाइ मीनिंग

सेष सबूरी बाहिरा क्या हज काबैं जाइ मीनिंग

सेष सबूरी बाहिरा, क्या हज काबैं जाइ।
जिनकी दिल स्याबति नहीं, तिनकौं कहाँ खुदाइ॥
Sesh Saburi Baahira, Kya Haj Kabe Jaai,
Jinaki Dil Syabit Nahi, Tinko Kaha Khudai.

सेष सबूरी बाहिरा : शेख तुमने सब्र तो नहीं अपनाया है, सब्र से बाहर हो, दूर हो.
क्या हज काबैं जाइ : ऐसे में तुम क्या हज करने के लिए जाते हो.
जिनकी दिल स्याबति नहीं : जिनका दिल पवित्र नहीं है, साबुत नहीं है.
तिनकौं कहाँ खुदाइ : उनका कहाँ कोई इश्वर होता है.
सेष : सेख.
सबूरी सब्र करना, त्याग की प्रवृति.
बाहिरा : बाहर हो, अपनाया नहीं है.
क्या हज : तुम क्या ही हज को जा रहे हो.
काबैं : काबा, मुस्लिमों का पवित्र स्थान.
दिल : हृदय.
स्याबति नहीं : साबुत नहीं है.
तिनकौं : उनका.
कहाँ खुदाइ : इश्वर (ऐसे लोगों का इश्वर नहीं है)
कबीर साहेब की वाणी है की सेख तुम सब्र, त्याग से दूर रहकर कैसे भला इश्वर / खुदा की प्राप्ति कर सकते हो. हज करने से, काबा जाने से तुमको कोई फायदा नहीं होने वाला है क्योंकि तुम्हारे हृदय में प्रेम नहीं है, त्याग का अभाव है. जिनके हृदय में प्रेम का अभाव है, त्याग का अभाव है, ऐसे में शेख भले ही काबा जाए, उसे इश्वर की प्राप्ति नहीं हो सकती है. भक्ति आत्मिक होती है, बाह्य आडम्बर से कोई फायदा नहीं होने वाली है. यदि हृदय में पवित्रता नहीं है तो हज करने से कोई लाभ नहीं होने वाला है.
 
Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं कबीर के दोहों को अर्थ सहित, कबीर भजन, आदि को सांझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें

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