काजल केरी कोठढ़ी तैसा यहु संसार मीनिंग
काजल केरी कोठढ़ी, तैसा यहु संसार।
बलिहारी ता दास की, पैसि रे निकसणहार॥
Kajal Keri Kothadi, Taisa Yahu Sansar,
Balihari Ta Daas Ki, Paisi Re Nikasanhaar.
काजल केरी कोठढ़ी : काजल की कोठडी के समान.
तैसा यहु संसार : यह संसार है.
बलिहारी ता दास की : यह दास तो बलिहारी है.
पैसि रे निकसणहार : भक्त बेदाग़ बाहर निकल आता है.
तैसा यहु संसार : यह संसार है.
बलिहारी ता दास की : यह दास तो बलिहारी है.
पैसि रे निकसणहार : भक्त बेदाग़ बाहर निकल आता है.
कबीर साहेब की वाणी है की यह संसार काजल की कोठरी के समान है. इस संसार में प्रवेश करके साधक/इश्वर भक्त बिना किसी कलंक के बाहर निकल आता है. भाव है की जैसे काजल की कोठरी में व्यक्ति को दाग लग ही जाते हैं, ऐसे ही इस संसार में व्यक्ति आकर माया के प्रभाव से मुक्त नहीं हो पाता है. यदि व्यक्ति इश्वर के नाम का सहारा लेकर चलता है तो वह इस जगत के प्रभाव से अछूता रह सकता है.
कबीर दास जी इस दोहे में संसार की तुलना काजल की कोठरी से करते हैं। जिस प्रकार काजल की कोठरी में जाने वाला कोई भी व्यक्ति बिना दाग लगे बाहर नहीं आ सकता, उसी प्रकार यह संसार भी माया और विकारों से भरा हुआ है। यहाँ आने वाला हर व्यक्ति किसी न किसी रूप में सांसारिक मोह, लोभ और अहंकार के प्रभाव में आ जाता है। लेकिन, कबीर कहते हैं कि मैं उस भक्त पर न्योछावर हूँ जो इस संसार रूपी काजल की कोठरी में प्रवेश करके भी बेदाग बाहर निकल आता है। यह तभी संभव है जब व्यक्ति ईश्वर के नाम का सहारा ले और भक्ति के मार्ग पर चले। सच्चा भक्त वही है जो संसार में रहकर भी संसार से निर्लिप्त रहता है, ठीक वैसे ही जैसे कमल का पत्ता पानी में रहकर भी गीला नहीं होता। यही दोहा हमें सिखाता है कि भक्ति और ईश्वर पर विश्वास ही हमें इस मायावी संसार के दोषों से बचा सकता है।
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Author - Saroj Jangir
दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं कबीर के दोहों को अर्थ सहित, कबीर भजन, आदि को सांझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें। |
