निरबैरी निहकाँमता साँई सेती नेह मीनिंग
निरबैरी निहकाँमता, साँई सेती नेह।
विषिया सूँ न्यारा रहै, संतहि का अँग एह॥
Nirbehi Nihkamta, Sai SEti Neh,
Vishiya Syu Nyara Rahe, Santahi Ka Ang Eh.
निरबैरी निहकाँमता : किसी से बैर भाव नहीं रखना, किसी विषय की कामना नहीं करना.
साँई सेती नेह : इश्वर से प्रेम करना.
विषिया सूँ न्यारा रहै : विषयों से प्रथक रहे.
संतहि का अँग एह : संतजन के यही अंग हैं, लक्षण हैं.
निरबैरी : बैर भाव से परे, किसी के प्रति द्वेष भाव नहीं रखना.
निहकाँमता : कामना रहित, कोई कामना नहीं करना.
साँई : इश्वर.
सेती : से.
नेह : प्रेम.
विषिया : विषयों से, काम क्रोध, मद मोह लोभ माया.
सूँ : से.
न्यारा रहै : प्रथक रहे, अलग रहे.
संतहि का: संतों का, साधुओं का.
अँग : लक्षण, प्रकृति.
एह यही है.
साँई सेती नेह : इश्वर से प्रेम करना.
विषिया सूँ न्यारा रहै : विषयों से प्रथक रहे.
संतहि का अँग एह : संतजन के यही अंग हैं, लक्षण हैं.
निरबैरी : बैर भाव से परे, किसी के प्रति द्वेष भाव नहीं रखना.
निहकाँमता : कामना रहित, कोई कामना नहीं करना.
साँई : इश्वर.
सेती : से.
नेह : प्रेम.
विषिया : विषयों से, काम क्रोध, मद मोह लोभ माया.
सूँ : से.
न्यारा रहै : प्रथक रहे, अलग रहे.
संतहि का: संतों का, साधुओं का.
अँग : लक्षण, प्रकृति.
एह यही है.
कबीर साहेब की वाणी है की संत कैसे होते हैं, संतों के लक्षण कैसे होते हैं ? इस पर कथन है की वे मन में वैर भाव नहीं रखते हैं, समस्त कामनाओं से परे रहते हैं, किसी विषय की कामना नहीं करते हैं. संतजन विषय विकारों से दूर रहते हैं. संत जन सदा ही इश्वर से स्नेह, नेह रखते हैं.
भाव है की संतजन समस्त विषय विकारों से दूर रहते हैं और अपना समस्त ध्यान इश्वर की भक्ति में ही लगाते हैं. वे हर प्रकार के विषय विकारों से दूर रहते हैं और मन में किसी के प्रति द्वेष, वैर भाव को स्थान नहीं देते हैं, यही संतों का अंग है, लक्षण हैं.
कबीर दास जी इस दोहे में सच्चे संत के गुणों का वर्णन करते हैं। वे कहते हैं कि संत का सबसे पहला लक्षण है "निरबैरी निहकाँमता," अर्थात किसी से बैर या दुश्मनी का भाव न रखना और किसी भी सांसारिक वस्तु की कामना न करना। यह निस्वार्थता ही उन्हें सामान्य व्यक्ति से अलग करती है। इसके बाद वे कहते हैं कि संत का सच्चा गुण है "साँई सेती नेह," यानी ईश्वर से गहरा प्रेम करना। यह प्रेम ही उन्हें सभी मोह-माया से दूर रखता है। वे सांसारिक विषयों और विकारों से अलग रहते हैं, जैसा कि दोहे में "विषिया सूँ न्यारा रहै" कहा गया है। इसका अर्थ है कि वे काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार से खुद को दूर रखते हैं।
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Author - Saroj Jangir
दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं कबीर के दोहों को अर्थ सहित, कबीर भजन, आदि को सांझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें। |
