माला पहर्‌याँ कुछ नहीं गाँठि हिरदा की खोइ Mala Paharaya Kuch Nahi Kabir Doha Meaning

माला पहर्‌याँ कुछ नहीं गाँठि हिरदा की खोइ Mala Paharaya Kuch Nahi Kabir Doha Meaning, Kabir Ke Dohe (Saakhi) Hindi Arth/Hindi Meaning Sahit (कबीर दास जी के दोहे सरल हिंदी मीनिंग/अर्थ में )

माला पहर्‌याँ कुछ नहीं, गाँठि हिरदा की खोइ।
हरि चरनूँ चित्त राखिये, तौ अमरापुर होइ॥
Mala paharya Kuch Nahi, Ganthi Hirda Ki Khoi,
Hari Charnu Chitt Rakhiye, To Amarapur Hoi.

माला पहर्‌याँ कुछ नहीं : माला पहनने से कुछ भी नहीं होने वाला है.
गाँठि हिरदा की खोइ : हृदय की गांठें, दूषित गांठों को दूर करना.
हरि चरनूँ चित्त राखिये : हरी के चरणों से चित्त रखिये.
तौ अमरापुर होइ : तो अमरापुर प्राप्त होगा, स्वर्ग की प्राप्ति होगी.
माला : काष्ठ की माला.
पहर्‌याँ: पहनने से.
कुछ नहीं : कुछ भी प्राप्त नहीं होता है.
गाँठि : गाँठ, द्वेत भावना.
हिरदा : हृदय की, चित्त की.
खोइ : दूर करना.
हरि चरनूँ : हरी चरण की.
चित्त राखिये: हृदय में स्थान रखना.
तौ : तो, तब.
अमरापुर : स्वर्ग.
होइ : होगा.

कबीर साहेब की वाणी है की माला धारण करने से कुछ भी नहीं होने वाला है. जब तक हृदय की गांठें दूर नहीं होती है, मन की दुर्भावना दूर नहीं होती है. द्वेत भावना ही मन की गाँठ होती है. भगवान के चरणों में अपना चित्त को लगाओ, तभी स्वर्ग की प्राप्ति होती है. अतः कर्मकांड और बाह्य आचरण से कुछ भी प्राप्त नहीं होगा. भक्ति तभी संभव होगी जब हम आत्मिक रूप से भक्ति को धारण करेंगे.
हृदय में यदि इश्वर के नाम की भावना नहीं है तो अवश्य ही द्वेत की भावना है. इसे हृदय से दूर करना ही जीवात्मा का परम कर्म है.
 
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