मेर नसाँणी मीच की कुसंगति ही काल मीनिंग
मेर नसाँणी मीच की, कुसंगति ही काल।
कबीर कहै रे प्राँणिया, बाँणी ब्रह्म सँभाल॥
Mer Nasani Meech Ki, Kusangati Ki Kaal,
Kabir Kahe Re Praniya, Bani Brahm Sambhal.
मेर नसाँणी मीच की : मोह और ममत्व (मेरा होने का भाव) का भाव ही मृत्यु की निशानी है.कुसंगति ही काल : दुर्जन व्यक्ति की संगती ही काल है.कबीर कहै रे प्राँणिया : कबीर प्राणियों को कहता है की.बाँणी ब्रह्म सँभाल : बानी के माध्यम से ब्रह्म (इश्वर) को संभाल.मेर : ममत्व भाव, मेरा, अपना. नसाँणी : निशानी.मीच की : मृत्यु की.कुसंगति ही काल : कुसंगति ही काल है.कबीर कहै रे : कबीर कहते हैं. प्राँणिया: प्राणी.बाँणी : वाणी.ब्रह्म सँभाल : ब्रह्म को संभालो. कबीर साहेब कहते हैं की तेरा मेरा, ममत्व भाव ही मृत्यु की निशानी है. कुसंगति को ही काल समझो. साहेब प्राणियों (जीवात्मा) को सन्देश देते हैं की तुम अपनी वाणी के माध्यम से इश्वर के नाम का सुमिरण करो. अपनी वाणी से इश्वर के नाम का भजन करो, इश्वर को संभालो से आशय है की अनवरत हरी के नाम का सुमिरन करो.
संगती के प्रभाव को समझाते हुए साहेब ने सद्संगती के महत्त्व को अनेकों स्थान पर स्थापित किया है. कुसंगति को मृत्यु / काल के समान बताया है. अतः जीवात्मा को साधुजन की संगती करनी चाहिए. कुसंगति लोहे के समान है जो भव सागर से पार नहीं लग सकती है.
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Author - Saroj Jangir
दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं कबीर के दोहों को अर्थ सहित, कबीर भजन, आदि को सांझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें।
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