पापी पूजा बैसि करि भषै माँस मद दोइ मीनिंग कबीर के दोहे

पापी पूजा बैसि करि भषै माँस मद दोइ मीनिंग Papi Puja Besi Kare Meaning Kabir Dohe, Kabir Ke Dohe (Saakhi) Hindi Arth/Hindi Meaning Sahit (कबीर दास जी के दोहे सरल हिंदी मीनिंग/अर्थ में )

पापी पूजा बैसि करि, भषै माँस मद दोइ।
तिनकी देष्या मुकति नहीं, कोटि नरक फल होइ॥
Papi Puja Besi Kari, Bhakhe Maans Mad Doi,
Tinaki Dekhya Mukati Nahi, Koti Narak Fal Hoi.

पापी पूजा बैसि करि : पापी लोग बैठकर पूजा पाठ करते हैं.
भषै माँस मद दोइ : मांस और मदिरा का भक्षण करते हैं.
तिनकी देष्या मुकति नहीं : उनकी मुक्ति नहीं हो पाती है.
कोटि नरक फल होइ : करोंडो ही नरक के भागी उनको बनना पड़ता है.
बैसि करि : बैठकर.
भषै : भक्षण करते हैं, खाते हैं.
माँस मद : मांस और मदिरा.
दोइ : दोनों.
तिनकी : उनकी
देष्या : देखि नहीं है.
मुकति : मुक्ति
कोटि : करोड़ों.
नरक फल होइ : नरक का भागी होना पड़ता है.
फल : परिणाम.

कबीर साहेब ने शाक्त की तरफ इशारा करके कहा है की जो लोग मांस मदिरा आदि का सेवन करते हैं, ऐसे लोगों को साहेब ने पापी कहा है क्योंकि वे पूजा में बैठकर मांस और मदिरा का सेवन करते हैं. ऐसे लोगों की मुक्ति कभी संभव नहीं हो पाती है. ऐसे व्यक्तिओं को करोड़ों कर्मों का फल को भोगना पड़ता है.
धार्मिक आडम्बर है की एक तरफ तो व्यक्ति पूजा पाठ का ढोंग करता है और दूसरी तरफ वह मांस और मदिरा का सेवन भी करता है. ऐसे व्यक्ति को मुक्ति तो नहीं अपितु करोड़ों पाप कर्मों का भागी बनना पड़ता है.  शाक्त धर्म के अनुयाई भैंसे और बकरे आदि की बलि चढाते हैं और मदिरा का पान करते हैं.
 
Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं कबीर के दोहों को अर्थ सहित, कबीर भजन, आदि को सांझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें

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