खूब खाँड है खिंचडी माहीं पड़ै दुक लूँण मीनिंग Khub Khand Hai Khichadi Meaning Kabir Dohe

खूब खाँड है खिंचडी माहीं पड़ै दुक लूँण मीनिंग Khub Khand Hai Khichadi Meaning Kabir Dohe, Kabir Ke Dohe (Saakhi) Hindi Arth/Hindi Meaning Sahit (कबीर दास जी के दोहे सरल हिंदी मीनिंग/अर्थ में )

खूब खाँड है खिंचडी माहीं पड़ै दुक लूँण।
पेड़ा रोटी खाइ करि, गला कटावै कौंण॥
Khub Khand Hai Khopadi, Mahi Pade Dook Loon,
Peda Roti Khai Kari, Gala Katave Koun.

खूब खाँड है खिंचडी : खिंचडी भी खूब मधुर भोजन है.
माहीं पड़ै दुक लूँण : यदि उसके अन्दर दो तुकडे नमक के हों, अल्प नमक हो.
पेड़ा रोटी खाइ करि : पेडा और रोटी खाकर के.
गला कटावै कौंण : गला कौन कटावे.
खूब : बहुत (अच्छा)
खाँड है: मधुर है, मीठा है.
खिंचडी : खिंचडी, एक तरह का भोजन.
माहीं : के अन्दर.
पड़ै : डला हो.
दुक लूँण : दो टूकड़े नमक के.
पेड़ा रोटी: पेडा और रोटी, विशेष भोजन.
खाइ करि : खाकर के.
गला कटावै : स्वंय की हानि कौन करवाए ?
कौंण : कौन.

कबीर साहेब ने इस साखी में सन्देश दिया है की यदि मन में सब्र है, संतोष है तो इश्वर के द्वारा दिया गया भोजन खीचडी भी बहुत ही अधिक मधुर भोजन प्रतीत होता है. दूसरी तरफ विलासिता पूर्ण भोजन पेडा और रोटी है लेकिन इसे खाने के लिए व्यक्ति को अवश्य ही कुछ अनैतिक करना पड़ता है, अतः पेडा और रोटी के चक्कर में अपने गले को कौन कटवाए. समझदार व्यक्ति तो पेडा और रोटी के लिए अपने गले को कुर्बान नहीं करेगा. भाव है की हमें विलासितापूर्ण संसाधनों को जुटाने के लिए अपने जीवन को व्यर्थ में ही खोना नहीं चाहिए.
अनुचित साधनों से धनार्जन करना उचित नहीं है. हमें सादा जीवन ही जीना चाहिए और इश्वर के नाम का सुमिरन करना चाहिए. व्यर्थ में धन को कमाने के लिए हमें अपने जीवन को सद्कर्म से हटाना नहीं चाहिए.
 

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