सकल बरण एकत्र व्हे सकति पूजि मीनिंग Sakal Baran Ekatra Meaning Kabir Dohe

सकल बरण एकत्र व्हे सकति पूजि मीनिंग Sakal Baran Ekatra Meaning Kabir Dohe, Kabir Ke Dohe (Saakhi) Hindi Arth/Hindi Meaning Sahit (कबीर दास जी के दोहे सरल हिंदी मीनिंग/अर्थ में )

सकल बरण एकत्र व्हे, सकति पूजि मिलि खाँहिं।
हरि दासनि की भ्रांति करि, केवल जमपुरि जाँहिं॥
Sakal Baran Ekatra Hve, Sakati Puji Mili Khahi,
Hari Daasani Ki Bhranti Kari, Keval Japuri Jaahi.

सकल बरण एकत्र व्हे : समस्त लोग एकत्रित होकर
सकति पूजि मिलि खाँहिं : शक्ति की पूजा करते हैं और मिलकर मांस मदिरा का सेवन करते हैं, खाते हैं.  यह धार्मिक चोट ही है की एक तरफ तो व्यक्ति धार्मिक  अनुष्ठान करता है तथा दूसरी तरफ वह जीव हत्या करता है जो की धर्म के विरुद्ध है.
हरि दासनि की भ्रांति करि : हरी भक्ति की भ्रान्ति करके, भ्रम पैदा करके.
केवल जमपुरि जाँहिं : वे केवल यमलोक ही जाते हैं.
सकल : समस्त.
बरण : वर्ण.
एकत्र व्हे : एकत्रित होकर.
सकति : शक्ति.
पूजि : की पूजा करते हैं.
मिलि : मिलकर, सभी.
खाँहिं : खाते हैं.
हरि दासनि : हरी की भक्ति का.
भ्रांति करि : भ्रम उत्पन्न करते हैं.
केवल जमपुरि : यमलोक में ही.
जाँहिं : जाते हैं.

कबीर साहेब की वाणी है की लोग शक्ति पूजा करते हैं, इसके लिए वे तमाम तरह के आडम्बर करते हैं, शक्ति पूजा के नाम पर वे मांस का भक्षण करते हैं.
वे हरी भक्ति का भ्रम पैदा करते हैं और इसके उपरान्त वे अपने कर्मों के फल के रूप में यमपुर में ही जाते हैं. उन्हें मुक्ति नहीं अपितु नरक में स्थान मिलता है. ऐसे लोग भक्ति का भ्रम उत्पन्न करते हैं, ऐसे व्यक्ति भक्ति को कभी प्राप्त नहीं कर पाते हैं क्योंकि वे हृदय से भक्ति नहीं करते हैं.
 

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