राम कहंता जे खिजै कोढ़ी मीनिंग कबीर के दोहे

राम कहंता जे खिजै कोढ़ी मीनिंग Ram Kahata Je Kheeje Meaning Kabir Ke Dohe (Saakhi) Hindi Arth/Hindi Meaning Sahit (कबीर दास जी के दोहे सरल हिंदी मीनिंग/अर्थ में )

राम कहंता जे खिजै, कोढ़ी ह्नै गलि जाँहि।
सूकर होइ करि औतरै, नाक बूड़ंते खाँहि॥
Ram Kahanta Je Khije, Kodhi Hvne Gali Jahi,
Sukar Hoi Kari Outare, Naak Budante Khahi.

राम कहंता जे खिजै : जो राम कहने से असहज महसूस करता है.
कोढ़ी ह्नै गलि जाँहि : कोढ़ी होकर गलकर मरता है.
सूकर होइ करि औतरै : वह सूअर बनता है.
नाक बूड़ंते खाँहि : उसे नाक डुबो कर खाना पड़ता है.
कहंता : कहता है.
जे :जो,
खिजै : असहज होता है.
कोढ़ी : कोढ़ होकर.
ह्नै : होकर.
गलि जाँहि : गल जाता है.
सूकर होइ : सूअर बनता है.
करि औतरै :लोक दूर रहते हैं.
बूड़ंते : घुसा कर, डूबा कर.
खाँहि : खाता है.

कबीर साहेब की वाणी है की जो व्यक्ति इश्वर से दूर रहता है, इश्वर के नाम का सुमिरन नहीं करता है वह अवश्य ही कोढ़ी बनता है और कोढ़ग्रस्त होकर गल जाता है. ऐसा व्यक्ति अगले जन्म में सूअर बनता है जिससे व्यक्ति दूर रहते हैं और उसे नाक डुबो डुबो कर भोजन करना पड़ता है.
भाव है की व्यक्ति को इश्वर के नाम का सुमिरन करना चाहिए. यदि वह इश्वर से विमुख होता है तो अवश्य ही उसे विभिन्न यातनाओं का सामना करना पड़ता है.
 
Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं कबीर के दोहों को अर्थ सहित, कबीर भजन, आदि को सांझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें

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