ग्याँनी मूल गँवाइया आपण भये करंता मीनिंग Gyani Mool Gavaiya Meaning Kabir Ke Dohe

ग्याँनी मूल गँवाइया आपण भये करंता मीनिंग Gyani Mool Gavaiya Meaning Kabir Ke Dohe, Kabir Ke Dohe (Saakhi) Hindi Arth/Hindi Meaning Sahit (कबीर दास जी के दोहे सरल हिंदी मीनिंग/अर्थ में )

ग्याँनी मूल गँवाइया, आपण भये करंता।
ताथै संसारी भला, मन मैं रहे डरंता॥
Gyani Mool Gavaiya, Aapan Bhaye Karanta,
Tathe Sansari Bhala, Man Me Rahe Daranta.

ग्याँनी मूल गँवाइया : ज्ञानी अपने मूल को ही गवां देता है.
आपण भये करंता : वह स्वंय को ही कर्ता समझने लग जाता है.
ताथै संसारी भला : इससे तो अच्छा संसारी ही भला होता
मन मैं रहे डरंता : वह मन ही मन डरता रहता है.
ग्याँनी : जिसने ज्ञान को प्राप्त कर लिया है.
मूल : मूल से आशय मानव जीवन से है.
गँवाइया : गँवा देता है.
आपण : स्वंय ही.
भये : हो जाता है, समझने लग जाता है.
करंता : स्वामी, कर्ता.
ताथै : उससे तो.
संसारी : संसारी व्यक्ति अच्छा होता है.
भला : अच्छा होता है.
मन मैं रहे : मन ही मन में रहता है.
डरंता : डरकर.

कबीर साहेब की वाणी है की जो व्यक्ति ज्ञानी होने का दंभ भरता है वह स्वंय को ही नियामक और कर्ता समझने लग जाता है. वह स्वंय को ही पूर्ण मान कर अहम् के कारण अपने मूल को गवा देता है. मानव जीवन को मूल कहा गया है. व्यक्ति को करोडो जतन के उपरान्त मानव की देह मिलती है लेकिन वह इसके महत्त्व को समझता नहीं है. 
 
ऐसे ज्ञानी से तो अच्छा संसारी व्यक्ति होता है जो डरकर नेक राह पर चलता है.
भाव है की अहम् के होने के कारण ज्ञानी व्यक्ति भी विषय विकारों में पडकर अपने जीवन को समाप्त कर बैठता है. वह इन्द्रियों के वश में आकर उनका भोग करना शुरू कर देता है क्योंकि उसकी शंका समाप्त हो गई है. यदि किताबी ज्ञान प्राप्त कर भी लिया जाए तो भी आचरण की शुद्धता बहुत ही जरुरी होती है.
 
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