यहु मन दीजे तास कौं सुठि सेवग भल सोइ मीनिंग

यहु मन दीजे तास कौं सुठि सेवग भल सोइ मीनिंग

यहु मन दीजे तास कौं, सुठि सेवग भल सोइ।
सिर ऊपरि आरा सहै, तऊ न दूजा होइ॥
Yahu Man Deeje Taas Ko, Suthi Sevag Bhal Soi,
Sir Upari Aara Sahe, Tau Na Duja Hoi.

यहु मन दीजे तास कौं : यह मन उसको दीजिए.
सुठि सेवग भल सोइ : जो इश्वर का सच्चा सेवक हो, भक्त हो.
सिर ऊपरि आरा सहै : सर के ऊपर आरा सहन करता है.
तऊ न दूजा होइ : तब भी उसका कोई दूसरा नहीं होता है.
यहु मन : यह चित्त हृदय.
दीजे : दो.
तास कौं : उसको.
सुठि सेवग भल सोइ : जो सच्चा भक्त हो.
सेवग: सेवक.
भल सोइ : उसी को.
सिर : मस्तक .
ऊपरि : के उपर.
आरा : कटार, तलवार.
सहै : सहन करता है.
तऊ न : तब भी .
दूजा होइ : दुसरे का नहीं होता है.
साधक को अपना चित्त उसी को देना चाहिए जो इश्वर का परम भक्त हो. साधक की भक्ति इतनी शशक्त होनी चाहिए जैसे की सर पर आरा चले तो भी वह किस दुसरे का ना हो, दुसरे का नहीं होए. सच्चा सेवक सर पर आरा (कटारी ) चलने पर भी पथ भ्रष्ट नहीं होता है. अतः साधक को अपनी भक्ति के प्रति दृढ रहना चाहिए. दृष्टांत और रुप्कातिश्योक्ति अलंकार की सफल व्यंजना हुई है.
 
Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं कबीर के दोहों को अर्थ सहित, कबीर भजन, आदि को सांझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें

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