हरी तेरो अजब नीरालो काम भजन
आ री भवानी वास कर,
तो मेरे घट के पट दे खोल,
रसना पर वासा करो,
तो मैया शुद्ध शब्द बोल,
कण कीड़ी मन कुंजरा,
और अनड पंख गज चार,
अजगर पड़ी उजाड़ में,
तो दाता देवणहार।
ओ हरी तेरो अजब नीरालो काम,
अजब नीरालो काम,
सांवरिया तेरो अजब नीरालो काम,
सुख में सिमरन कोई नहीं करता,
दुःख में रटे तमाम,
ओ हरी तेरो अजब नीरालो काम,
सांवरिया तेरो अजब नीरालो काम।
माया धन की बाँध पोटली,
करता गरभ गुमान,
आ माया अंत काम ना आवे,
नही जाणे अज्ञान,
ओ हरी तेरो अजब नीरालो काम,
सांवरिया तेरो अजब नीरालो काम।
मालीक मेरा सब कुछ तेरा,
क्यो भूला इन्सान,
तेरा तुमसे पाकर के नर,
बण बैठा धनवान,
ओ हरी तेरो अजब नीरालो काम,
सांवरिया तेरो अजब नीरालो काम।
नर तन चोला पाकर भोळा,
रटयो नहीं भगवान,
क्या करता क्या कर दे मालीक,
नहीं समझयो तू अज्ञान,
ओ हरी तेरो अजब नीरालो काम,
सांवरिया तेरो अजब नीरालो काम।
इक दिन माटी मे मिल जावे,
हाड माँस और चाम,
झूठी काय झूठी माया,
है सांचो तेरो नाम,
ओ हरी तेरो अजब नीरालो काम,
सांवरिया तेरो अजब नीरालो काम।
तू ही वाहेगुरु तू ही अल्लाह,
तू ही ईश्वर राम,
तू ही वाहेगुरु तू ही अल्लाह,
तू ही ईश्वर राम,
कहे कबीर बुला ले मैं तेरे,
चरणा में करूँ विश्राम,
हरी तेरा अजब निराला का,
मालिक तेरा अजब निराला काम।
ओ हरी तेरो अजब नीरालो काम,
सांवरिया तेरो अजब नीरालो काम।
तो मेरे घट के पट दे खोल,
रसना पर वासा करो,
तो मैया शुद्ध शब्द बोल,
कण कीड़ी मन कुंजरा,
और अनड पंख गज चार,
अजगर पड़ी उजाड़ में,
तो दाता देवणहार।
ओ हरी तेरो अजब नीरालो काम,
अजब नीरालो काम,
सांवरिया तेरो अजब नीरालो काम,
सुख में सिमरन कोई नहीं करता,
दुःख में रटे तमाम,
ओ हरी तेरो अजब नीरालो काम,
सांवरिया तेरो अजब नीरालो काम।
माया धन की बाँध पोटली,
करता गरभ गुमान,
आ माया अंत काम ना आवे,
नही जाणे अज्ञान,
ओ हरी तेरो अजब नीरालो काम,
सांवरिया तेरो अजब नीरालो काम।
मालीक मेरा सब कुछ तेरा,
क्यो भूला इन्सान,
तेरा तुमसे पाकर के नर,
बण बैठा धनवान,
ओ हरी तेरो अजब नीरालो काम,
सांवरिया तेरो अजब नीरालो काम।
नर तन चोला पाकर भोळा,
रटयो नहीं भगवान,
क्या करता क्या कर दे मालीक,
नहीं समझयो तू अज्ञान,
ओ हरी तेरो अजब नीरालो काम,
सांवरिया तेरो अजब नीरालो काम।
इक दिन माटी मे मिल जावे,
हाड माँस और चाम,
झूठी काय झूठी माया,
है सांचो तेरो नाम,
ओ हरी तेरो अजब नीरालो काम,
सांवरिया तेरो अजब नीरालो काम।
तू ही वाहेगुरु तू ही अल्लाह,
तू ही ईश्वर राम,
तू ही वाहेगुरु तू ही अल्लाह,
तू ही ईश्वर राम,
कहे कबीर बुला ले मैं तेरे,
चरणा में करूँ विश्राम,
हरी तेरा अजब निराला का,
मालिक तेरा अजब निराला काम।
ओ हरी तेरो अजब नीरालो काम,
सांवरिया तेरो अजब नीरालो काम।
भजन श्रेणी : कबीर भजन (Read More : Kabir Bhajan)
Hari Tharo Ajab Niralo Kaam · Kabir Rajasthani
Main Kya Jaanu Ram Tera Gorakh Dhanda
℗ Samar Cassette
Released on: 2003-01-01
Composer: Kabir Rajasthani
Lyricist: Kabir Rajasthani
Main Kya Jaanu Ram Tera Gorakh Dhanda
℗ Samar Cassette
Released on: 2003-01-01
Composer: Kabir Rajasthani
Lyricist: Kabir Rajasthani
O Hari Tero Ajab Niraalo Kaam,
Ajab Niraalo Kaam,
Saanvariya Tero Ajab Niraalo Kaam,
Sukh Mein Simaran Koi Nahin Karata,
Duhkh Mein Rate Tamaam,
O Hari Tero Ajab Niraalo Kaam,
Saanvariya Tero Ajab Niraalo Kaam.
माँ भवानी स्वयं उसकी अंतःचेतना में वास करें, ताकि हर शब्द पवित्र हो जाए, हर विचार निर्मल। यह मनुष्य की भीतर की वह प्रार्थना है जो अपने ही विकारों से मुक्ति चाहती है। वह जानता है कि मन की गहराइयों में अनगिनत इच्छाएँ, भ्रम और भय छिपे हैं—कण कीड़ी से लेकर गज समान अहं तक। इसीलिए वह देवी से विनती करता है कि वह उसके घट का पट खोल दें, ताकि भीतर का अंधकार आलोक से भर सके। यह केवल माँ से आशीष माँगना नहीं, बल्कि आत्मा के भीतर स्थित उस दैवी चेतना को जगाने का निवेदन है। सुख के समय भुला देने वाला और दुःख आने पर याद करने वाला मानव, यहाँ अपने स्वार्थ के दर्पण में स्वयं को देखता है। धन, माया, देह—सब कुछ मिथ्या सिद्ध होता है, क्योंकि यह यात्रा अंततः उसी माटी में मिल जाती है जिससे प्रारम्भ हुई थी। जो कुछ भी हम “अपना” समझते हैं, वह उसी परम सत्ता की कृपा मात्र है। वह हर रूप में है—राम भी, अल्लाह भी, वाहेगुरु भी। इस पहचान के बाद मन का भ्रम गल जाता है और साधक शांति से कह उठता है—अब बस उस मालिक के चरणों में ही विश्राम चाहिए।
यह कितनी विडंबना है कि वह हरी, वह साँवरिया, इतना अद्भुत काम करता है कि जब जीवन में सब सुख होता है, तब हम उसे भूल जाते हैं, और जब दुःख आता है तब सारा संसार उसे याद करता है! यह संसार माया और धन की पोटली बाँधकर झूठा गुमान करता है, जबकि यह भूल जाता है कि यह माया अंत समय में किसी काम नहीं आती। यह मनुष्य की सबसे बड़ी भूल है कि वह भूल जाता है कि सब कुछ उस मालिक का ही है, और उसी का दिया हुआ धन पाकर वह स्वयं को धनवान मान बैठता है। अंत में, संत कबीर की वाणी हमें याद दिलाती है कि यह मानव जीवन एक अनमोल चोला है, जिसे पाकर भी हम भगवान का नाम नहीं रटते। यह हाड़-मांस और चमड़ी का शरीर एक दिन मिट्टी में मिल जाएगा, केवल उस प्रभु का नाम ही सच्चा है, जो वाहेगुरु, अल्लाह, और ईश्वर राम के रूप में एक ही है।
यह कितनी विडंबना है कि वह हरी, वह साँवरिया, इतना अद्भुत काम करता है कि जब जीवन में सब सुख होता है, तब हम उसे भूल जाते हैं, और जब दुःख आता है तब सारा संसार उसे याद करता है! यह संसार माया और धन की पोटली बाँधकर झूठा गुमान करता है, जबकि यह भूल जाता है कि यह माया अंत समय में किसी काम नहीं आती। यह मनुष्य की सबसे बड़ी भूल है कि वह भूल जाता है कि सब कुछ उस मालिक का ही है, और उसी का दिया हुआ धन पाकर वह स्वयं को धनवान मान बैठता है। अंत में, संत कबीर की वाणी हमें याद दिलाती है कि यह मानव जीवन एक अनमोल चोला है, जिसे पाकर भी हम भगवान का नाम नहीं रटते। यह हाड़-मांस और चमड़ी का शरीर एक दिन मिट्टी में मिल जाएगा, केवल उस प्रभु का नाम ही सच्चा है, जो वाहेगुरु, अल्लाह, और ईश्वर राम के रूप में एक ही है।
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Author - Saroj Jangir
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