कुण जाणे बाबोजी म्हाने अइयां छोड़ चल्या जासी
कुण जाणे बाबोजी म्हाने अइयां छोड़ चल्या जासी
कुण जाणे बाबोजी म्हानै, अइयाँ छोड़ चल्या ज्यासी
ऐसा संत कोई बिरला ही होवै, बाबोजी याद घणा आसी
बालपने में संत बन गया, ताईं फतेहपुर पूजवायो
भोळानाथजी बड़ा दयालु, बऊधाम थानै संभाळायो
श्री रतिनाथ नाम थे पायो
बऊधाम बनगी काशी
कुण जाणे
थारा परचा थारी चर्चा, सारी दुनिया आज करै
शेखावाटी संत शिरोमणि, सैं के दिल पर राज करै
ॐ शिव गोरक्ष, ॐ शिव गोरक्ष
जग में गुंजतो ही जासी
कुण जाणे
नाथ अनाथ का थे ही साथी, थे ही गुरु पितु मायत हो
भेदभाव थारे दर पे ना देख्यो, थे भग्तां का सहायक हो
कई आया और कई आवैगा
थारे जेसो कोई कद आसी
कुण जाणे
थारी कृपा राखजो बाबा, भग्तां को मंगल होवै
थारी समाधि के दर्शन सै, जीवन म्हारो सफल होवै
अम्बरीष कहवै, मन से पुकारो
बाबोजी नेड़े दिख ज्यासी
कुण जाणे
ऐसा संत कोई बिरला ही होवै, बाबोजी याद घणा आसी
बालपने में संत बन गया, ताईं फतेहपुर पूजवायो
भोळानाथजी बड़ा दयालु, बऊधाम थानै संभाळायो
श्री रतिनाथ नाम थे पायो
बऊधाम बनगी काशी
कुण जाणे
थारा परचा थारी चर्चा, सारी दुनिया आज करै
शेखावाटी संत शिरोमणि, सैं के दिल पर राज करै
ॐ शिव गोरक्ष, ॐ शिव गोरक्ष
जग में गुंजतो ही जासी
कुण जाणे
नाथ अनाथ का थे ही साथी, थे ही गुरु पितु मायत हो
भेदभाव थारे दर पे ना देख्यो, थे भग्तां का सहायक हो
कई आया और कई आवैगा
थारे जेसो कोई कद आसी
कुण जाणे
थारी कृपा राखजो बाबा, भग्तां को मंगल होवै
थारी समाधि के दर्शन सै, जीवन म्हारो सफल होवै
अम्बरीष कहवै, मन से पुकारो
बाबोजी नेड़े दिख ज्यासी
कुण जाणे
KUN JANE BABA JI MANE GULAB NATH JI // कुन जान बाबोजी म्हाने इया छोड़ चला जासी // रतिनाथ जी महाराज
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सतगुरु की महिमा अपरम्पार है, जो शिष्य के जीवन को प्रकाश और शांति से भर देती है। सतगुरु अपनी कृपा से अज्ञान के अंधकार को दूर करके शिष्य के हृदय में ज्ञान का दीप जलाते हैं। उनकी महिमा इतनी विशाल है कि उनके सानिध्य में आते ही शिष्य के मन में श्रद्धा, प्रेम और समर्पण का भाव स्वतः ही उत्पन्न हो जाता है। सतगुरु ही वह मार्गदर्शक हैं, जो शिष्य को जीवन के असली उद्देश्य से परिचित कराते हैं और उसे आत्मिक उन्नति के पथ पर अग्रसर करते हैं। उनकी महिमा से शिष्य के मन की उथल-पुथल शांत हो जाती है और उसके जीवन में सुख, शांति और आनंद का आगमन होता है।
सतगुरु की महिमा का अनुभव शब्दों में व्यक्त करना असंभव है, क्योंकि उनके द्वारा दी गई कृपा और प्रेम की कोई सीमा नहीं है। सतगुरु अपने शिष्य को न केवल ज्ञान देते हैं, बल्कि उसे सच्चे सुख और मोक्ष के मार्ग पर भी ले जाते हैं। उनकी महिमा से शिष्य के पाप-कर्म नष्ट होते हैं और उसके पुण्यों में वृद्धि होती है। सतगुरु के चरणों में समर्पित होकर शिष्य अपने जीवन को सार्थक बना लेता है और आत्मा में परम शांति का अनुभव करता है। सतगुरु की महिमा ही वह अनंत प्रकाश है, जो शिष्य के जीवन को हमेशा के लिए प्रकाशित कर देती है।
सतगुरु की महिमा का अनुभव शब्दों में व्यक्त करना असंभव है, क्योंकि उनके द्वारा दी गई कृपा और प्रेम की कोई सीमा नहीं है। सतगुरु अपने शिष्य को न केवल ज्ञान देते हैं, बल्कि उसे सच्चे सुख और मोक्ष के मार्ग पर भी ले जाते हैं। उनकी महिमा से शिष्य के पाप-कर्म नष्ट होते हैं और उसके पुण्यों में वृद्धि होती है। सतगुरु के चरणों में समर्पित होकर शिष्य अपने जीवन को सार्थक बना लेता है और आत्मा में परम शांति का अनुभव करता है। सतगुरु की महिमा ही वह अनंत प्रकाश है, जो शिष्य के जीवन को हमेशा के लिए प्रकाशित कर देती है।
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Author - Saroj Jangir
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