किस बात की परवाह है गुरुदेव के दर पे
किस बात की परवाह है गुरुदेव के दर पे
किस बात की परवाह है, गुरुदेव के दर पे।
जिसने भी सर झुकाया, श्री गुरुदेव के दर पे।
बस चाह है बलि जाऊं मैं, अरविंद से पद पे।
दुःख दर्द मिट जाते हैं, जब हाथ हो सर पे।
किस बात की...
नचाती खूब माया थी, अविद्या फाँस ले करके।
सताती मोह निद्रा थी, अंधेरी रात बन करके।
तम अंध सब मिटा है, श्री गुरुदेव के दर पे।
किस बात की परवाह है, गुरुदेव के दर पे।
कस्ती डगमगा रही थी, मझधार में मेरी।
सहारा कुछ न दिखता था, टूटी पतवार थी मेरी।
गुरु माझी बनके आये, लाये नाव को तट पे।
किस बात की परवाह है, गुरुदेव के दर पे।
दिवाकर बनके सद्गुरु मिल गये, अंधियार को हरने।
उर में भक्ति की मणिदीप भरे, उजियार को करने।
पहुँचा दिया है कान्त को, श्रीकान्त के दर पे।
किस बात की परवाह है, गुरुदेव के दर पे।
जिसने भी सर झुकाया, श्री गुरुदेव के दर पे।
बस चाह है बलि जाऊं मैं, अरविंद से पद पे।
दुःख दर्द मिट जाते हैं, जब हाथ हो सर पे।
किस बात की...
नचाती खूब माया थी, अविद्या फाँस ले करके।
सताती मोह निद्रा थी, अंधेरी रात बन करके।
तम अंध सब मिटा है, श्री गुरुदेव के दर पे।
किस बात की परवाह है, गुरुदेव के दर पे।
कस्ती डगमगा रही थी, मझधार में मेरी।
सहारा कुछ न दिखता था, टूटी पतवार थी मेरी।
गुरु माझी बनके आये, लाये नाव को तट पे।
किस बात की परवाह है, गुरुदेव के दर पे।
दिवाकर बनके सद्गुरु मिल गये, अंधियार को हरने।
उर में भक्ति की मणिदीप भरे, उजियार को करने।
पहुँचा दिया है कान्त को, श्रीकान्त के दर पे।
किस बात की परवाह है, गुरुदेव के दर पे।
gurubhajan किस बात की परवाह है// रचना : प• पू• श्री श्रीकान्त दास जी महाराज//स्वर:सियाराम जी ।
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भजन रचना : पपू श्री श्रीकान्त दास जी महाराज ।
स्वर : सियाराम जी ।
स्वर : सियाराम जी ।
सतगुरु की महिमा अपरम्पार है, जो शिष्य के जीवन को प्रकाश और शांति से भर देती है। सतगुरु अपनी कृपा से अज्ञान के अंधकार को दूर करके शिष्य के हृदय में ज्ञान का दीप जलाते हैं। उनकी महिमा इतनी विशाल है कि उनके सानिध्य में आते ही शिष्य के मन में श्रद्धा, प्रेम और समर्पण का भाव स्वतः ही उत्पन्न हो जाता है। सतगुरु ही वह मार्गदर्शक हैं, जो शिष्य को जीवन के असली उद्देश्य से परिचित कराते हैं और उसे आत्मिक उन्नति के पथ पर अग्रसर करते हैं। उनकी महिमा से शिष्य के मन की उथल-पुथल शांत हो जाती है और उसके जीवन में सुख, शांति और आनंद का आगमन होता है।
सतगुरु की महिमा का अनुभव शब्दों में व्यक्त करना असंभव है, क्योंकि उनके द्वारा दी गई कृपा और प्रेम की कोई सीमा नहीं है। सतगुरु अपने शिष्य को न केवल ज्ञान देते हैं, बल्कि उसे सच्चे सुख और मोक्ष के मार्ग पर भी ले जाते हैं। उनकी महिमा से शिष्य के पाप-कर्म नष्ट होते हैं और उसके पुण्यों में वृद्धि होती है। सतगुरु के चरणों में समर्पित होकर शिष्य अपने जीवन को सार्थक बना लेता है और आत्मा में परम शांति का अनुभव करता है। सतगुरु की महिमा ही वह अनंत प्रकाश है, जो शिष्य के जीवन को हमेशा के लिए प्रकाशित कर देती है।
सतगुरु की महिमा का अनुभव शब्दों में व्यक्त करना असंभव है, क्योंकि उनके द्वारा दी गई कृपा और प्रेम की कोई सीमा नहीं है। सतगुरु अपने शिष्य को न केवल ज्ञान देते हैं, बल्कि उसे सच्चे सुख और मोक्ष के मार्ग पर भी ले जाते हैं। उनकी महिमा से शिष्य के पाप-कर्म नष्ट होते हैं और उसके पुण्यों में वृद्धि होती है। सतगुरु के चरणों में समर्पित होकर शिष्य अपने जीवन को सार्थक बना लेता है और आत्मा में परम शांति का अनुभव करता है। सतगुरु की महिमा ही वह अनंत प्रकाश है, जो शिष्य के जीवन को हमेशा के लिए प्रकाशित कर देती है।
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Author - Saroj Jangir
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