मेरे साई सावरिया आजा भजन
मेरे साई सावरिया आजा भजन
(मुखड़ा)
तन कफ़नी, सिर साफा साईं,
मोहक रूप सुहाना है,
झोली में तेरी, ऐ बाबा,
सारे जग का खजाना है।
मेरी बिनती है बारंबार,
मेरी सुन ले नाथ पुकार।
हे शिरडी के महाराजा,
मेरे साईं सावरियाँ आजा,
मेरे साईं सावरियाँ आजा।
(अंतरा 1)
मेरा गुरु भी तू, मेरा ज्ञान भी तू,
मेरी भक्ति भी तू, भगवान भी तू।
कण-कण में जिसे महसूस करूँ,
वो करुणा-कृपा-निधान भी तू।
बागबान तू जिसका वो, दुनिया एक बग़ीचा है,
वो फूल कभी ना मुरझाया,
जिस फूल को तूने सींचा है।
मेरी बिनती है बारंबार,
मेरा मुरझाया गुलज़ार,
तू आकर ज़रा महका जा,
मेरे साईं सावरियाँ आजा।
(अंतरा 2)
मेरी आस भी तू, मेरी प्यास भी तू,
मेरी श्रद्धा भी तू, विश्वास भी तू।
पल-पल जिसे खोज ही करूँ,
वो मंज़िल मेरी तलाश भी तू।
सागर है तू दया का साईं,
अमृत सबको पिलाता है,
जो भी शरण में आए प्यासा,
उसकी प्यास बुझाता है।
मेरी बिनती है बारंबार,
लेकर कृपा की धार,
मेरी प्यास ही नाथ बुझा जा,
मेरे साईं सावरियाँ आजा।
(अंतरा 3)
मेरे मन में तू, मेरे तन में तू,
मेरे भजन में तू, मेरे सुमिरन में तू।
जीवन में मेरे बस तू ही तू,
तेरी शरण सदा आश्रय रूप।
शरणागत पर तूने,
हमेशा अपनी कृपा बरसाई है,
बन के खिवैया जीवन नैया,
भव से पार लगाई है।
मेरी बिनती है बारंबार,
मन माझी ले पतवार,
हमें भव से पार लगा जा,
मेरे साईं सावरियाँ आजा।
(पुनरावृत्ति)
मेरी बिनती है बारंबार,
मेरी सुन ले नाथ पुकार।
हे शिरडी के महाराजा,
मेरे साईं सावरियाँ आजा।
तन कफ़नी, सिर साफा साईं,
मोहक रूप सुहाना है,
झोली में तेरी, ऐ बाबा,
सारे जग का खजाना है।
मेरी बिनती है बारंबार,
मेरी सुन ले नाथ पुकार।
हे शिरडी के महाराजा,
मेरे साईं सावरियाँ आजा,
मेरे साईं सावरियाँ आजा।
(अंतरा 1)
मेरा गुरु भी तू, मेरा ज्ञान भी तू,
मेरी भक्ति भी तू, भगवान भी तू।
कण-कण में जिसे महसूस करूँ,
वो करुणा-कृपा-निधान भी तू।
बागबान तू जिसका वो, दुनिया एक बग़ीचा है,
वो फूल कभी ना मुरझाया,
जिस फूल को तूने सींचा है।
मेरी बिनती है बारंबार,
मेरा मुरझाया गुलज़ार,
तू आकर ज़रा महका जा,
मेरे साईं सावरियाँ आजा।
(अंतरा 2)
मेरी आस भी तू, मेरी प्यास भी तू,
मेरी श्रद्धा भी तू, विश्वास भी तू।
पल-पल जिसे खोज ही करूँ,
वो मंज़िल मेरी तलाश भी तू।
सागर है तू दया का साईं,
अमृत सबको पिलाता है,
जो भी शरण में आए प्यासा,
उसकी प्यास बुझाता है।
मेरी बिनती है बारंबार,
लेकर कृपा की धार,
मेरी प्यास ही नाथ बुझा जा,
मेरे साईं सावरियाँ आजा।
(अंतरा 3)
मेरे मन में तू, मेरे तन में तू,
मेरे भजन में तू, मेरे सुमिरन में तू।
जीवन में मेरे बस तू ही तू,
तेरी शरण सदा आश्रय रूप।
शरणागत पर तूने,
हमेशा अपनी कृपा बरसाई है,
बन के खिवैया जीवन नैया,
भव से पार लगाई है।
मेरी बिनती है बारंबार,
मन माझी ले पतवार,
हमें भव से पार लगा जा,
मेरे साईं सावरियाँ आजा।
(पुनरावृत्ति)
मेरी बिनती है बारंबार,
मेरी सुन ले नाथ पुकार।
हे शिरडी के महाराजा,
मेरे साईं सावरियाँ आजा।
मेरे साई सावरिया आजा-Mere Shai Sabariya Aaja-Suresh Wadkar - Latest Sai Bhajan 2020
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Album :मेरे साई सावरिया आजा
Male Singer : Suresh Wadkar
Music : Sanjay Raj Gaurinandan
Graphics : Sushil Yadav
Editor : Radhe NIrwan
Male Singer : Suresh Wadkar
Music : Sanjay Raj Gaurinandan
Graphics : Sushil Yadav
Editor : Radhe NIrwan
प्रभु का वह मोहक स्वरूप, जो सादगी में भी अनंत वैभव लिए हुए है, हर भक्त के हृदय को अपनी ओर खींचता है। उनकी कृपा का खजाना इतना विशाल है कि वह सारी सृष्टि को अपने प्रेम और करुणा से समृद्ध करता है। भक्त की बार-बार की पुकार उस गहरे विश्वास और समर्पण का प्रतीक है, जो प्रभु को न केवल गुरु, ज्ञान, भक्ति और भगवान के रूप में देखता है, बल्कि उन्हें अपने जीवन का हर आधार मानता है। यह वह भक्ति है, जो हर कण में प्रभु की उपस्थिति को महसूस करती है और उनके प्रेम से जीवन के मुरझाए बगीचे को फिर से हरा-भरा कर देती है। उनकी कृपा वह अमृत है, जो भक्त के हृदय को सदा पुष्पित और पवित्र रखती है, और उसे जीवन की हर चुनौती में संबल प्रदान करती है।
प्रभु की शरण में आने वाला भक्त अपनी हर आकांक्षा, प्यास और विश्वास को उनके चरणों में अर्पित कर देता है। वह प्रभु को अपनी मंजिल, अपनी श्रद्धा और अपने जीवन का एकमात्र आधार मानता है। उनकी दया का सागर ऐसा है, जो हर प्यासे को तृप्त करता है और हर शरणागत को भवसागर से पार कराता है। प्रभु का साथ वह पतवार है, जो जीवन की नैया को तूफानों से बचाकर किनारे तक ले जाती है। भक्त का मन, तन और सुमिरन जब प्रभु में लीन हो जाता है, तब वह स्वयं को उनकी कृपा में पूर्णतः समर्पित पाता है, और उसका जीवन उनकी दया की धारा से सदा आलोकित और संनादित रहता है।
प्रभु की शरण में आने वाला भक्त अपनी हर आकांक्षा, प्यास और विश्वास को उनके चरणों में अर्पित कर देता है। वह प्रभु को अपनी मंजिल, अपनी श्रद्धा और अपने जीवन का एकमात्र आधार मानता है। उनकी दया का सागर ऐसा है, जो हर प्यासे को तृप्त करता है और हर शरणागत को भवसागर से पार कराता है। प्रभु का साथ वह पतवार है, जो जीवन की नैया को तूफानों से बचाकर किनारे तक ले जाती है। भक्त का मन, तन और सुमिरन जब प्रभु में लीन हो जाता है, तब वह स्वयं को उनकी कृपा में पूर्णतः समर्पित पाता है, और उसका जीवन उनकी दया की धारा से सदा आलोकित और संनादित रहता है।
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Author - Saroj Jangir
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