जदों याद गुरां जी दी आवे गुरु भजन
जदों याद गुरां जी दी आवे गुरु भजन
प्रीत की रीत न समझे जो
वो प्रीत निभाना क्या जाने।
जिस दिल ने चोट न खाई हो
वो नीर बहाना क्या जाने।
जब याद गुरुओं की आवे, छम-छम रोन अखियाँ।
रोन अखियाँ नाले, कहन अखियाँ।
जब याद गुरुओं की आवे...
कलम बिना खत लिखा न जावे,
लिखा न जावे, खत लिखा न जावे।
मैं तो उँगली की कलम बनाई, छम-छम रोन अखियाँ।
जब याद गुरुओं की आवे...
स्याही बिना खत लिखा न जावे,
लिखा न जावे, खत लिखा न जावे।
मैं तो हँजुओं की स्याही बनाई, छम-छम रोन अखियाँ।
जब याद गुरुओं की आवे...
डाक बिना खत भेजा न जावे,
भेजा न जावे, खत भेजा न जावे।
मैं तो दिलों वाली डाक बनाई, छम-छम रोन अखियाँ।
जब याद गुरुओं की आवे...
दोस्त बिना खत पढ़ा न जावे,
पढ़ा न जावे, खत पढ़ा न जावे।
मैं तो मन वाली जोत जगाई, छम-छम रोन अखियाँ।
जब याद गुरुओं की आवे...
सतगुरु आवे तो खत पढ़ के सुनावे,
दुख मेरे सुने नाले अपने सुनावे।
मैं तो यादों में जिंदगी बिताई,
छम-छम रोन अखियाँ।
जब याद गुरुओं की आवे...
जग वाले रंग मुझे फीके-फीके लगते,
तक-तक तस्वीर तेरी नैन नहीं रूदे।
झल्ला मन मेरा शोर मचावे, छम-छम रोन अखियाँ।
जब याद गुरुओं की आवे...
भक्तों तों गुरु जी कदे मुँह नहीं मोड़िदा,
उम्रां का नाता ऐहो नाता नहीं तोड़िदा।
तेरे बिन कौन दर्द नूं वंडावे, छम-छम रोन अखियाँ।
जब याद गुरुओं की आवे...
दिल के बगीचे में तुम कब आओगे,
झोली मेरी में गुरु जी खैर कब पाओगे।
दिन-रात ओही रट ऐही लावे, छम-छम रोन अखियाँ।
जब याद गुरुओं की आवे...
वो प्रीत निभाना क्या जाने।
जिस दिल ने चोट न खाई हो
वो नीर बहाना क्या जाने।
जब याद गुरुओं की आवे, छम-छम रोन अखियाँ।
रोन अखियाँ नाले, कहन अखियाँ।
जब याद गुरुओं की आवे...
कलम बिना खत लिखा न जावे,
लिखा न जावे, खत लिखा न जावे।
मैं तो उँगली की कलम बनाई, छम-छम रोन अखियाँ।
जब याद गुरुओं की आवे...
स्याही बिना खत लिखा न जावे,
लिखा न जावे, खत लिखा न जावे।
मैं तो हँजुओं की स्याही बनाई, छम-छम रोन अखियाँ।
जब याद गुरुओं की आवे...
डाक बिना खत भेजा न जावे,
भेजा न जावे, खत भेजा न जावे।
मैं तो दिलों वाली डाक बनाई, छम-छम रोन अखियाँ।
जब याद गुरुओं की आवे...
दोस्त बिना खत पढ़ा न जावे,
पढ़ा न जावे, खत पढ़ा न जावे।
मैं तो मन वाली जोत जगाई, छम-छम रोन अखियाँ।
जब याद गुरुओं की आवे...
सतगुरु आवे तो खत पढ़ के सुनावे,
दुख मेरे सुने नाले अपने सुनावे।
मैं तो यादों में जिंदगी बिताई,
छम-छम रोन अखियाँ।
जब याद गुरुओं की आवे...
जग वाले रंग मुझे फीके-फीके लगते,
तक-तक तस्वीर तेरी नैन नहीं रूदे।
झल्ला मन मेरा शोर मचावे, छम-छम रोन अखियाँ।
जब याद गुरुओं की आवे...
भक्तों तों गुरु जी कदे मुँह नहीं मोड़िदा,
उम्रां का नाता ऐहो नाता नहीं तोड़िदा।
तेरे बिन कौन दर्द नूं वंडावे, छम-छम रोन अखियाँ।
जब याद गुरुओं की आवे...
दिल के बगीचे में तुम कब आओगे,
झोली मेरी में गुरु जी खैर कब पाओगे।
दिन-रात ओही रट ऐही लावे, छम-छम रोन अखियाँ।
जब याद गुरुओं की आवे...
Satguru Bhajan ।। जदों याद गुरां जी दी आवे छम छम रोन अखियां ।।Bhajan Kirtan
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सतगुरु की महिमा का अनुभव करने से आपकी आत्मा अज्ञान के अंधकार से मुक्त होकर ज्ञान के प्रकाश में आ जाती है। गुरु की कृपा से आपके मन में सकारात्मक विचार, विवेक और शांति का विकास होता है। गुरु के बताए मार्ग पर चलने से आपकी सोच और कर्म शुद्ध होते हैं, जिससे आपकी आत्मा में प्रकाश का अनुभव होता है। गुरु की महिमा आपको सच्चे सुख, शांति और आनंद की ओर ले जाती है। सतगुरु की याद में आँखें छलछला उठती हैं, और मन उनके प्रेम में डूब जाता है। जिसने प्रेम की गहराई न जानी, वह इसे निभाना नहीं समझ सकता; जिस दिल ने चोट न सही, वह आँसुओं की कीमत नहीं जानता। सतगुरु को पत्र लिखने की चाह जागती है, पर कलम न होने पर उंगली को ही कलम बनाया जाता है, स्याही न होने पर आँसुओं को स्याही बनाया जाता है।
सतगुरु की महिमा का अनुभव आपकी आत्मा को अनंत प्रकाश इसलिए देता है क्योंकि गुरु आपको आत्मा के वास्तविक स्वरूप से परिचित कराते हैं। उनकी शिक्षाओं और कृपा से आपके अंदर के सभी भ्रम और नकारात्मकता दूर हो जाते हैं और आपकी आत्मा में आत्मिक प्रकाश जागृत होता है। सतगुरु के प्रति समर्पण और भक्ति से आपको जीवन का वास्तविक उद्देश्य समझ में आता है और आपकी आत्मा सदा के लिए प्रकाशित हो जाती है। इस प्रकार, सतगुरु की महिमा का अनुभव आपकी आत्मा को अनंत प्रकाश प्रदान करता है। डाक न होने पर दिल को ही डाकघर बनाया जाता है, और पत्र पढ़ने के लिए मन में भक्ति की ज्योत जलायी जाती है।
सतगुरु जब आते हैं, तो यह पत्र पढ़कर सुनाते हैं, दुख सुनते हैं और अपने वचन सुनाते हैं, जिससे जीवन उनकी याद में बीत जाता है। संसार के सारे रंग फीके लगते हैं, और सतगुरु की तस्वीर को निहारते हुए मन बेचैन होकर शोर मचाता है। सतगुरु कभी भक्तों से मुँह नहीं मोड़ते, उनका नाता अटूट है, और उनके बिना कोई दर्द बाँटने वाला नहीं। मन बगीचे में सतगुरु के आने की प्रतीक्षा करता है, उनकी कृपा की खैर माँगता है, और दिन-रात उनकी ही रट लगायी जाती है। यह भजन सतगुरु के प्रति गहरे प्रेम, उनकी याद में डूबे मन की बेचैनी, और उनकी कृपा से जीवन की सार्थकता की भावना को व्यक्त करता है।
गुरु शिष्य को पवित्र शास्त्रों के गूढ़ तथ्यों, सच्ची साधना और भक्ति के मार्ग से परिचित कराते हैं। गुरु की शिक्षाएँ शिष्य के मन में विवेक, सदाचार और सकारात्मकता का विकास करती हैं, जिससे उसका जीवन सार्थक और सुखमय बनता है। गुरु ज्ञान के बिना व्यक्ति भ्रम, अज्ञान और निराशा में भटकता रहता है, जबकि गुरु की शरण में आने से उसे जीवन का वास्तविक उद्देश्य समझ में आता है और उसकी आत्मा प्रकाशित हो जाती है।
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Author - Saroj Jangir
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