दोहा कोटि कोटि निवण मेरे माता पिता को, ज्याने दिया शरीर, बलिहारी जाऊँ गुरू देव ने, दिया हरि भजन में सीर। श्री ब्रह्माणी स्तुति चन्द्र दिपै सूरज दिपै, उड़गण दिपै आकाश । इन सब से बढकर दिपै, माताऒ का सुप्रकाश मेरा अपना कुछ नहीं, जो कुछ है सो तोय । तेरा तुझको सौंपते, क्या लगता है मोय पद्म कमण्डल अक्ष, कर ब्रह्मचारिणी रूप । हंस वाहिनी कृपा करे, पडूँ नहीं भव कूप जय जय श्री ब्रह्माणी, सत्य पुंज आधार । चरण कमल धरि ध्यान में, प्रणबहुँ बारम्बार
चौपाई जय जय जग मात ब्रह्माणी, भक्ति मुक्ति विश्व कल्याणी। वीणा पुस्तक कर में सोहे, शारदा सब जग सोहै। हँस वाहिनी जय जग माता, भक्त जनन की हो सुख दाता। ब्रह्माणी ब्रह्मा लोक से आई, मात लोक की करो सहाई। क्षीर सिन्धु में प्रकटी जब ही, देवों ने जय बोली तब ही। चतुर्दश रतनों में मानी, अद॒भुत माया वेद बखानी। चार वेद षट शास्त्र कि गाथा, शिव ब्रह्मा कोई पार न पाता। आदि शक्ति अवतार भवानी, भक्त जनों की मां कल्याणी। जब−जब पाप बढे अति भारे, माता शस्त्र कर में धारे। पाप विनाशिनी तू जगदम्बा, धर्म हेतु ना करी विलम्बा, नमो नमो ब्रह्मी सुखकारी, ब्रह्मा विष्णु शिव तोहे मानी। तेरी लीला अजब निराली, सहाय करो माँ पल्लू वाली। दुःख चिन्ता सब बाधा हरणी,
Brahmani Mata Bhajan Lyrics Hindi,Mata Rani Bhajan lyrics in hindi
अमंगल में मंगल करणी,। अन्न पूरणा हो अन्न की दाता, सब जग पालन करती माता। सर्व व्यापिनी असंख्या रूपा, तो कृपा से टरता भव कूपा। चंद्र बिंब आनन सुखकारी, अक्ष माल युत हंस सवारी। पवन पुत्र की करी सहाई, लंक जार अनल सित लाई। कोप किया दश कन्ध पे भारी, कुटम्ब संहारा सेना भारी। तु ही मात विधी हरि हर देवा, सुर नर मुनी सब करते सेवा। देव दानव का हुआ सम्वादा, मारे पापी मेटी बाधा । श्री नारायण अंग समाई, मोहनी रूप धरा तू माई। देव दैत्यों की पंक्ती बनाई, देवों को मां सुधा पिलाई। चतुराई कर के महा माई, असुरों को तू दिया मिटाई। नौ खण्ङ मांही नेजा फरके, भागे दुष्ट अधम जन डर के। तेरह सौ पेंसठ की साला, आस्विन मास पख उजियाला। रवि सुत बार अष्टमी ज्वाला,
हंस आरूढ कर लेकर भाला। नगर कोट से किया पयाना, पल्लू कोट भया अस्थाना। चौसठ योगिनी बावन बीरा, संग में ले आई रणधीरा। बैठ भवन में न्याय चुकाणी, द्वार पाल सादुल अगवाणी। सांझ सवेरे बजे नगारा, उठता भक्तों का जयकारा। मढ़ के बीच खड़ी मां ब्रह्माणी, सुन्दर छवि होंठो की लाली। पास में बैठी मां वीणा वाली, उतरी मढ़ बैठी महा काली। लाल ध्वजा तेरे मंदिर फरके, मन हर्षाता दर्शन करके। चैत आसोज में भरता मेला, दूर दूर से आते चेला। कोई संग में, कोई अकेला, जयकारो का देता हेला। कंचन कलश शोभा दे भारी, दिव्य पताका चमके न्यारी। सीस झुका जन श्रद्धा देते, आशीष से झोली भर लेते। तीन लोकों की करता भरता, नाम लिए सब कारज सरता। मुझ बालक पे कृपा की ज्यो, भुल चूक सब माफी दीज्यो। मन्द मति यह दास तुम्हारा, दो मां अपनी भक्ती अपारा। जब लगि जिऊ दया फल पाऊं, तुम्हरो जस मैं सदा ही गाऊं। दोहा राग द्वेष में लिप्त मन, मैं कुटिल बुद्धि अज्ञान । भव से पार करो मातेश्वरी, अपना अनुगत जान
श्री ब्रह्माणी माता चालीसा || Jyoti Gourisaria || Shree Brahmaani Mata Chalisha || Mata Bhajan
दुर्गा माता हिंदू धर्म की प्रमुख देवी हैं। वे शक्ति की देवी हैं और भक्तों को बुराई से बचाती हैं। दुर्गा माता को कई रूपों में पूजा जाता है, जिनमें से प्रत्येक की अपनी विशेषताएं होती हैं।
दुर्गा माता के सबसे लोकप्रिय रूपों में से एक महिषासुरमर्दिनी है। इस रूप में, दुर्गा माता महिषासुर नामक एक राक्षस से लड़ रही हैं। महिषासुर एक शक्तिशाली राक्षस था जिसने ब्रह्मा से वरदान प्राप्त किया था कि उसे केवल एक महिला ही मार सकती है। दुर्गा माता ने अपने भक्तों की रक्षा के लिए महिषासुर का वध किया।
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