वन्दे वांच्छितलाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम् शैलपुत्री माता मंत्र Shailputri Mata Mantra
नवरात्रि माता रानी का पवित्र पर्व है। पावन नवरात्रि में माता के नौ स्वरूपों की उपासना बड़े ही श्रद्धा भाव से की जाती है। दुर्गा माता का सबसे पहले/प्रथम रूप शैलपुत्री है। शैलपुत्री माता है नव दुर्गा का प्रथम स्वरुप कहलाती हैं। माता का यह नाम पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री रूप में जन्म लेने के कारण पड़ा है। शैलपुत्री माता को वृषारूढ़ा के नाम से भी जानी पुकारा जाता है। माता के दाएं हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल सुशोभित है. यही सती के नाम से भी जानी जाती हैं.
इनका पूजन मंत्र है :
वन्दे वांच्छितलाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम् ॥
माता के ये रूप शास्त्रों में इस श्लोक द्वारा उल्लेखित हैं :
प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति. चतुर्थकम्।।
पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति.महागौरीति चाष्टमम्।।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:।
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना:।।
‘वन्दे वांच्छितलाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्।।
वन्दे वांच्छितलाभाय
I Worship Her, Who Makes One Attain What One Wishes For
चंद्रार्धकृतशेखराम्
Who made The Crescent Moon Ornament Of Her Head
वृषारूढ़ां शूलधरां
Who Is Mounted On A Bull And Is Holding A Trident
शैलपुत्रीं यशस्विनीम्
I Worship Devi Shailaputri Who Is Illustrious And Beautful
मां शैलपुत्री का निर्भय आरोग्य मंत्र
विशोका दुष्टदमनी शमनी दुरितापदाम्।
उमा गौरी सती चण्डी कालिका सा च पार्वती।।
स्तुति मंत्र :- या देवी सर्वभूतेषु शैलपुत्री रूपेण संस्थिता |
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: ||
मूलमंत्र:- माता शैलपुत्री की आराधना हेतु मंत्र इस प्रकार है -
वन्दे वांच्छितलाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम् | वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम् ||
प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति. चतुर्थकम्।।
पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति.महागौरीति चाष्टमम्।।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:।
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना:।।
‘वन्दे वांच्छितलाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्।।
वन्दे वांच्छितलाभाय
I Worship Her, Who Makes One Attain What One Wishes For
चंद्रार्धकृतशेखराम्
Who made The Crescent Moon Ornament Of Her Head
वृषारूढ़ां शूलधरां
Who Is Mounted On A Bull And Is Holding A Trident
शैलपुत्रीं यशस्विनीम्
I Worship Devi Shailaputri Who Is Illustrious And Beautful
मां शैलपुत्री का निर्भय आरोग्य मंत्र
विशोका दुष्टदमनी शमनी दुरितापदाम्।
उमा गौरी सती चण्डी कालिका सा च पार्वती।।
स्तुति मंत्र :- या देवी सर्वभूतेषु शैलपुत्री रूपेण संस्थिता |
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: ||
मूलमंत्र:- माता शैलपुत्री की आराधना हेतु मंत्र इस प्रकार है -
वन्दे वांच्छितलाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम् | वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम् ||
मां शैलपुत्री, नवदुर्गा के प्रथम रूप के रूप में पूजनीय हैं, जिन्हें हिमालय की पुत्री और शिव की अर्धांगिनी के रूप में जाना जाता है। शास्त्रों में उनके इस रूप का उल्लेख उनकी असीम शक्ति, सौंदर्य और दयालुता के प्रतीक के रूप में किया गया है। मां शैलपुत्री का वाहन वृषभ (बैल) है और वे त्रिशूल धारण करती हैं। उनके मस्तक पर चंद्र का अर्धचंद्राकार शोभा देता है, जो उनकी दिव्यता को दर्शाता है।
मां शैलपुत्री की आराधना से भक्तों की सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं और उन्हें निर्भयता, आरोग्य, और शांति का आशीर्वाद मिलता है। उनका ध्यान विशोका और दुष्ट दमन करने वाली देवी के रूप में किया जाता है, जो सभी दुखों और कष्टों को दूर करती हैं। उनके स्तुति मंत्र और मूलमंत्र भक्तों को दिव्यता के मार्ग पर अग्रसर करते हैं। माता शैलपुत्री की आराधना न केवल जीवन को शुद्ध करती है, बल्कि भक्तों को आध्यात्मिक उन्नति और सिद्धि का वरदान भी देती है।
मां शैलपुत्री की आराधना से भक्तों की सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं और उन्हें निर्भयता, आरोग्य, और शांति का आशीर्वाद मिलता है। उनका ध्यान विशोका और दुष्ट दमन करने वाली देवी के रूप में किया जाता है, जो सभी दुखों और कष्टों को दूर करती हैं। उनके स्तुति मंत्र और मूलमंत्र भक्तों को दिव्यता के मार्ग पर अग्रसर करते हैं। माता शैलपुत्री की आराधना न केवल जीवन को शुद्ध करती है, बल्कि भक्तों को आध्यात्मिक उन्नति और सिद्धि का वरदान भी देती है।
भजन श्रेणी : माता रानी भजन (Mata Rani Bhajan)
Shailaputri Devi | Manovanchit Labh Prapti - Day 1 | Shambhu L, Chanchal K. L | Narayan Agarwal
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Author - Saroj Jangir
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