तेरे चेहरे से नज़रें न हटती क्या मैं देखूँ यहाँ के नज़ारे

तेरे चेहरे से नज़रें न हटती क्या मैं देखूँ यहाँ के नज़ारे

तेरे चेहरे से नज़रें न हटती,
क्या मैं देखूँ यहाँ के नज़ारे।
मेरे नैनों को कुछ भी न भाये,
और नहीं कोई इसमें समाये,
कोई दूजी छवि अब न जचती,
क्या मैं देखूँ यहाँ के नज़ारे।।

नहीं बैकुंठ की मुझको चाहत,
नहीं स्वर्ग की है कोई ख्वाहिश,
मेरे खाटू में ही साँस निकले,
बस इतनी सी है गुज़ारिश।
तू मेरे सामने हो, तुझमें समाऊँ,
चरणों में तेरे मैं अर्ज लगाऊँ,
मेरी आखियों को तेरे सिवा
कुछ न दे दिखाई।
तेरी गलियों में जन्नत है बस्ती,
क्या मैं देखूँ यहाँ के नज़ारे।।

तूने बदली है मेरी ये दुनिया,
जब से ओढ़ी है तेरी चदरिया,
देखते देखते तुझको बाबा
बीत जाए ये सारी उमरिया।
जिसको सुन के तू खुश हो जाए,
श्याम, तराने वो तुमको सुनाए,
तेरे भजनों की महफ़िल यूँ ही सजती रहे।
हर कोई होता तेरा दीवाना,
जो भी आया है दर पे तुम्हारे,
क्या मैं देखूँ यहाँ के नज़ारे।।


Tere Cahare Se Nazren By Dharnidhar Dadhich

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