गुरु का वंदन करले प्राणी, गुरु चरणों में आराम रे, क्यों तू भटके दर दर बंदे, गुरु ही चारों धाम रे, गुरु का वंदन करले प्राणी, गुरु चरणों में आराम रे।
हरी झंडी मिलते ही, गाड़ी दौड़ जाती है, सांस बंद होते ही, आत्मा छोड़ जाती है, अरे क्यों उलझते हो, माया के अँधेरों में गुरु के वंदन से, निर्मल भौर आती है।
गुरु बिन भक्ति ना गुरु बिन मुक्ति, गुरु बिन ज्ञान अधूरा, जो कट जाये गुरु शरण में, वो जीवन है पूरा, सोये मन में अलख जगाने, सद्गुरु छेड़े मीठी तान रे, गुरु का वंदन करले प्राणी, गुरु चरणों में आराम रे।
संतों की वाणी में मन, नहीं रमा रहे हैं, इसी लिए संसार के, चक्कर लगा रहे हैं, नींद कब तक मोह की, सोते रहोगे तुम, चेतना के स्वर देख, गुरु जगा रहे हैं।
गुरु का मुख है ज्ञान की गंगा, शुद्ध करे तन मन को, भवसागर से पार करेंगे, सुन ले गुरु वचन को, सुर नर मुनि जन नारद सारद, करते गुरु गुणगान रे, गुरु का वंदन करले प्राणी, गुरु चरणों में आराम रे।
गुरु का वंदन करले प्राणी, गुरु चरणों में आराम रे, क्यों तू भटके दर दर बंदे, गुरु ही चारों धाम रे, गुरु का वंदन करले प्राणी, गुरु चरणों में आराम रे।