जीवन का निष्कर्ष यही है
प्रभु प्रेम में लग जाना
आ ही गये तो बैठो प्यारे
रामकथा सुनकर जाना।
कथा प्रेम की पावन गंगा
निर्मल बहती जाए
भक्ति भाव की शीतल लहरें
अंत: तक लहराए
कुछ बातें है सुनने लायक
कुछ बातें गुनकर जाना।
जीवन का निष्कर्ष यही है,
प्रभु प्रेम में लग जाना,
आ ही गये तो बैठो प्यारे,
रामकथा सुनकर जाना।
उत्तम बने विचार यही
मतलब है रामकथा का
पर पीड़ा का मन में हो
आभास व्यथा का
कुल परिवार ओड़ ले प्यारे
वह चादर बुनकर जाना।
जीवन का निष्कर्ष यही है,
प्रभु प्रेम में लग जाना,
आ ही गये तो बैठो प्यारे,
रामकथा सुनकर जाना।
तुलसीदास भगीरथ बन के
जप तप किए अभंगा
तब जाकर मानस से निकली
परम पावनी गंगा
रामकथा सागर में प्यारे
तिरते तिरते तर जाना।
जीवन का निष्कर्ष यही है,
प्रभु प्रेम में लग जाना,
आ ही गये तो बैठो प्यारे,
रामकथा सुनकर जाना।
जीवन का निष्कर्ष यही है,
प्रभु प्रेम में लग जाना,
आ ही गये तो बैठो प्यारे,
रामकथा सुनकर जाना।
प्रभु प्रेम में लग जाना
आ ही गये तो बैठो प्यारे
रामकथा सुनकर जाना।
कथा प्रेम की पावन गंगा
निर्मल बहती जाए
भक्ति भाव की शीतल लहरें
अंत: तक लहराए
कुछ बातें है सुनने लायक
कुछ बातें गुनकर जाना।
जीवन का निष्कर्ष यही है,
प्रभु प्रेम में लग जाना,
आ ही गये तो बैठो प्यारे,
रामकथा सुनकर जाना।
उत्तम बने विचार यही
मतलब है रामकथा का
पर पीड़ा का मन में हो
आभास व्यथा का
कुल परिवार ओड़ ले प्यारे
वह चादर बुनकर जाना।
जीवन का निष्कर्ष यही है,
प्रभु प्रेम में लग जाना,
आ ही गये तो बैठो प्यारे,
रामकथा सुनकर जाना।
तुलसीदास भगीरथ बन के
जप तप किए अभंगा
तब जाकर मानस से निकली
परम पावनी गंगा
रामकथा सागर में प्यारे
तिरते तिरते तर जाना।
जीवन का निष्कर्ष यही है,
प्रभु प्रेम में लग जाना,
आ ही गये तो बैठो प्यारे,
रामकथा सुनकर जाना।
जीवन का निष्कर्ष यही है,
प्रभु प्रेम में लग जाना,
आ ही गये तो बैठो प्यारे,
रामकथा सुनकर जाना।
आ ही गये तो बैठो प्यारे रामकथा सुनकर जाना #जयश्रीराम रामकथा सुनकर जाना भजन लिरिक्स Ram Katha Sunkar Jana Lyrics
पूज्य राजन जी द्वारा गाया हुवा ये भजन- ये रामकथा सुनकर जाना, श्री रामकथा की महिमा बताने वाला भजन है। ये भजन पूज्य राजन जी के कथा यात्रा के प्रारंभिक जीवन के समय का है। इस भजन को पूज्य राजन जी ने बल्केश्वर महादेव मंदिर, आगरा, उत्तर प्रदेश की श्री रामकथा में गाया है जो मई 2018 में हुई थी। इस भजन की रचना पूज्य पंडित श्री तारकेश्वर मिश्र " रही " जी ने की है।
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