थारा रंग महल में अजब शहर में भजन लिरिक्स प्रहलाद सिंह टिपानिया

थारा रंग महल में अजब शहर में भजन लिरिक्स प्रहलाद सिंह टिपानिया

भजन के बोल (lyrics)
साखी -
छका सो थका फिर देह धारे नहीं, कर्म और कपट सब दूर किया।
जिने स्वास उस्वास का प्रेम प्याला पिया, नाम दरियाव तहां पेसी जिया।।
चढ़ी मथवाल हुआ मन साबिता फटक ज्यूं फेर नहीं फुट जावे, कहे कबीर जिने बास निर्भय किया तो बहुरी संसार में नहीं आवे।
इस घट में ओघट पाविया, ओघट माही घाट ।
सब ही संशय मिट गया, जब गुरु दिखाई बाट ।।
भजन -
रंग महल में अजब शहर में, आजा रे हंसा भाई,
निरगुण राजा पे सिरगुण‌ सैज बिछाई।।
हां रे भाई, आता देवलिया में देव नंही,
 झालर कूटे गरज कसी।।
 रंग महल में, अजब शहर में,
हां रे भाई, बेहद की तो गम नाहीं,
 नुगरा से सैम कसी।।
 रंग महल में, अजब शहर में,
हां रे भाई, अमृत प्याला भर पावो,
 भाईला से भ्रांत कसी।।
 रंग महल में, अजब शहर में,
हां रे भाई, कहै कबीर विचार,
 सैण माही सैण मिली।।
 रंग महल में, अजब शहर में.......
रंग महल में अजब शहर में, आजा रे हंसा भाई,
निरगुण राजा पे सिरगुण‌ सैज बिछाई।।

थारा रंग महल में अजब शहर में ।Rang Mahal Mein Ajab Shahar mein।Kabir bhajan Prahlad singh Tipanya

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Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

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