मेरे दाता की होवे जय जयकार

मेरे दाता की होवे जय जयकार भजन

मेरे दाता की होवे,
जय जयकार,
दाता के दरबार,
आया दर्शन को सारा,
संसार दाता के दरबार।

सज गये हैं दाता के मन्दिर,
पाया है सतगुरु का दर्शन,
द्वारे पे संगत अपार,
दाता के दरबार।

पुरण सब की आस,
तुम कर दो,
दामन को खुशियों से भर दो,
भक्तों को सहारा मिला,
दाता के दरबार।

जोत जागी दाता की नूरानी,
बैठे आनंदपुर के वाली,
आया दर्शन को सारा संसार,
दाता के दरबार।

मेरे दाता की होवे,
जय जयकार,
दाता के दरबार,
आया दर्शन को सारा,
संसार दाता के दरबार।


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परमदाता के दरबार का आत्मीय और बृहद् चित्र उभरता है। जब संसार के लोग उस दरवाज़े पर हज़ारों उम्मीदें लिए पहुँचते हैं, तो वहाँ केवल चमत्कार या आश्चर्य नहीं, एक गहरा विश्वास और शांति होती है। मंदिर को सजाया गया है, संगत अपार है, हर कोई सतगुरु के दर्शन को बेताबी से आया है—यह दृश्य भक्त और दाता के रिश्ते की मधुरता और भरोसे को दर्शाता है। वहाँ हर प्रार्थना में यही आस है कि दुख दूर हों, जीवन में सुख-शांति आए, और जिस कोई वहाँ पहुँचे उसका दामन खुशियों से भर जाए। यह विश्वास भी है कि दाता के दरबार में हर किसी को संबल और आश्रय मिलता है, जहाँ कोई खाली नहीं लौटता। 


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