आजा इक वारी मेरी माँ मातारानी भजन
आके दे जा ठंडी ठंडी छा,
आंचल में ले ले मुझे माँ,
आके दे जा ठंडी ठंडी छा,
आजा इक वारी मेरी माँ।
बेटा बुलावे तुझको,
करदे कृपा तू माँ,
दर्शन दे दे मैया,
प्यासा हूं कबसे माँ,
इस झूठे जग से मुझको,
दूर तू ले जा माँ,
आजा इक वारी मेरी माँ,
आके दे जा ठंडी ठंडी छा।
तेरे सिवा तो मेरा,
कोई नही है माँ,
जो भी है मेरा सब,
तेरा दिया है माँ,
तू ही जो रूठेगी तो,
किसे दुख सुनाऊंगा माँ,
आजा इक वारी मेरी माँ,
आके दे जा ठंडी ठंडी छा।
श्रीधर को जैसे तारा,
मुझको भी तारो माँ,
मैं भी तो बेटा तेरा,
मुझे भी संवारो मां,
तेरा ही सहारा है,
ओ शेरोंवाली माँ,
आजा इक वारी मेरी माँ,
आके दे जा ठंडी ठंडी छा।
आजा इक वारी मेरी माँ,
आके दे जा ठंडी ठंडी छा,
आंचल में ले ले मुझे माँ,
आके दे जा ठंडी ठंडी छा।
जय जय अम्बे माँ।
Aaja ik Vaari Meri Maa, Aake De Jaa Thandi Thandi Chhan Bhajan By Gurukul Students #vaishnodevi #maa
यह पुकार धरती और आकाश के बीच गूंजती वह ध्वनि है, जिसमें एक बच्चे का सम्पूर्ण विश्वास अपनी माँ के चरणों में उतर आता है। जब आत्मा थक जाती है, जब संसार की दौड़ में मन घायल हो उठता है, तब यह ध्वनि “माँ” कहकर उसकी गोद माँगती है। यही वह सम्बन्ध है, जहाँ वचन नहीं, केवल अनुभूति बोलती है। शेरोंवाली माँ का रूप यहाँ केवल शक्ति का नहीं, करुणा का भी है — वह जो अपने आंचल की ठंडक से जीवन की सारी तपिश दूर कर देती है। माँ की कृपा को पाने की यह लालसा मात्र दर्शन की नहीं, उस शांति की याचना है जो आत्मा को फिर से स्थिर कर देती है। यह वह समर्पण है जिसमें न तर्क बचता है, न चाह; बस विश्वास रह जाता है कि माता की गोद में सब हल हो जाएगा।
जिसे संसार झूठा लगता है, उसके लिए यह संबंध ही सच्चाई का अंतिम आधार बन जाता है। माँ वही है जिसने सब कुछ दिया है, और वही अगर दूर हो जाए तो जीवन रिक्त हो जाता है। उसकी रूठ जाने की कल्पना भी कांप उठा देती है। “श्रीधर को जैसे तारा, मुझको भी तारो माँ” — यह वाक्य केवल आर्तनाद नहीं, बल्कि परम भरोसे की मुद्रा है। यहाँ हर शब्द उस चाह में भीगा है जिसमें देवत्व का अनुभव जीवन की नमी से होकर आता है — जैसे धूल भरे पथ पर माँ का हाथ टिक जाए, और सब कुछ सरल हो जाए। देवी यहाँ केवल दुर्गा या अंबिका नहीं, वह सर्वव्यापक माँ हैं — जो अपने बच्चों की थकान पहचान कर उन्हें फिर से जीने की हिम्मत देती हैं। यही वह कृपा है जो कहे बिना भी महसूस होती रहती है, और हर थके मन से एक ही स्वर निकलता है — “आजा इक वारी मेरी माँ, आके दे जा ठंडी ठंडी छा।”
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