गजानंद सरकार पधारो कीर्तन की तैयारी
कीर्तन की तैयारी है
आवो आवो बेगा आवो,
चाव दरश को भारी है,
गजानंद सरकार पधारो,
कीर्तन की तैयारी है।
थे आवो जद काम बणेला,
था पर सारी बाजी है,
रणक भँवर गढ़ वाला सुणले,
चिंता म्हाने लागी है,
देर करो ना अब दरशाओ,
चरणा म अर्ज हमारी है,
गजानंद सरकार पधारो,
कीर्तन की तैयारी है।
रिद्धि सिद्धि ले आवो विनायक,
देवो दरशन थे भक्ता न,
भोग लगावा धोक लगावा,
पुष्प चढ़ावा चरणा म,
गजानंद थार हाथा म,
अब तो लाज हमारी है,
गजानंद सरकार पधारो,
कीर्तन की तैयारी है,
आवो आवो बेगा आवो,
चाव दरश को भारी है,
गजानंद सरकार पधारो,
कीर्तन की तैयारी है।
गजानंद सरकार पधारो,
कीर्तन की तैयारी है
आवो आवो बेगा आवो,
चाव दरश को भारी है,
गजानंद सरकार पधारो,
कीर्तन की तैयारी है।
Gajanand Sarkar Padharo Ganesh Bhajan
Singer : Deepak Mundhra
यह भाव उस सजीव श्रद्धा का प्रतीक है जिसमें भक्त अपने आराध्य को केवल पूजता नहीं, बल्कि उन्हें अपने घर-आँगन का अतिथि मानकर पुकारता है। “गजानंद सरकार पधारो” — यह वाक्य भक्ति की सामाजिकता और आत्मीयता, दोनों को एक साथ जगा देता है। यह केवल आरती या कीर्तन का आमंत्रण नहीं, बल्कि प्रेम की उन धड़कनों का स्वर है जो देवता को अपनेपन से बाँध लेती हैं। हर पंक्ति में वह आतुरता झलकती है जैसे किसी प्रिय का इंतजार हो — “आवो आवो बेगा आवो, चाव दरश को भारी है।” यह भाव दिखाता है कि भक्त के लिए दरशन केवल आँखों से देखने का नहीं, बल्कि मन से मिलने का अनुभव है।
यह रचना गणेशजी के गजानन रूप को केवल बुद्धि और विघ्नहरता के देव के रूप में नहीं, बल्कि स्नेहिल अतिथि रूप में प्रत्यक्ष करती है। यहाँ “रिद्धि-सिद्धि ले आवो विनायक” कहने में वह विश्वास छिपा है कि जब प्रभु पधारते हैं, तो उनके संग समृद्धि, सादगी और मंगल सब कुछ साथ आता है। “थार हाथा में अब तो लाज हमारी है” यह भाव किसी निष्ठावान भक्ति की अंतिम स्थिति है — जहाँ भक्त कहता है, अब सब तुम्हारे भरोसे है। यह गीत ग्राम्य जीवन की उस सहज परंपरा को जी उठाता है जहाँ भक्ति का उत्सव घर की चहल-पहल से जुड़ा होता है — फूलों की सुगंध, दीयों की कांपती लौ, और एक आवाज जो मन की गहराई से पुकारती है — “गजानंद सरकार पधारो, कीर्तन की तैयारी है।”
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