जोत जगावां दिन रात जी नराते आए

जोत जगावां दिन रात जी नराते आए भजन

जोत जगावां दिन-रात,
जी नराते आए॥
भेटां मैं गावां दिन-रात,
जी नराते आए॥
जोत जगावां दिन-रात...

मैइया तेरा भवन बनावां,
फूलां दे नाल सजावां॥
फेरा तुसीं पाइयो प्रेम नाल,
जी नराते आए॥
जोत जगावां दिन-रात...

मैइया तेरी जोत जगावां,
सोहणा जेहा आसन लावां॥
आसन पर बैठो मेरी मां,
जी नराते आए॥
जोत जगावां दिन-रात...

मैइया तेरा चोला बनावां,
सोहणा जेहा गोटा लावां॥
चोला तुसीं पहिनो प्रेम नाल,
जी नराते आए॥
जोत जगावां दिन-रात...

मैइया तेरा जगन रचावां,
सोहणे जेहे भगत बुलावां॥
दर्शन दे जाइयो प्रेम नाल,
जी नराते आए॥
जोत जगावां दिन-रात...

मैइया तेरा भोग बनावां,
सोहणी जेही आरती गावां॥
भोग लगाइयो प्रेम नाल,
जी नराते आए॥
जोत जगावां दिन-रात...


नवरात्रि भजन जोत जगावां दिन रात जी नराते आये माता रानी की बहुत प्यारी भेंट

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माँ की जोत जलाना मन का प्रेम प्रकट करना है। यह जोत केवल दीया नहीं, बल्कि हृदय का वह प्रकाश है, जो दिन-रात प्रभु की भक्ति में रमता है। जैसे कोई माली फूलों से बगीचा सजाता है, वैसे ही भक्त माँ के भवन को प्रेम और श्रद्धा से सँवारता है।

माँ का आसन सजाना, उनका चोला तैयार करना, यह सब प्रेम की भेंट है। जैसे कोई बच्चा अपनी माँ के लिए फूल तोड़कर लाए, वैसे ही भक्त अपनी हर साँस माँ को अर्पित करता है। यह प्रेम ही माँ को आसन पर बिठाता है, उनके चोले को सुंदर बनाता है।

माँ के लिए जगन रचाना, भक्तों को बुलाना, और भोग लगाना—यह सब मन की वह पुकार है, जो माँ के दर्शन की आस रखती है। जैसे नदी सागर से मिलने को बेकरार रहती है, वैसे ही भक्त का मन माँ के प्रेम में डूबा रहता है। हर भेट, हर आरती, माँ के प्रति वह श्रद्धा है, जो मन को सदा आनंद देती है। 

Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

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