एक बार की बात है सुनो लगाकर भजन
सुनो लगाकर ध्यान,
सूरदास जी को हुआ,
इक दिन अन्तर्ज्ञान,
कृष्ण बुलाते हैं मुझे,
बृज भूमि की ओर,
देख रहे हैं रास्ता,
निस दिन नवल किशोर,
सूरदास जी चल पड़े,
मन में निश्चय ठान,
एक बार की बात है,
सुनो लगाकर ध्यान।
ठोकर पर ठोकर लगे,
जगत करे उपहास,
आँखों से दिखता नहीं,
मन में है विशवास,
आप करेंगे रास्ता,
मुरली धर आसान,
एक बार की बात है,
सुनो लगाकर ध्यान।
सूर अचानक गिर पड़े,
गहरे खड्डे बीच,
चीख़े चिल्लाए बहुत,
हे गिरधर जगदीश,
मेरी विपदा से हुए,
क्यों कर तुम अनजान,
एक बार की बात है,
सुनो लगाकर ध्यान।
रूप धरा तब ग्वाल का,
मोहन गोपीनाथ,
मंज़िल तक लेकर चले,
पकड़ भक्त का हाथ,
सूरदास प्रभु को गए,
मन ही मन पहचान,
एक बार की बात है,
सुनो लगाकर ध्यान।
श्याम ने माँगी विदा,
और छुड़ायो हाथ,
सूरदास तब कह उठे,
हे नाथों के नाथ।
बाँह छुड़ाए जात हो,
निरबल जान के मोहे,
हिरदय से जब जाओगे,
तब जानूँगो तोहे,
मन में साहिल भक्त के,
बसे सदा भगवान,
एक बार की बात है,
सुनो लगाकर ध्यान।
Anup Jalota | Kahani Surdas Ka Vishwas (कहानी सूरदास का विश्वास) | Krishna Bhajan | Tips Bhakti Prem
Song Name : Kahani Surdas Ka Vishwas
Singers : Anup Jalota
Lyrics : Pradeep Sahil
Music Director : Anup Jalota
जब मनुष्य की दृष्टि बाहर से बंद हो जाती है, तब भीतर की रोशनी जाग उठती है। यही अंतर्ज्ञान है — जब आँखें देखने में असमर्थ होती हैं, पर हृदय सब देखता है। यह कहानी उस विश्वास की है जहाँ दृष्टि नहीं, बल्कि समर्पण राह दिखाता है। जब जगत हँसता है, राह में पत्थर बिछाता है, तब कोई भीतर से दृढ़ स्वर कहता है — “चलते रहो, तुम्हारा मार्ग स्वयं ईश्वर समतल करेगा।” यही वह यात्रा है जहाँ हर ठोकर परीक्षा बन जाती है, हर पीड़ा एक मार्गदर्शक संकेत।
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और जब वह क्षण आता है जब गिरा हुआ मन पुकारता है, “हे गिरधर, अब मैं अकेला हूँ,” तब करुणा साक्षात उतर आती है। भगवान रूप नहीं देखते, वे पुकार का भाव सुनते हैं। वह कृपा उस ग्वाल बाल के रूप में आती है — सरल, अपने जैसी, लेकिन दिव्यता से भरी। जिस क्षण भगवान स्वयं हाथ थामते हैं, संसार का मजाक मौन हो जाता है। और फिर जब वही हाथ छूटता है, तो प्रेम अपना सबसे पवित्र स्वर लेता है — “बाँह छोड़ो, पर हृदय से मत जाना।” यही तो भक्ति का रहस्य है — जब ईश्वर को पकड़ने की नहीं, बस उसमें बस जाने की चाह रह जाती है।
जब उस पुकार का उत्तर स्वयं प्रभु देते हैं, तो वह दर्शन किसी चमत्कार जैसा नहीं, बल्कि प्रेम और निकटता का साक्षात अनुभव होता है। हाथ थामने वाला वही होता है जो परीक्षा में मौन था, किन्तु अब गहराई में उतरकर मंज़िल तक साथ ले जाता है। और जब वह फिर से अदृश्य होने लगता है, तब यह एहसास रह जाता है कि उसका वियोग केवल बाहरी है, भीतर से वह कभी अलग नहीं होता। जो भरोसा अंधे विश्वास की तरह शुरू हुआ था, वही अब अमिट साक्षात्कार में बदल जाता है। जीवन की राहों पर यही अनुभूति मन को यह यकीन देती है कि जब तक हृदय में प्रेम और नाम की ज्योति है, ईश्वर सदा पास हैं—अनदेखे, पर सजीव।
