एक डोली चली एक अर्थी चली

एक डोली चली एक अर्थी चली भजन

 

एक डोली चली,
एक अर्थी चली,
एक डोली चली,
एक अर्थी चली,
डोली अर्थी से,
कुछ युँ कहने लगी,
रस्ता तूने मेरा,
क्यों ये खोटा किया,
सामने से चली जा,
तूँ ओ दिल जली।

चार तुझमे लगे चार,
मुझमें लगे,
फूल तुझ पर चढ़े,
फूल मुझ पर चढ़े,
फर्क इतना है तुझमे,
और मुझमे सखी,
तूँ विदा हो चली मैं,
अलविदा हो चली।

चूड़ी तेरी हरी,
चूड़ी मेरी हरी,
मांग दोनों की,
सिंदूर से है भरी,
फर्क इतना है तुझमे,
और मुझमे सखी,
तूँ जहां में चली मैं,
जहां से चली।

तुझे देखे पिया,
तेरे हँसते पिया,
मुझे देखे पिया,
मेरे रोते पिया,
फर्क इतना है तुझमे,
और मुझमे सखी,
तूँ पिया के चली मैं,
पिया से चली।

गौरे हाथो में मेहँदी,
जो तेरे लगी,
गौरे हाथो में मेहँदी,
वो मेरे लगी ,
फर्क इतना है तुझमे,
और मुझमे सखी,
तूँ घर वसाने चली मैं,
घर वसा के चली।

लकड़ी तुझमे लगी,
लकड़ी मुझमे लगी,
लकड़ी वो भी सजी,
लकड़ी ये भी सजी,
फर्क इतना है तुझमे,
और मुझमे सखी,
तूँ लकड़ी से चली मैं,
लकड़ी में जली,
तूँ विदा हो चली मैं,
अलविदा हो चली,
तूँ जहां में चली मैं,
जहां से चली।


एक डोली चली, एक अर्थी चली | Ek Doli Chali Ek Arthi Chali | Chetawani Bhajan | Upasana Mehta Bhajan 

रचना जीवन और मृत्यु के बीच के सबसे सूक्ष्म और गहरे अंतर को बड़े सरल शब्दों में कह जाती है। डोली और अर्थी का संवाद मनुष्य के अस्तित्व का अद्भुत रूपक है — एक नई शुरुआत और एक अंतिम विदाई का। दोनों ही यात्राएँ श्वेत वस्त्रों, फूलों और भीड़ के बीच होती हैं; पर एक में घर बसने की आशा है, दूसरे में सब छोड़ने की शांति। “तूँ विदा हो चली, मैं अलविदा हो चली” — यह पंक्ति सुनते ही हृदय में वह चुप्पी उतर आती है, जहाँ जीवन अपनी क्षणभंगुरता को स्वीकार कर मुस्कुरा उठता है।

यह कविता यह भी दिखाती है कि मनुष्य का हर पड़ाव प्रतीकात्मक रूप से मृत्यु और पुनर्जन्म का ही विस्तार है। डोली में लड़की अपना घर, अपना बचपन छोड़ती है — अर्थी में शरीर आत्मा को छोड़ता है। एक में संसार की नई भूमिका शुरू होती है, दूसरे में संसार से मुक्ति मिलती है। दोनों यात्राओं में आँसू हैं, पर अर्थ अलग हैं — एक में वियोग का सुख, दूसरे में शांति का दुख। ऐसा भाव यह याद दिलाता है कि जीवन का हर “चला जाना” किसी और “आना” का आरंभ होता है। डोली और अर्थी की यह संवादात्मक छवि यही सिखाती है — कि जाने और आने के इस चक्र में सबसे सुंदर है वह क्षण, जब मन बिना भय और बिना अफसोस यह कह पाए — “तूँ जहां में चली, मैं जहां से चली।” 

⭐Song : Ek Doli Chali Ek Arthi Chali
⭐Singer : Upasana Mehta

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