मैया साडे घर आवेगी कदे ना कदे

मैया साडे घर आवेगी कदे ना कदे

 
मैया साडे घर आवेगी कदे ना कदे

मैया साडे घर आवेगी कदे ना कदे
मैया साडे घर आवेगी कदे ना कदे,
साडी बिगड़ी बनावेगी कदे ना कदे।

मैं पल्ला फड़ेया मां दा,
मां चिन्तापूरणी दा,
साडी चिन्ता मिटावेगी कदे ना कदे,
मैया साडे घर आवेगी कदे ना कदे।

मैं पल्ला फड़ेया मां दा,
मां ज्वाला मैया दा,
मेरे कष्ट मिटावेगी कदे ना कदे,
मैया साडे घर आवेगी कदे ना कदे।

मैं पल्ला फड़ेया मां दा,
मां शीतला देवी दा,
मेरे सीने ठण्ड पावेगी कदे ना कदे,
मैया साडे घर आवेगी कदे ना कदे।

मैं पल्ला फड़ेया मां दा,
मां नैंना देवी दा,
मेरे नैंना च समाएगी कदे ना कदे,
मैया साडे घर आवेगी कदे ना कदे।

मैं पल्ला फड़ेया मां दा,
मां वैष्णो मैया दा,
मैनु दर ते बुलावेगी कदे ना कदे,
मैया साडे घर आवेगी कदे ना कदे।


मैया घर साढ़े आएगी कदे ना कदे मैया दर्श दिखाएगी कदे ना कदे।। माता रानी का सुंदर भजन Maiya Ghar Sade Bhajan

Mata Rani Bhajan 
यह भाव उस सात्त्विक प्रतीक्षा का है, जिसमें मन निरंतर विश्वास के दीपक जलाए रखता है। जैसे कोई बच्चा अँधेरे आँगन में दीवार की ओर टकटकी लगाए खड़ा हो — कि बस अब माँ की चूड़ियों की खनक सुनाई देगी। यही भाव धरती के हर मनुष्य में जीवित है। जब जीवन की बातें उलझ जाएँ, जब हृदय थकने लगे, तब वह एक अदृश्य आस्था के आँचल को थामे रखता है — यही ममता, यही सहारा उसे गिरने नहीं देती। माँ के आने की आशा केवल किसी देवी के आगमन की प्रतीक्षा नहीं, बल्कि अपने भीतर के प्रकाश के लौट आने की प्रतीक्षा भी है। जब स्वार्थ और भय की धूल जमने लगे, तब यह विश्वास लौटकर कहता है — “सब ठीक होगा, बस थामे रह।”

जब मन दुख से भरा हो, माँ का स्मरण वायु की तरह भीतर उतरता है — जैसे गर्मी में शीतल पानी की बूँदें तन पर पड़ें। कोई अदृश्य करुणा हाथ रखती है, और सारी बेचैनियाँ धीरे से विलीन हो जाती हैं। यह वही माँ है जो ज्वाला बनकर अन्याय को जलाती है, शीतला बनकर ताप मिटाती है, वैष्णो बनकर अपनी संतान को पुकारती है। उसका आना समय से नहीं बँधा — वह तब आती है, जब मन सच्चे हृदय से पुकारे। तब भीतर एक सहज शांति उतरती है, जैसे किसी ने कह दिया हो, “अब डर मत, मैं आ गई हूँ।”

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