साखी –बिरहणी देय संदेशरो, सुनो हमारे पीव, जल बीन मछली क्यों जिए, ये पानी में का जीव।
बिरहणी जलती देख के, सांई आए धाय, प्रेम बूंद छीटकाय के, जलती लेय बुझाय || भजन –पीयू जी बीना म्हारो प्राण पड़े म्हारी हेली , जल बिन मछली मरे, कौन मिलावे म्हारा राम से म्हारी हेली, ऐ रोई रोई रुदन करां, म्हाने लाग्यो भजन वालों बाण म्हारी हेली, वो आवो (चलो) हमारा देश ||
1.के तो सूती थी रंग महल में म्हारी हेली,जाग्या रे जतन कराय, ऐ कौन मिलावे, म्हारा पीव (राम) से म्हारी हेली, रंग भर सेज बिछाए , म्हारी हेली, वो आवो (चलो) हमारा देश ||
2.छोड़ी दो पियर सासरो म्हारी हेली,छोड़ी दो रंग भर सेज , छोड़ो पितांबर ओढ़नो म्हारी हेली, ऐ कर ली जो भगमो भेस , म्हारी हेली, वो आवो (चलो) हमारा देश ||
3.एक भाण की क्या पड़ी म्हारी हेली , करोड़ भाण को प्रकाश , साहेब कबीर धरमी बोलिया म्हारी हेली , यो तो शूली रे वालो देश , म्हारी हेली, वो आवो (चलो) हमारा देश ||
पियू जी बिना म्हारो प्राण पड़े | Chalo hamara des | Geeta Parag Kabir |