पढ़ि गुणी ब्राह्मण भये कीरति भई संसार हिंदी मीनिंग Padhi Guni Brahman Bhaye Meaning
पढ़ी गुनी ब्राह्मण भये, कीर्ति भई संसार।
वस्तू की तो समझ नहि, ज्युं खर चंदन भार ॥
or
पढ़ि गुणी ब्राह्मण भये, कीरति भई संसार।
बस्तु की तो समझ नहीं, ज्यों खर चंदन भार।।
वस्तू की तो समझ नहि, ज्युं खर चंदन भार ॥
or
पढ़ि गुणी ब्राह्मण भये, कीरति भई संसार।
बस्तु की तो समझ नहीं, ज्यों खर चंदन भार।।
Padhi Guni Brahaman Bhaye, Kirti Bhai Sansar,
Vastu Ki To Samajh Nahi, Jyo Khar Chandan Bhar.
कबीर के दोहे शब्दार्थ हिंदी में Kabir Doha Word Meaning in Hindi
पढ़ि : पढ़ लिखकर/शास्त्र का ज्ञान प्राप्त करके।
गुणी ब्राह्मण भये : ग्यानी बन गए हैं।
कीरति : कीर्ति/यश।
भई : हो गई है।
संसार : सम्पूर्ण जगत में / संसार में कीर्ति हो गई है।
बस्तु : तत्व ज्ञान, ईश्वर को प्राप्त करने का मर्म।
की तो समझ नहीं : का ज्ञान नहीं है।
ज्यों : जैसे।
खर : गधा/खच्चर।
चंदन भार : चन्दन का भार / गधे पर रखा हुआ चन्दन।
गुणी ब्राह्मण भये : ग्यानी बन गए हैं।
कीरति : कीर्ति/यश।
भई : हो गई है।
संसार : सम्पूर्ण जगत में / संसार में कीर्ति हो गई है।
बस्तु : तत्व ज्ञान, ईश्वर को प्राप्त करने का मर्म।
की तो समझ नहीं : का ज्ञान नहीं है।
ज्यों : जैसे।
खर : गधा/खच्चर।
चंदन भार : चन्दन का भार / गधे पर रखा हुआ चन्दन।
हिंदी अर्थ: इस दोहे में कबीर दास कह रहे हैं कि किताबें अधिक पढ़ने से हम ज्ञानी बन जाते हैं और संसार की किर्ति प्राप्त करते हैं। लेकिन इससे हमारे अंदर की वास्तविक ज्ञान की उत्पत्ति नहीं होती है। हम वास्तविकता को समझने में असमर्थ रहते हैं, जैसे कि खच्चर अपनी पीठ पर चंदन लादे फिरता है लेकिन वह वास्तव में चन्दन का महत्त्व नहीं समझ पाता है।
साहेब की वाणी है की किताबी ज्ञान से कुछ भी भला नहीं होने वाला है, ज्ञान वही उपयोगी है जो हमारे आचरण में और व्यवहार में प्रदर्शित हो। सच्चा ज्ञान हमारे अन्तरंग में उद्भव करने के लिए अनुभव, साधना, और सत्संग की आवश्यकता होती है। इससे हम अपने जीवन को समृद्ध, सुखी, और पूर्णता से भर सकते हैं।
साहेब की वाणी है की किताबी ज्ञान से कुछ भी भला नहीं होने वाला है, ज्ञान वही उपयोगी है जो हमारे आचरण में और व्यवहार में प्रदर्शित हो। सच्चा ज्ञान हमारे अन्तरंग में उद्भव करने के लिए अनुभव, साधना, और सत्संग की आवश्यकता होती है। इससे हम अपने जीवन को समृद्ध, सुखी, और पूर्णता से भर सकते हैं।
गधे को मूर्ख माना गया है इसलिए उसे चंदन के गुण एवं महत्व का बोध नहीं होता है। वह सुगंध देने वाली एवं गुणकारी चंदन को केवल एक बोझ समझकर ढोता ही रहता है। विद्या को रट कर प्राप्त कर लेने वाला व्यक्ति भी इसी प्रकार विद्या के महत्व से अनभिज्ञ रहता है और विद्या उसके लिए बोझ के समान हो जाती है।
Word Meaning in English
- पढ़ि (Padi): By studying and acquiring knowledge through education or by learning from scriptures.
- गुणी ब्राह्मण भये (Gunī Brāhmaṇ bhaye): The knowledgeable individuals become like wise Brahmins.
- कीरति (Kīrati): Fame or reputation.
- भई (Bhayi): Has become or attained.
- संसार (Sansār): The world or the entire universe.
- बस्तु (Bastu): The essence or the real substance.
- की तो समझ नहीं (Kī to samajh nahīn): But they do not understand.
- ज्यों (Jyon): Just as or like.
- खर (Khar): A donkey or a mule.
- चंदन भार (Chandan bhār): The burden of sandalwood, i.e., carrying the burden of knowledge without understanding its true value.
English Meaning
In this Doha, Kabir Das conveys that by extensively reading books and acquiring worldly knowledge, one may become knowledgeable and gain fame in society. However, this does not lead to the realization of true wisdom within oneself. Kabir compares this situation to that of a donkey carrying sandalwood on its back. The donkey roams around with the valuable sandalwood but remains unaware of its significance.
दीपक पावक आंणिया, तेल भी आंण्या संग।
तीन्यूं मिलि करि जोइया, (तब) उड़ि उड़ि पड़ैं पतंग॥
मार्या है जे मरेगा, बिन सर थोथी भालि।
पड्या पुकारे ब्रिछ तरि, आजि मरै कै काल्हि॥
हिरदा भीतरि दौ बलै, धूंवां प्रगट न होइ।
जाके लागी सो लखे, के जिहि लाई सोइ॥
झल उठा झोली जली, खपरा फूटिम फूटि।
जोगी था सो रमि गया, आसणि रही बिभूत॥
अगनि जू लागि नीर में, कंदू जलिया झारि।
उतर दषिण के पंडिता, रहे विचारि बिचारि॥
दौं लागी साइर जल्या, पंषी बैठे आइ।
दाधी देह न पालवै सतगुर गया लगाइ॥
गुर दाधा चेल्या जल्या, बिरहा लागी आगि।
तिणका बपुड़ा ऊबर्या, गलि पूरे के लागि॥
आहेड़ी दौ लाइया, मृग पुकारै रोइ।
जा बन में क्रीला करी, दाझत है बन सोइ॥
पाणी मांहे प्रजली, भई अप्रबल आगि।
बहती सलिता रहि गई, मेछ रहे जल त्यागि॥
समंदर लागी आगि, नदियां जलि कोइला भई।
देखि कबीरा जागि, मंछी रूषां चढ़ि गई॥
बिरहा कहै कबीर कौं तू जनि छाँड़े मोहि।
पारब्रह्म के तेज मैं, तहाँ ले राखौं तोहि॥
तीन्यूं मिलि करि जोइया, (तब) उड़ि उड़ि पड़ैं पतंग॥
मार्या है जे मरेगा, बिन सर थोथी भालि।
पड्या पुकारे ब्रिछ तरि, आजि मरै कै काल्हि॥
हिरदा भीतरि दौ बलै, धूंवां प्रगट न होइ।
जाके लागी सो लखे, के जिहि लाई सोइ॥
झल उठा झोली जली, खपरा फूटिम फूटि।
जोगी था सो रमि गया, आसणि रही बिभूत॥
अगनि जू लागि नीर में, कंदू जलिया झारि।
उतर दषिण के पंडिता, रहे विचारि बिचारि॥
दौं लागी साइर जल्या, पंषी बैठे आइ।
दाधी देह न पालवै सतगुर गया लगाइ॥
गुर दाधा चेल्या जल्या, बिरहा लागी आगि।
तिणका बपुड़ा ऊबर्या, गलि पूरे के लागि॥
आहेड़ी दौ लाइया, मृग पुकारै रोइ।
जा बन में क्रीला करी, दाझत है बन सोइ॥
पाणी मांहे प्रजली, भई अप्रबल आगि।
बहती सलिता रहि गई, मेछ रहे जल त्यागि॥
समंदर लागी आगि, नदियां जलि कोइला भई।
देखि कबीरा जागि, मंछी रूषां चढ़ि गई॥
बिरहा कहै कबीर कौं तू जनि छाँड़े मोहि।
पारब्रह्म के तेज मैं, तहाँ ले राखौं तोहि॥
Author - Saroj Jangir
दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं कबीर के दोहों को अर्थ सहित, कबीर भजन, आदि को सांझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें। |