कबीर मन पंछी भया भावे तो उड़ जाय

कबीर मन पंछी भया भावे तो उड़ जाय

कबीर मन पंछी भया, भावे तो उड़ जाए,
जो जैसी संगती करे, सो वैसा ही फल पाए।
कबीर तन पंछी भया, जहां मन तहां उड़ी जाए,
जो जैसी संगती करे, सो तैसा ही फल पाए।।

हम वासी उस देश के, जहां जातवर्णकुल नाहिं,
शब्द से मिलावा हो रहा, देह मिलावा नाहिं।
हम वासी उस देश के, जहां जातवर्णकुल नाय,
ये जी शब्द मिलावा हो रहा, और देह मिलावा नाय।।

हम पंछी परदेसी मुसाफिर, आए हैं सैलानी,
रहावूं तुम्हारी नगरी में, जब लग है दाना~पानी।।

खेल पर खेल तू खूब कर ले, आखिर है जो जानी,
ओ अवसर थारो फेर न आवे, फेर मिलण को नाहिं।
हम पंछी परदेसी मुसाफिर, आए हैं सैलानी।।

चेतन होकर चेत ज्यों भाई, नहीं तो तासों हैरानी,
देखो दुनिया यूं चली जावे, जैसे नदियों का पानी।
हम पंछी परदेसी मुसाफिर, आए हैं सैलानी।।

परदेसी से प्रीत लगाई, डूब गई जिंदगानी,
बोल्यो चाल्यो माफ करज्यो, इतनी रखना मेहरबानी।
हम पंछी परदेसी मुसाफिर, आए हैं सैलानी।।

मनुष्य जनम महा पदार्थी, जैसे पारस की खानी,
कहत कबीरा सुनो भाई साधो, वाणी कोई बिरले जाणी।
हम पंछी परदेसी मुसाफिर, आए हैं सैलानी।।


!! Anil Nagori !! हम पंछी परदेशी मुसाफिर !! अनिल नागौरी !! Hum Panchhi pardeshi musafir !!

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Saroj Jangir Author Admin - Saroj Jangir

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