एक ओमकार सतनाम हिंदी मीनिंग Ek Onkar Satnaam Meaning

एक ओमकार सतनाम हिंदी मीनिंग Ek Onkar Satnaam Meaning

एक ओमकार सतनाम करता पुरखु,
निरभउ निरवैरु अकाल मूरति
अजूनी सैभं गुरप्रसादि ॥
Ek Onkaar Satnaam Karata Purakhu,
Nirbhaie Nirvairu Akaal Murati,
Anuji Sabhaie Gurprasaadi.

(ੴ ਸਤਿਨਾਮੁ ਕਰਤਾ ਪੁਰਖੁ ਨਿਰਭਉ ਨਿਰਵੈਰੁ,
ਅਕਾਲ ਮੂਰਤਿ ਅਜੂਨੀ ਸੈਭੰ ਗੁਰਪ੍ਰਸਾਦਿ.)

Ek Omkar satnam karta Purakh Meaning

एक ओमकार सतनाम करता पुरखु का हिंदी में अर्थ है की इस सम्पूर्ण जगत का स्वामी एक ही है और वह ही ब्रह्माण्ड का निर्माता है। उसका नाम सत्य है। वह भय से रहित और किसी के प्रति बैर भाव नहीं रखता है। वह जन्म मरण के बंधन से मुक्त है और स्वंय में ही परिपूर्ण है। यह गुरु साहिब का मूल मन्त्र है। 
 
एक ओमकार सतनाम हिंदी मीनिंग Ek Omkar satnam karta Purakh Meaning in Hindi

 
श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी,  अत्यंत ही पवित्र ग्रंथ है, जो सिखों के संत और गुरुओं की वाणी को प्रकट करता है। इसमें ना केवल इश्वर के विषय में प्राणी को जानकारी प्राप्त होती है अपितु मानवता, सत्य अहिंसा आदि की भी प्रेरणा मिलती है।

श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी की बाणी का आरंभ एक ओंकार मूल मंत्र से होता है, जो गुरु नानक देव जी के द्वारा सभी को दिया गया है।  यह एक आध्यात्मिक मंत्र है जिसका महत्वपूर्ण स्थान है। ओंकार एक प्राचीन धार्मिक और आध्यात्मिक मंत्र है जिसे अनेक धर्मों में प्रयोग किया जाता है। इसे साधारणतया ब्रह्मा /निराकार इश्वर के प्रतीक के रूप में समझा जाता है, जो समस्त जगत में समाया हुआ है। 

एक ओमकार सतनाम शब्दार्थ Ek Onkar Satnaam Mool Mantra Word Meaning

  • इक - एक ही।
  • ओन -समस्त ब्रह्माण्ड का, सम्पूर्ण।
  • कार -निर्माता/कर्ता।  
  • एक ओमकार- एक परम पूर्ण सत्य ब्रह्म, वाहेगुरु जी।
  • सतनाम- उसी का नाम सत्य है।
  • करता- करने वाला वही पूर्ण सत्य है जो समस्त जीवों की रक्षा करता है।
  • पुरखु- वह सब कुछ करने में पूर्ण है, सक्षम है (ईश्वर)
  • निरभउ- वह पूर्ण रूप से भय रहित है, निर्भय है। जैसे देव, दैत्य और जीव जन्म लेते हैं और मर जाते हैं, वह इनसे भी परे है, उसे काल का कोई भय नहीं है।
  • निरवैरु- वह बैर भाव से दूर है। वह किसी के प्रति बैर भाव नहीं रखता है।
    अकाल-
    वह काल से मुक्त है, वह ना तो जन्म लेता है और नाहीं मरता है। वह अविनाशी है।
  • मूरति-अविनाशी के रूप में वह सदा ही स्थापित रहता है।
  • अजूनी-वह अजन्मा है। वह पूर्ण है और जन्म और मृत्यु के फेर से, आवागमन से मुक्त है।
  • सैभं- वह स्वंय के ही प्रकाश से प्रकाशित है, वह स्वंय में ही रौशनी है।
  • गुरप्रसादि- गुरु के प्रसाद (कृपा) के फल स्वरुप सब संभव है क्योंकि गुरु ही जीवात्मा को अज्ञान से अँधेरे से ज्ञान के प्रकाश की तरफ मोड़ता है। 
 
आपने सही रूप से बताया है कि "एक ओंकार सतनाम करता पुरखु" का हिंदी में अर्थ है कि इस सम्पूर्ण जगत का स्वामी एक ही है और वह ही ब्रह्माण्ड का निर्माता है। उसका नाम सत्य है। इस मंत्र में दोहराया गया है कि वह भय से रहित है और किसी के प्रति बैर भाव नहीं रखता है, वह जन्म मरण के बंधन से मुक्त है और स्वंय में ही परिपूर्ण है।
 
यह मंत्र "गुरु साहिब का मूल मंत्र" है, जिसे सिख धर्म में बहुत महत्व दिया जाता है। इस मंत्र का अर्थ समस्त जीवात्माओं को ब्रह्मा या ईश्वर के एकत्व और सच्चाई को समझाने का प्रयास करता है। इसके माध्यम से, साधक ईश्वर के साथ अपने संबंध को एकत्व और भक्ति के साथ अनुभव कर सकता है, जिससे उसका मार्ग संचित और स्पष्ट होता है।

गुरु साहिब का मूल मंत्र एक प्रकार से एक ब्रह्मग्यानी योगी द्वारा एक ईश्वरीय सत्य के अनुभव को संक्षेप में प्रकट करता है, जिससे सभी मनुष्य आत्मिक उन्नति की ओर प्रगति कर सकते हैं। 

मूल मंत्र की पहली पंक्ति "इक ओंकार" है, जिसका अर्थ है "केवल एक ही ईश्वर है"। यह मंत्र गुरु नानक देव जी द्वारा प्रस्तुत किया गया है और इससे सिख धर्म की मूल भावना को संक्षेप में प्रकट किया गया है।

"इक ओंकार" का प्रतीक सिखों के लिए एक महत्वपूर्ण संकेतिक चिह्न है। यह संकेत करता है कि सभी मानव एक ही ईश्वर के अंश हैं और सभी मनुष्यों में एकता और समानता होनी चाहिए। इस मंत्र के माध्यम से सिख समुदाय को भगवान के एकत्व के विश्वास का बोध होता है और वे अपने धर्म के मार्ग में सदैव संयमित और अनुशासित रहने को प्रेरित किए जाते हैं।

गुरुद्वारे और सिख घरों में "इक ओंकार" का प्रतीक अक्सर देखा जाता है। यह प्रतीक सिख समुदाय में एकता, शांति, और सामरस्य की भावना को दर्शाता है और उन्हें अपने समर्पित और आध्यात्मिक जीवन के प्रति प्रेरित करता है। "इक ओंकार" का अभिप्रेत विश्वास सिख धर्म के मूल अद्यात्मिक सिद्धांतों में से एक है और यह सिख समुदाय के अनुयायियों को सदैव सच्चे और प्रेमपूर्वक रहने के लिए प्रोत्साहित करता है।
 
एक ओमकार सतनाम हिंदी मीनिंग Ek Omkar Satnaam Hindi Meaning
 

Ek Omkar Satnam Karta Purakh  in Hindi/Punjabi (Gurumukhi) Mool Mantra

जपु आदि सचु जुगादि सच,
है भी सचु नानक होसी भी सच।
Jap Aadi Sach, Jugaadi Sach,
Hai Bhi Sach Naanak Hosi Bhi Sach.
(ਆਦਿ ਸਚੁ ਜੁਗਾਦਿ ਸਚੁ,
ਹੈ ਭੀ ਸਚੁ ਨਾਨਕ ਹੋਸੀ ਭੀ ਸਚੁ )

जपु - जाप करो। ईश्वर के नाम के जाप से ही विकार दूर होने लगते हैं।
आदि सचु - अकाल पुरुष इस जगत/श्रष्टि की रचना और निर्माण से पूर्व ही सत्य है।
जुगादि सच- वह युगों युगों, युगों के प्रारम्भ से ही सत्य है।
है भी सचु - वर्तमान में भी वह सच है, सत्य है।
नानक होसी भी सच-भविष्य में भी वह सत्य होगा। इस प्रकार भूत वर्तमान और भविष्य में वह निरंकार, अकाल पुरुष ही स्थापित है। 
सोचै सोचि न होवई,
जे सोची लख वार,
Soche Sochi Na Hovai,
Je Sochi Lakh Baar.
(ਸੋਚੈ ਸੋਚਿ ਨ ਹੋਵਈ ਜੇ ਸੋਚੀ ਲਖ ਵਾਰ )

सोचै - स्नान करने से कोई शुद्ध नहीं बन जाता है।
सोचि न होवई- स्नान आदि बाह्य शुद्धता से कोई शुद्ध नहीं बन सकता है। शुद्ध बनने के लिए मन की निर्मलता का होना आवश्यक है।
जे सोची लख वार- चाहे कोई लाख बार स्नान कर ले।  

चुपै चुप न होवई जे लाइ रहा लिव तार। 
Chupe Chup Na Hovai, Je Laai Raha Liv Taar.
(ਚੁਪੈ ਚੁਪ ਨ ਹੋਵਈ ਜੇ ਲਾਇ ਰਹਾ ਲਿਵ ਤਾਰ)

चुपै-बाह्य रूप से/भौतिक रूप से चुप हो जाने से चुप्पी नहीं हो पाती है। भाव है की आत्मिक आनंद के लिए मौखिक कोलाहल से दूर रहना और चुप रहना काफ़ी नहीं होता है।
चुप न होवई - चुप नहीं हुआ जा सकता है। आत्मिक शीतलता और ठहराव प्राप्त नहीं किया जा सकता है।
जे लाइ रहा- जो लगाए रखा।
लिव तार - जब तक वह सांसारिकता से जुड़ा रहता है और हृदय से विकारों को दूर नहीं करता है।
भाव है की चुप हो जाने से आंतरिक शान्ति (चुप्पी) को प्राप्त नहीं किया जा सकता है। आंतरिक शान्ति तभी प्राप्त हो सकती है जब जीव अपने हृदय से विषय विकारों को दूर नहीं करता है। 

भुखिआ भुख न उतरी जे बंना पुरीआ भार।
Bhukhiya Bukh Na Utari,
Je Bana Puriya Bhaar.
(ਭੁਖਿਆ ਭੁਖ ਨ ਉਤਰੀ ਜੇ ਬੰਨਾ ਪੁਰੀਆ ਭਾਰ)

भुखिआ-भूखे की भूख।
भुख न उतरी-भूख दूर नहीं होती है।
जे बंना पुरीआ भार- यदि पुरियों (खाद्य प्रदार्थ) का भार, काफी मात्रा में पुरियों को का भार बना कर, समस्त पुरियों को खा लिया तब भी।
भाव है की जो भूखा है उसकी भूख खाने से कभी दूर नहीं होती है। यदि वह इस जगत से समस्त खाद्य प्रदार्थों का बोझ/ भार (खूब सारे) भी ग्रहण कर ले तो भी उसकी भूख दूर नहीं होती है। मन की तृष्ण रूपी भूख को संतृप्त करके दूर नहीं किया जा सकता है। 
 
सहस सिआणपा लख होहि,
त इक न चलै नालि।
Sahas Siaanapa Lakh Hohi,
Te Ik Na Chale Naali.
ਸਹਸ ਸਿਆਣਪਾ ਲਖ ਹੋਹਿ ਤ ਇਕ ਨ ਚਲੈ ਨਾਲਿ)

सहस सिआणपा लख होहि -किसी के पास हजारों, लाखों चतुराई हो तो भी वह किसी काम की नहीं है।
त इक न चलै नालि- एक भी साथ नहीं चलती है।
भाव है की कोई अपने मन में हजारों और लाखों चतुराई कर ले लेकिन उसकी चतुराई से ईश्वर की प्राप्ति सम्भव नहीं है। चतुराई एक तरह से सांसारिक युक्ति है जिसका गहन भक्ति से कोई लेना देना नहीं होता है। 


किव सचिआरा होईऐ किव कूड़ै तुटै पालि।
Kiv Sachiaara Hoiye,
Kiv Kude Tute Pali.
(ਕਿਵ ਸਚਿਆਰਾ ਹੋਈਐ ਕਿਵ ਕੂੜੈ ਤੁਟੈ ਪਾਲਿ)

किव सचिआरा होईऐ- कैसे प्रभु के समक्ष सच्चा बना जा सकता है।
किव कूड़ै तुटै पालि- कैसे मिथ्या / भ्रम की दीवार को कैसे तोडा जा सकता है।
साधक कैसे पूर्णता के प्रकाश को धारण कर सकता है, कैसे वह अपने मालिक के समक्ष सच्चा बन सकता है। 
हुकमि रजाई चलणा नानक लिखिआ नालि।
Hukami Rajaai Chalana,
Naanak Likhiya Naali.
(ਹੁਕਮਿ ਰਜਾਈ ਚਲਣਾ ਨਾਨਕ ਲਿਖਿਆ ਨਾਲਿ)

हुकमि रजाई चलणा - ईश्वर की रजा और हुक्म पर चलने से ही।
नानक लिखिआ नालि- सतगुरु नानक देव जी ने लिखा है, फ़रमाया है।
भाव है की ईश्वर की रज़ा के अनुसार चलने वाला ही जीव सत्य को प्राप्त कर सकता है,  यही नानक देव जी की वाणी (कथन) है। 

Ek Omkar - Miss Pooja - Shabad Gurbani

 गुरु नानक देव जी ने सिख धर्म की नींव रखी थी और उनका जन्म 1469 ईसवी में लाहौर के तलवंडी (अब ननकाना साहिब) में हुआ था। उनका जीवन परमात्मा के प्रति अटूट भक्ति और सेवा में बिता। उन्होंने अपने शिष्यों को भगवान् के सत्य मार्ग की शिक्षा दी और अखंडता और सभी मनुष्यों के भाईचारे का संदेश दिया।

गुरु नानक देव जी के विचारों में समाज के सभी लोगों को समानता, सामंजस्य, और समरसता का संदेश था। उनका उपदेश था कि इस सृष्टि के सभी मनुष्य एक ही परमात्मा के बच्चे हैं और उन्हें भेदभाव नहीं करना चाहिए। उन्होंने हिन्दू और मुस्लिम समुदायों के बीच धार्मिक भेदभाव के खिलाफ उठाव किया और सभी मनुष्यों के लिए धर्मीकरण की आवश्यकता को बताया।

गुरु नानक देव जी के उपदेश ने समाज में एकता और भाईचारे के संदेश को बढ़ावा दिया और सिख धर्म की संस्कृति और तत्त्वों को विकसित किया। उनके शिक्षाओं को उनके बाद के सभी गुरुओं ने अपनाया और सिख धर्म को एक समृद्ध और सामाजिक धरोहर बनाया। उनकी उपास्यता और उनके उपदेश आज भी लाखों लोगों के जीवन में प्रेरणा और दिशा प्रदान कर रहे हैं।
 
इक ओंकार सतनाम करता पुरख ..
अकाल मूरत
अजूनी सभम
गुरु परसाद जप आड़ सच जुगाड़ सच
है भी सच नानक होसे भी सच
सोचे सोच न हो वे
जो सोची लाख वार
छुपे छुप न होवै
जे लाइ हर लख्तार
उखिया पुख न उतरी
जे बनना पूरिया पार
सहास्यांपा लाख वह है
ता एक न चले नाल
के वे सच यारा होइ ऐ
के वे कूड़े टूटते पाल
हुकुम रजाई चलना नानक लिखिए नाल
ੴ ਸਤਿ ਨਾਮੁ ਕਰਤਾ ਪੁਰਖੁ ਨਿਰਭਉ ਨਿਰਵੈਰੁ ਅਕਾਲ ਮੂਰਤਿ ਅਜੂਨੀ ਸੈਭੰ ਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ 
ਜਪੁ।। 
ਆਦਿ ਸਚੁ ਜੁਗਾਦਿ ਸਚੁ ਹੈ ਭੀ ਸਚੁ।। ਨਾਨਕ ਹੋਸੀ ਭੀ ਸਚੁ।।

The passage you provided appears to be a description of the Supreme Being, the Ultimate Reality, or the Divine, often referred to as "Ik Onkar" in Sikhism. "Ik Onkar" is a fundamental concept in Sikh philosophy and theology, representing the oneness and unity of the Divine.
Here's the translation of the passage:
"This Being is one, truth by name, creator, fearless, without hatred, of timeless form, unborn, self-existent, and known by the Guru's grace."
In this description, the Divine is characterized as:
  1. One: The Supreme Being is singular, indivisible, and represents the oneness of all existence.
  2. Truth by name: The Divine is the ultimate truth, representing the underlying reality of the universe.
  3. Creator: The Supreme Being is the source of all creation, responsible for bringing the universe into existence.
  4. Fearless: The Divine is beyond fear, and its nature is one of fearlessness and courage.
  5. Without hatred: The Supreme Being is free from hatred or enmity, and its nature is one of boundless love and compassion.
  6. Timeless form: The Divine exists beyond the limitations of time and space, beyond birth and death, and is eternal.
  7. Unborn: The Supreme Being is not subject to the cycle of birth and death but exists in an eternal state.
  8. Self-existent: The Divine is self-sustaining and does not depend on anyone or anything for its existence.
  9. Known by the Guru's grace: The true understanding and realization of the Divine come through the grace and guidance of the Guru (spiritual teacher).
Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

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