हिंडोरे झूलत तन सुकुमार
हिंडोरे झूलत तन सुकुमार
हिंडोरे झूलत तन सुकुमार,पुलकि पुलकि राधे उर लागत,
प्रीतम प्रान आधार।
भाइ बसन सजे मनसिज के,
उर वर हार सुढार,
सुख में झूलति कुँवरि लाड़िली,
रमकत स्याम उदार।
जुगल सरूप अनूप विराजत,
मनमथ भेद अपार,
श्रीरसिक बिहारी की छवि निरखत,
खरे कुंज के द्वार।
हिंडोरे झूलत तन सुकुमार ।
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