पढ़ि गुणि ब्राहमन भये किरती भई संसार मीनिंग Padhi Guni Brahman Bhaye Meaning : Kabir Ke Dohe
पढ़ि गुणि ब्राहमन भये, किरती भई संसार,
बस्तु की तो समझ नहीं, ज्यों खर चंदन भार।
Padhi Guni Brahman Bhaye, Kirati Bhai Sansar,
Vastu Ki To Samajh Nahi, Jyo Khar Chandan Bhar.
पढ़ि गुणि ब्राहमन भये किरती भई संसार मीनिंग Padhi Guni Brahman Bhaye Meaning/Arth
केवल किताबी ज्ञान व्यक्ति का कोई भला नहीं कर सकता है। ज्ञान जब तक आत्मिक ना हो, आचरण में ना उतरे तब तक उस ज्ञान का कोई महत्त्व नहीं है। पढ़कर व्यक्ति ब्राह्मण हो गया है, यहाँ ब्राह्मण से आशय विद्वान से है, उसकी कीर्ति भी समस्त संसार में व्याप्त हो गई है लेकिन उसे वस्तु/तत्व की समझ नहीं है तो उसका ज्ञान की काम का। जैसे गधे पर चन्दन का भार होता है, लेकिन गधा अपने ऊपर लदे चन्दन का महत्त्व नहीं जानता है, उसके उपयोग में चंदन नहीं आता है इसलिए वह उसके लिए निर्थक है। ऐसे ही किताबी भार लादने से क्या भला होने वाला है, जब तक की हम किताबी ज्ञान को अपने आचरण में ना उतार लें।
आशय है की किताबी ज्ञान के स्थान पर व्यक्ति को अपने आचरण पर ध्यान देना चाहिए और सूक्ष्म विषयों पर भी ध्यान देकर चिन्तन करना चाहिए. स्वंय के अवगुणों को दूर करना चाहिये और गुरु के बताये गए मार्ग का अनुसरण करना चाहिए।
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Author - Saroj Jangir
दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं कबीर के दोहों को अर्थ सहित, कबीर भजन, आदि को सांझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें।
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