सब धरती कागज करूँ लेखनी सब बनराय मीनिंग Sab Dharati Kagaj Karu Meaning
सब धरती कागज करूँ, लेखनी सब बनराय,सात समुंदर की मसि करूँ, गुरु गुण लिखा न जाय।
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सब धरती कागज करूँ लिखनी (लेखनी ) सब बनराय।
सात समुद्र की मसि करूँ, गुरु गुण लिखा न जाय॥
सब धरती कागज करूँ लिखनी (लेखनी ) सब बनराय।
सात समुद्र की मसि करूँ, गुरु गुण लिखा न जाय॥
Sab Dharati Kagaj Karu, Lekhani Sab Banray,
Sat Samundar Ki Masi Karu, Guru Gun Likha Na Jaye.
दोहे के शब्दार्थ Word Meaning of Kabir Doha Hindi
सब : सारी, समस्त।
धरती : धरा, पृथ्वी
कागज करूँ : कागज बना लूँ।
सब धरती कागज करूँ : इस धरती पर जितना भी कागज है उसे एकत्रित करके, सारी धरती को कागज बना लूँ।
लिखनी : कलम
सब बनराय : वन/जंगल की लकड़ी से लेखनी करूँ (समस्त जंगल जी लकड़ी को लेखनी बना लूँ।
सात समुद्र : सातों समुधरा की।
की मसि करूँ : सातों समुद्र के पानी को स्याही (मसि ) बना लूँ।
गुरु गुण लिखा न जाय : गुरु का गुण लिखा ना जाय, हरी गुण बहुत महान है।
दोहे का हिंदी मीनिंग / भावार्थ
यदि हम सारे संसार को कागज मान लें, पूरे जंगलों की लकड़ी की कलम बना लें और सात समुद्रों को स्याही बना दें, तो भी हम अपने गुरु के महत्वपूर्ण गुणों को पूरी तरह से व्यक्त नहीं कर सकते। हमारे जीवन में गुरु की महिमा हमेशा अद्वितीय रहती है, और उनका ज्ञान हमारे लिए अनमोल धन होता है। गुरु की महिमा को शब्दों में वर्णन नहीं किया जा सकता है।
गुरु की महिमा अपार है। धरती के सभी कागजों को एकत्रित करके, वन में उपलब्ध सभी वृक्षों की लकड़ी को एकत्रित करके और सातों समुद्रों के पानी की स्याही बना ली जाय तब भी वे कागज, लेखनी और स्याही कम पड़ेगी गुरु महिमा को लिखने की, यह महिमा है गुरु की। इस दोहे में साहेब ने बताया है की गुरु की महिमा कितनी अधिक है। गुरु की महिमा का वर्णन शब्दों में करना मुश्किल है। व्यक्ति जीवन में तमाम उम्र भर माया के भंवर जाल में उलझा रहता है। माया क्या है और माया का भ्रम क्या होता है ? यह कैसे पता चले ? वस्तुतः इसी का बोध साहिब की वाणी से होता है की जीवन में गुरु का क्या महत्त्व होता है। गुरु जगाने वाला है, गुरु ही चित्त की चेतना को पैदा करता है और सद्मार्ग की और अग्रसर करता है।
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कबीर साहेब कहते हैं की मैं इस सम्पूर्ण जगत को कागज़ बना लूँ, सभी पेड़-पौधों की कलम बना लूँ और सातों समुद्रों की सारी स्याही बना लूँ, तो भी गुरु की महिमा अपार है, इसे शब्दों में वर्णन नहीं किया जा सकता है। कबीर साहेब ने अद्भुत और आकर्षक ढंग से गुरु की महिमा का वर्णन किया है। उन्होंने कहा कि यदि हम पूरी धरती का कागज बना लिया जाय, सारे जंगल की लकड़ियां कलम की भाँति काम में ली जाय, और सात समुंद्रों का जल स्याही की रूप में काम ले, तो भी हम गुरु की महिमा को शब्दों में व्यक्त नहीं कर सकते। गुरु की महिमा का वर्णन शब्दों में किया जाना अत्यधिक कठिन है और इसे किसी शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता है।