आशा करै बैकुंठ की दुरमति तीनों काल हिंदी मीनिंग Aasha Kare Bekunth Ki Meaning : Kabir Ke Dohe Hindi Meaning/Arth
आशा करै बैकुंठ की, दुरमति तीनों काल |शुक्र कही बलि ना करीं, ताते गयो पताल ||
Aasha Kare Bekunth Ki, Durmati Teenon Kal,
Shukra Kahin Bali Na Kari, Tate Gayo Pata.
कबीर के दोहे का हिंदी मीनिंग (अर्थ/भावार्थ) Kabir Doha (Couplet) Meaning in Hindi
ऐसा साधक जो गुरु के सुझाए मार्ग पर नहीं चलता है, उसकी स्थिति तीनों काल में दुर्गति होती है, लेकिन वह आशा बैकुंठ की करता है। वह साधक आशा तो स्वर्ग की करता है लेकिन तीनों काल में वह कुमति रहित नहीं रह पाता है। उदाहरण स्वरुप बलि ने गुरु शुक्राचार्य जी की आज्ञा अनुसार नहीं किया, तो राज्य से वंचित होकर पाताल भेजा गया | कबीर दास जी इस दोहे में बलि के उदाहरण के द्वारा यह बता रहे हैं कि अगर हम अपने गुरु की आज्ञा का उल्लंघन करते हैं, तो हम भटक जाते हैं और हमें काल का सामना करना पड़ता है। बलि राजा थे और शुक्राचार्य जी उनके गुरु थे। शुक्राचार्य जी ने बलि को कहा था कि आपको अपने पिता की आज्ञा का पालन नहीं करना चाहिए। लेकिन, बलि ने अपने पिता की आज्ञा का पालन किया और शुक्राचार्य जी की आज्ञा का उल्लंघन किया। इसके परिणामस्वरूप, बलि को राज्य से वंचित कर दिया गया और उन्हें पाताल भेज दिया गया। इस दोहे से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें अपने गुरु की आज्ञा का पालन करना चाहिए। हमें अपने गुरु का सम्मान करना चाहिए और उनके मार्गदर्शन का अनुसरण करना चाहिए।