कबीर के दोहे हिंदी मीनिंग Kabir Ke Dohe Hindi Meaning Arth Sahit

कबीर के दोहे हिंदी मीनिंग Famous Kabir Ke Dohe Hindi Meaning

 चाह मिटी, चिंता मिटी मनवा बेपरवाह।
जिसको कुछ नहीं चाहिए वह शहनशाह॥
 
Chaah Mitee, Chinta Mitee Manava Beparavaah.
Jisako Kuchh Nahin Chaahie Vah Shahanashaah. 
 
कबीर के दोहे हिंदी मीनिंग Kabir Ke Dohe Hindi Meaning Kabir Ke Dohe Hindi Arth Sahit
 


कबीर के दोहे हिंदी मीनिंग-कबीर साहेब की वाणी है की इस संसार में जितनी भी चिंताएं हैं उनका मूल है "चाह"। चाह क्या है ? चाह है "मेरा" जब मेरा का भाव समाप्त हो जाता है तो स्वतः ही चित्त बेपरवाह हो जाता है। मुझे यहाँ जमीन चाहिए, मुझे इतना धन चाहिए, मेरे रिश्तेदार मेरे अनुसार चले, "मैं" का भ्रम यही कारण है चिंताओं का। तो क्या फिर बाबाजी बन जाना उचित रहेगा ?

कबीर के दोहे हिंदी में : सभी दोहे देखे Kabir Ke Dohe Hindi Me (सभी दोहे देखें)

नहीं हम थोड़े में गुजारा करना सीखें, जो मिला है वह प्रयाप्त है, यदि सहजता से जीवन को जीना सीख लिया तो समझें की समस्याओं का अंत हो गया है । जीवन चलाने के लिए कमाना भी जरुरी है, लेकिन अंधी दौड़ के प्रति सजग होना भी एक अलग पहलू है।

हिन्दू कहें मोहि राम पियारा, तुर्क कहें रहमाना।
आपस में दोउ लड़ी-लड़ी मरे, मरम न जाना कोई।।

Hindoo Kahen Mohi Raam Piyaara, Turk Kahen Rahamaana.
Aapas Mein Dou Ladee-ladee Mare, Maram Na Jaana Koee..


कबीर के दोहे हिंदी मीनिंग - धर्मों का आपस में कोई बैर नहीं है लेकिन यह कुछ लोगों के द्वारा पैदा किया गया है, ताकि उनके कार्य सिद्ध हो सकें। सभी धर्मों का मूल एक ही है, मर्म एक ही है वह है प्रेम और दया। यह मर्म सभी धर्मों का सन्देश है लेकिन इसे धूमिल किया गया है, जान बूझ कर ताकि लोग इन्ही में उलझे रहें। हिन्दू कहता है की राम सर्वोच्च है, प्यारा है और तुर्क (मुसलमान) कहता है की रहमान ही सबसे अच्छा और सर्वोच्च है। दोनों इसी बात को लेकर आपस में संघर्ष करते रहते हैं, मर्म किसी ने नहीं जाना है। भाव है की सबका मालिक एक ही है, उसे कई रूपों और रंगों में परिभाषित कर लिया गया है, वह किसी को लड़ने के लिए प्रेरित नहीं करता है। प्रेम सबसे बड़ा है, सभी धर्मों का मूल भी प्रेम ही है, सब भाईचारे से रहें यही साहेब की वाणी है।

दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करै न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे, दुःख काहे को होय।।

Duhkh Mein Sumiran Sab Kare, Sukh Mein Karai Na Koy.
Jo Sukh Mein Sumiran Kare, Duhkh Kaahe Ko Hoy..


कबीर के दोहे हिंदी मीनिंग- सुख में सुमिरण सभी करते हैं, लेकिन दुःख में सुमिरण कोई नहीं करता है, जो दुःख में ईश्वर को याद कर लिया जाए तो फिर किसी बात का दुःख नहीं रहता है। व्यक्ति दुखी होने पर किसी संकट में फंस जाने पर ईश्वर को याद करता है, लेकिन उसे सुख में कभी भी ईश्वर याद नहीं आते हैं, यही उसके आगामी दुखों का भी कारण बनता है। मानव जीवन बड़े ही यतन के उपरान्त मिला है जिसे यूँ ही व्यर्थ नहीं गवाना चाहिए। 

तिनका कबहुँ ना निन्दिये, जो पाँवन तर होय।
कबहुँ उड़ी आँखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय।।

Tinaka Kabahun Na Nindiye, Jo Paanvan Tar Hoy.
Kabahun Udee Aankhin Pade, To Peer Ghaneree Hoy..
ट्रेंडिंग कबीर दोहे Trending Kabir Dohe

  1. पाहन पूजे हरि मिले तो मैं पूजूँ पहार-कबीर के दोहे हिंदी में
  2. गुरु कुम्भार शिष्य कुम्भ है कबीर के दोहे में
  3. पोथी पढ़ी पढ़ी जग मुआ, पंडित भया ना कोय कबीर के दोहे
  4. जब मैं था हरी नाहीं, अब हरी है मैं नाही कबीर के दोहे हिंदी
  5. कबीर संगत साधु की ज्यों गंधी की बांस कबीर दोहे हिंदी में
  6. ऊँचे कुल में जनमियाँ करनी ऊंच ना होय कबिर के दोहे

कबीर के दोहे हिंदी मीनिंग-
कबीर दास जी कहते हैं की हमें तिनके को भी कम नहीं समझना चाहिए, ईश्वर की बनाई हुए सभी प्राणी महत्त्व रखते हैं। तिनके को जिसे हम बहुत ही छोटा समझते हैं, जो पांवों के निचे रहता है कभी वह उडकर आखों में गिर जाए तो बहुत ही पीड़ा होती हैं। किसी भी ब्यक्ति के महत्त्व को कम करके नहीं आंकना चाहिए। 

जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ।
मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।।
Jin Khoja Tin Paiya, Gahare Paanee Paith.
Main Bapura Boodan Dara, Raha Kinaare Baith..


दोहे का हिंदी में भावार्थ- ईश्वर के सम्बन्ध में साहेब की वाणी है की जिसने भी खोजा है उसी ने पाया है, जो डूबने से डरता है वह कभी भी गहराई में गोता लगाकर तल पर मौजूद अमूल्य वस्तुओं की खोज नहीं कर पाता है। भाव है की समुद्र की गहराई में जाने का डर त्यागना पड़ेगा। भक्ति मार्ग पर भी जीव को बहुत से त्याग करने पड़ते हैं तब जाकर तत्व की प्राप्ति होती हैं। 

माटी कहे कुम्हार से, तु क्या रौंदे मोय।
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूगी तोय॥
Maatee Kahe Kumhaar Se, Tu Kya Raunde Moy.
Ek Din Aisa Aaega, Main Raundoogee Toy.


कबीर के दोहे हिंदी मीनिंग- जीवन सदा के लिए नहीं है, एक रोज साँसों का समन्दर भी रीत जाना है, इसलिए समय रहते ईश्वर की भक्ति में अपना जीवन समर्पित करना ही श्रेयकर है। मैं हूँ और सदा रहूँगा यह भ्रम माया जनित है जो दुखों का कारण है। जैसे कुम्हार माटी को रौंधता है लेकिन माटी व्यंग कर रही है की एक रोज तू इसी माटी में समाना है। अहंकार किस विषय का ? भाव है की अहम् भाव ही दुखों का कारण है, अहम् को समाप्त करना ही पड़ेगा यदि इस जीवन को सार्थक करना है। 

माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर।
कर का मन का डार दे, मन का मनका फेर।
Maala Pherat Jug Bhaya, Phira Na Man Ka Pher.
Kar Ka Man Ka Daar De, Man Ka Manaka Pher.


कबीर के दोहे हिंदी मीनिंग- व्यक्ति को अपने मन से भक्ति करनी चाहिए, लोक दिखावे की भक्ति करने से हरी की प्राप्ति संभव नहीं है, जैसे माला फेरते फेरते कितने ही जीव समाप्त हो गए हैं लेकिन मन का संशय अभी दूर नहीं हुआ है, यह संशय / मन का फेर तभी मिटेगा जब व्यक्ति हाथों की माला / मनके को छोडकर मन के मनके को फिराए, मन से ईश्वर का सुमिरण करे तब बात बनने वाली है । दिखावटी भक्ति करने से कोई लाभ नहीं मिलने वाला है भले ही कितनी ही माला क्यों ना फेर लें। सदाचरण और सत्य के मार्ग का अनुसरण करके ही ईश्वर को समझ सकता है। साहेब की वाणी है की आडम्बर, दिखावे की भक्ति और कर्मकांड आदि को छोडकर सदाचार से हृदय सेहरी का सुमिरण ही सार्थक है। 
 
पोथी पढ़-पढ़ जग मुआ पंडित भया न कोय।
ढाई आखर प्रेम का जो पढ़े सो पंडित होय।
Pothee Padh-padh Jag Mua Pandit Bhaya Na Koy.
Dhaee Aakhar Prem Ka Jo Padhe So Pandit Hoy.


कबीर के दोहे हिंदी मीनिंग - पोथी (शास्त्र) आदि किताबी ज्ञान प्राप्त करके कोई पंडित (ज्ञानी) नहीं बना है, ढाई अक्षर प्रेम के जान लेने से व्यक्ति पंडित बनता है। प्रेम से भाव है की ईश्वर की रचना के सभी जीवों से प्रेम, आदर और दया का भाव रखना। किताबी ज्ञान कीमती है, लेकिन उसे अपने आचरण में उतारना अधिक महत्त्व रखता है। रटंत विद्या से कुछ हाशिल नहीं होने वाला है, जहाँ प्रेम उत्पन्न होगा वहां स्वतः ही अहम् शांत हो जाएगा।

ते दिन गए अकारथ ही, संगत भई न संग।
प्रेम बिना पशु जीवन, भक्ति बिना भगवंत।
Te Din Gae Akaarath Hee, Sangat Bhee Na Sang.
Prem Bina Pashu Jeevan, Bhakti Bina Bhagavant.


कबीर के दोहे हिंदी मीनिंग - यदि साध जन की, सज्जन व्यक्ति की संगत नहीं की जाए तो यह मानव जीवन पशु योनी के समान ही है, भाव है की मानव कहलाने के लिए प्रथम तो प्रेम का होना आवश्यक है, प्रेम के अभाव में ना तो भक्ति प्राप्त होती है और नाही ईश्वर की प्राप्ति संभव है। जहाँ प्रेम है वहां अहम् नहीं है और अहम् के शांत होने पर हरी का आभास स्वतः ही होने लगता है। गूढ़ बात है की दया, दूसरों के प्रति उपकार, आदि ही मनुष्य को सही मायने में मनुष्य बनाते हैं। 

रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय।
हीरा जन्म अमोल था, कोड़ी बदले जाय ॥
raat ganvaee soy ke, divas ganvaaya khaay.
heera janm amol tha, kodee badale jaay .


कबीर के दोहे हिंदी मीनिंग Famous Kabir Ke Dohe Hindi Meaning कबीर के दोहे हिंदी अर्थ सहित
दोहे का हिंदी में भावार्थ- मानव जीवन की कीमत को समझे बिना जीव अनमोल मानव जीवन को व्यर्थ में गवां देता है, समाप्त कर देता है, वह नहीं समझ पाता है की करोड़ों जतन के उपरान्त मानव जीवन मिला है, जिसे वह सोने और खाने में बिता देता है। मानव जीवन का महत्त्व भी तभी समझ में आता है जब जीव माया के भ्रम जाल को समझकर उससे बाहर निकल आए। भाव है की मानव जीवन बहुत ही अनमोल है जो हरी सुमिरण और सद्कार्यों के लिए मिला है जिसे व्यर्थ में खोना नहीं चाहिए। 

कबीरा जब हम पैदा हुए, जग हँसे हम रोये।
ऐसी करनी कर चलो, हम हँसे जग रोये।
Kabeera Jab Ham Paida Hue, Jag Hanse Ham Roye.
Aisee Karanee Kar Chalo, Ham Hanse Jag Roye.


कबीर के दोहे हिंदी मीनिंग- जब व्यक्ति जनम लेता है तो वह रोता है जग में ख़ुशी व्याप्त होती है, लेकिन साहेब की वाणी है की ऐसे कार्य करो जिससे जब इस संसार से रवानगी के वक्त मन में कोई मलाल ना रहे। दुःख तब होता है जब जीव जीवन रहते/समय रहते ईश्वर को याद ना करे, तब जाते वक़्त ऐसे मन में आता है की उस मालिक से कैसे नजर मिलायेंगे, अपने कर्मों का क्या हिसाब देंगे।

नहाये धोये क्या हुआ, जो मन मैल न जाए।
मीन सदा जल में रहे, धोये बास न जाए।
Nahaaye Dhoye Kya Hua, Jo Man Mail Na Jae.
Meen Sada Jal Mein Rahe, Dhoye Baas Na Jae.

Kabir Ke Dohe Hindi Meaning कबीर के दोहे हिंदी अर्थ सहित- आचरण की शुद्धता पर बल देते हुए साहेब की वाणी है की शारीरिक शुद्धता से कोई लाभ जब तक नहीं होने वाला जब तक व्यक्ति अपने मन के मेल को दूर नहीं कर लेता है, जैसे मछली सदा पानी में रहती है लेकिन उसको धोने से भी उसकी बांस (दुर्गन्ध) दूर नहीं होती है । ऐसे ही यदि हृदय को शुद्ध नहीं किया जाए तो जीवन व्यर्थ है, उसके बाहरी कर्मकाड और भक्ति व्यर्थ ही हैं। हृदय शुद्ध करने से भाव है की लोभ, लालच, अनीति आदि को दूर करके सदाचार, दया, प्रेम आदि को अपनाना। 

बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।
Bura Jo Dekhan Main Chala, Bura Na Miliya Koy.
Jo Dil Khoja Aapana, Mujhase Bura Na Koy.


Kabir Ke Dohe Hindi Meaning कबीर के दोहे हिंदी अर्थ सहित : दूसरों में अवगुण ढूँढने के स्थान पर व्यक्ति को स्वंय का मूल्याकन किया जाना चाहिए, जब व्यक्ति अपने हृदय का विश्लेषन करता है तब उसको इस बात का बोध होता है की बुराई तो उसी के अंदर हैं। व्यक्ति को स्वंय का मूल्यांकन करते रहना चाहिए और अवगुणों को पहचान कर उनको दूर करना चाहिए। 

धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय।
माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय।
Dheere-dheere Re Mana, Dheere Sab Kuchh Hoy.
Maalee Seenche Sau Ghada, Rtu Aae Phal Hoy.


Kabir Ke Dohe Hindi Meaning कबीर के दोहे हिंदी अर्थ सहित : व्यक्ति को धैर्य रखना चाहिए, सभी कार्य उचित समय पर आने पर ही पूर्ण होते हैं। जैसे माली सौ घड़े सींचता है लेकिन ऋतू आने पर ही पेड़/पौधे में फल लगते हैं। मानव को अपने आचरण में मानवीय मूल्यों को स्थान देना चाहिए।

बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि।
हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि।
Bolee Ek Anamol Hai, Jo Koee Bolai Jaani.
Hiye Taraajoo Tauli Ke, Tab Mukh Baahar Aani.


Kabir Ke Dohe Hindi Meaning कबीर के दोहे हिंदी अर्थ सहित : वाणी का महत्त्व बहुत है, यदि कोई इसे जान पाए। कुछ भी बोलने से पूर्व अपने हृदय में इसको नाप तौल लेना चाहिए और इसके उपरान्त ही इसे बोलना चाहिए। अहम् के कारण व्यक्ति कडवा बोलता है लेकिन तलवार के घाव तो भर जाते हैं, बोली के नहीं। इसलिए ऐसी वाणी बोलनी चाहिए जिससे स्वंय का अभिमान नष्ट हो और दूसरों को भी वह सुखद लगे। 

साईं इतना दीजिये, जा मे कुटुम समाय।
मैं भी भूखा न रहूँ, साधु ना भूखा जाय।
Saeen Itana Deejiye, Ja Me Kutum Samaay.
Main Bhee Bhookha Na Rahoon, Saadhu Na Bhookha Jaay.


दोहे का हिंदी में भावार्थ- ईश्वर से प्रार्थना है की किसी भी व्यक्ति को इतना दे जिससे वह स्वंय भी भूखा ना रहे और उसके द्वार पर आया साधू भी भूखा नहीं जाए। यहाँ संतोष की भावना को लोगों के समक्ष रखने का प्रयत्न किया गया है। संचित करने की प्रवृति/अधिक धन पाने की लालसा के कारण व्यक्ति जीवन भर परेशान रहता है। साहेब की वाणी है की इतना मिल जाए की स्वंय की क्षुदा शांत हो जाए और दवार पर लालसा लेकर आये साधू का पेट भी खाली ना रहे। 

कबीरा ते नर अँध है, गुरु को कहते और।
हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर।
Kabeera Te Nar Andh Hai, Guru Ko Kahate Aur.
Hari Roothe Guru Thaur Hai, Guru Roothe Nahin Thaur.


Kabir Ke Dohe Hindi Meaning कबीर के दोहे हिंदी अर्थ सहित : गुरु की महत्ता को दर्शाया गया है, जो व्यक्ति गुरु से दुरी बनाता है, गुरु के महत्त्व को नहीं समझता है उसको यह समझना चाहिए की एक बार तो हरी रूठ जाए तो कोई बात नहीं लेकिन यदि गुरु रूठ जाए तो वह कहीं का नहीं रहता है। गुरु ही हरी मिलन के मार्ग को प्रशस्त करता है। साहेब ने जहाँ हर स्थान पर गुरु की महिमा का वर्णन किया है वहीँ गुरु की पहचान को भी महत्त्व दिया है।
 
साधु ऐसा चाहिए जैसा सूप सुभाय।
सार-सार को गहि रहै थोथा देई उडाय॥
Saadhu Aisa Chaahie Jaisa Soop Subhaay.
Saar-saar Ko Gahi Rahai Thotha Deee Udaay.


दोहे का हिंदी में भावार्थ- साधु का स्वभाव ऐसा होना चाहिए जैसे अनाज साफ़ करने वाला सूप होता है, सूप अनाज को और भूंसे को अलग अलग करके व्यर्थ/भूंसे को उदा देता है। ऐसे ही मानव का स्वभाव ही ऐसा ही होना चाहिए जो सार सार को ग्रहण कर ले और व्यर्थ की बातों को अपने आचरण से दूर कर दे। इस संसार में तरह तरह के ज्ञान, ईश्वर के प्रति विचार भरे हुए हैं लेकिन व्यक्ति को अपने गुरु के बताए मार्ग का अनुसरण करते हुए सार सार को ग्रहण कर लेना चाहिए। 
 
आया है किस काम को किया कौन सा काम।
भूल गए भगवान को कमा रहे धनधाम।।
Aaya Hai Kis Kaam Ko Kiya Kaun Sa Kaam.
Bhool Gae Bhagavaan Ko Kama Rahe Dhanadhaam.


Kabir Ke Dohe Hindi Meaning कबीर के दोहे हिंदी अर्थ सहित : इस धरती पर हम ईश्वर के नाम का सुमिरण के लिए आए थे लेकिन वह यहाँ आकर माया के जाल में फंस कर रह गया है वह अपने मूल कार्य को भूल चूका है। भाव है की यह मानव जीवन अमूल्य है जिसके महत्त्व को समझते हुए ईश्वर की भक्ति में अपना जीवन को लगाना चाहिए। 

जब मैं था तब हरि नहीं अब हरि है मैं नाहीं ।
प्रेम गली अति सांकरी जामें दो न समाहीं ॥
Jab Main Tha Tab Hari Nahin Ab Hari Hai Main Naaheen .
Prem Galee Ati Saankaree Jaamen Do Na Samaaheen .


दोहे का हिंदी में भावार्थ- प्रेम की गली बहुत ही संकरी है इसमें अहम् और हरी दोनों एक साथ नहीं रह सकते है। हरी से मिलन यदि करना है तो अपने हृदय/मन से अहम् "मैं" को समाप्त करना पड़ेगा। द्वेत भाव का कोई स्थान नहीं है। 
 
निंदक नियरे राखिए, ऑंगन कुटी छवाय,
बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।
Nindak Niyare Raakhie, Ongan Kutee Chhavaay,
Bin Paanee, Saabun Bina, Nirmal Kare Subhaay.


दोहे का हिंदी में भावार्थ- व्यक्ति को निंदक को समीप रखना चाहिए क्योंकि वह उसके दोषों को रेखांकित करके उन्हें दूर करने में मदद करता है। इसी तरह से आंगन में छाया को रखना चाहिए। निदक व्यक्ति के दोषों को बिना साबुन और पानी के दूर कर देता है।

दुर्लभ मानुष जन्म है, देह न बारम्बार,
तरुवर ज्यों पत्ता झड़े, बहुरि न लागे डार।
Durlabh Maanush Janm Hai, Deh Na Baarambaar,
Taruvar Jyon Patta Jhade, Bahuri Na Laage Daar.


Kabir Ke Dohe Hindi Meaning कबीर के दोहे हिंदी अर्थ सहित : मनुष्य जीवन अत्यंत ही दुर्लभ है, यह बार बार प्राप्त नहीं होता है इसलिए इसके महत्त्व को समझ कर हरी भक्ति में अपना मन लगाना चाहिए, हरी भक्ति ही इस जीवन का उद्देश्य है। जैसे पेड़ से पत्ते टूट कर गिर जाते हैं वैसे ही इस जीवन कोसमाप्त होने में कोई विशेष समय नहीं लगता है, यह स्थाई नहीं है। 

कबीर लहरि समंद की, मोती बिखरे आई।
बगुला भेद न जानई, हंसा चुनी-चुनी खाई।
Kabeer Lahari Samand Kee, Motee Bikhare Aaee.
Bagula Bhed Na Jaanee, Hansa Chunee-chunee Khaee.


दोहे का हिंदी में भावार्थ- समुद्र की एक लहर आई और उससे मोती चारों और बिखर गए हैं, बगुला मोतियों का भेद समझ नहीं पाया है और हंस ने चुन चुन कर मोती खाए हैं। भाव है की सदाचार, मानवीय गुण, सत्य, हरी सुमिरण कुछ ऐसी बातें हैं जो हर किसी के समझ में नहीं आती हैं। व्यक्ति को इनको समझने के लिए गुरु के सानिध्य की आवश्यकता होती है जो उसे बगुले से हंस बना देता है और फिर वह भी इनके भेद को समझ कर मोतियों का ही चुनाव करता है। 

हेरत हेरत हे सखी, रहा कबीर हिराइ।
बूँद समानी समुंद मैं, सो कत हैरी जाइ।।
Herat Herat He Sakhee, Raha Kabeer Hirai.
Boond Samaanee Samund Main, So Kat Hairee Jai..


साखी का हिंदी भावार्थ : ईश्वर को ढूढ़ते ढूंढते साधक स्वंय ही गायब हो गया है, एक बूंद जो समुद्र में मिल गई है उसे अब कैसे ढूँढा जाए ? भाव है की जीवात्मा और परमात्मा दोनों एक ही हैं, जब जीव परमात्मा में लीन हो जाता है तो द्वेत भाव मिट जाता है और दोनों एक ही बन जाते हैं। स्वंय के होने का बोध "अहम्" जब शांत हो जाता है तब वह परमात्मा का ही अंश बन जाता है। ढूँढने के सबंध में भी उल्लेखनीय है की हम उसे ही ढूंढ रहे हैं जो "ज्ञात" है, ज्ञात इसलिए है क्योंकि वह स्वांस स्वांस में है, आत्मा में है।

भारी कहौं त बहु डरौ, हलका कहूँ तो झूठ।
मैं का जाँणौं राम कूं, नैनूं कबहुं न दीठ॥
Bhaaree Kahaun Ta Bahu Darau, Halaka Kahoon To Jhooth.
Main Ka Jaannaun Raam Koon, Nainoon Kabahun Na Deeth.


Kabir Ke Dohe Hindi Meaning कबीर के दोहे हिंदी अर्थ सहित : यदि ईश्वर को भारी कहूँ तो डर लगता है और यदि सूक्ष्म कहूँ तो यह असत्य है। मैं राम के बारे में वर्णन नहीं कर सकता हूँ क्योंकि मैंने राम को आँखों से देखा नहीं है। ईश्वर जहाँ वृहद रूप में सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड है वहीँ सूक्ष्म रूप में पानी से और हवा से पतला है। भाव है की ब्रह्म कण कण में है और ब्रह्म ही कण भी है। उल्लेखनीय है की साहेब ने अनेकों स्थानों पर ईश्वर के रूप को लेकर वर्णन किया है, और बताया है की वह महसूस करने योग्य है, उसे कोई भौतिक रूप में समझे तो उचित नहीं है।

जिहि बन सिह न संचरै, पंषि उड़ै नहिं जाइ।
रैनि दिवस का गमि नहीं, तहां कबीर रह्या ल्यो आइ॥
Jihi Ban Sih Na Sancharai, Panshi Udai Nahin Jai.
Raini Divas Ka Gami Nahin, Tahaan Kabeer Rahya Lyo Aa
i.

साखी का हिंदी भावार्थ : शून्य अवस्था के विषय पर साहेब की वाणी है की जिस वन में सिह विचरण नहीं करते हैं और जहाँ पक्षी भी नहीं उड़ते हैं ऐसे स्थान पर जहाँ दिन और रात का भेद नहीं रहता है वहां पर साहेब ने अपना ध्यान लगा रखा। ऐसे स्थान पर इन्द्रियों का कोई महत्त्व नहीं होता है। ऐसा स्थान है ब्रह्म नाद, जहाँ सांसारिक कोई भाव नहीं रहता है, वहां पर शून्य है जो है जहाँ है।

सुरति ढीकुली ले जल्यो, मन नित ढोलन हार।
कँवल कुवाँ मैं प्रेम रस, पीवै बारंबार॥
Surati Dheekulee Le Jalyo, Man Nit Dholan Haar.
Kanval Kuvaan Main Prem Ras, Peevai Baarambaar.

Kabir Ke Dohe Hindi Meaning कबीर के दोहे हिंदी अर्थ सहित : सहस्त्रार चक्र रूपी कमल कुआं प्रेम के रस से भरा पड़ा है, स्मृति की ढेकुली (पानी भरने वाली) लय की रस्सी से इस रस को अन्दर लाया जाता है।

गंग जमुन उर अंतरै, सहज सुंनि ल्यौ घाट।
तहाँ कबीरै मठ रच्या, मुनि जन जोवैं बाट॥
Gang Jamun Ur Antarai, Sahaj Sunni Lyau Ghaat.
Tahaan Kabeerai Math Rachya, Muni Jan Jovain Baat.


साखी का हिंदी भावार्थ : इड़ा और पिंगला के मध्य सुषुम्ना के ऊपर ब्रह्मघाट/शून्य शिखर है कबीर ने इसी स्थान को अपना निवास स्थान बना लिया है।

नैना अंतरि आव तूँ, ज्यूँ हौं नैन झँपेउँ।
नाँ हौं देखौं और कूं, नाँ तुझ देखन देउँ॥
Naina Antari Aav Toon, Jyoon Haun Nain Jhanpeun.
Naan Haun Dekhaun Aur Koon, Naan Tujh Dekhan Deun.

Kabir Ke Dohe Hindi Meaning कबीर के दोहे हिंदी अर्थ सहित : आत्मा अपने प्रियतम से कह रही है की तुम मेरे नैनो में प्रवेश करो और जैसे ही तुम प्रवेश करोगे मैं नैनों को बंद कर लुंगी, ना तो मैं और किसी को देखूंगी और ना ही मैं किसी को तुम्हें देखने दूंगी। साधक का यह अनन्य प्रेम है की वह अपने ब्रह्म परपूर्ण अधिकार चाहती है।

मेरा मुझ में कुछ नहीं, जो कुछ है सो तेरा।
तेरा तुझको सौंपता, क्या लागै है मेरा॥
Mera Mujh Mein Kuchh Nahin, Jo Kuchh Hai So Tera.
Tera Tujhako Saumpata, Kya Laagai Hai Mera.

साखी का हिंदी भावार्थ : मेरा अपना कुछ भी नहीं है जो कुछ भी है वह आपका ही है। जो भी मेरा है, यथा यश सम्पति और ज्ञान वो मैं आपको सौंपता हूँ। मैंने आपकी वस्तु को आपको ही सौंप दिया है इसमें मेरा कुछ भी नहीं लगा है ।

काया कमंडल भरि लिया, उज्जल निर्मल नीर।
तन मन जोबन भरि पिया, प्यास न मिटी सरीर॥
Kaaya Kamandal Bhari Liya, Ujjal Nirmal Neer.
Tan Man Joban Bhari Piya, Pyaas Na Mitee Sareer.

साहेब की वाणी है की मैंने शरीर रूपी कमंडल को निर्मल जल से भर लिया है, तन मन से पूर्ण यौवन में उसके रस का पान किया लेकिन प्यास तो मिटी ही नहीं। भाव है की भक्ति रस पिने की इच्छा और अधिक तीव्र होती जाती है और शांत नहीं होती है।

मन उलट्या दरिया मिल्या, लागा मलि मलि न्हांन।
थाहत थाह न आवई, तूँ पूरा रहिमान॥
Man Ulatya Dariya Milya, Laaga Mali Mali Nhaann.
Thaahat Thaah Na Aavee, Toon Poora Rahimaan.

साखी का हिंदी भावार्थ : मन माया जनित सांसारिकता से विमुख होकर मन ब्रह्मज्ञान की और अग्रसर हो गया है। ब्रह्मज्ञान के सागर में मल मल के नहाने लगा लेकिन फिर भी उसने इसकी थाह को प्राप्त नहीं किया है।

कबीर प्रीतडी तौ तुझ सौं, बहु गुणियाले कंत।
जे हँसि बोलौं और सौं, तौं नील रँगाउँ दंत॥
Kabeer Preetadee Tau Tujh Saun, Bahu Guniyaale Kant.
Je Hansi Bolaun Aur Saun, Taun Neel Rangaun Dant.

कबीर के दोहे हिंदी अर्थ सहित : भाव है की मेरा प्रेम तो अपने प्रियतम से है (पूर्ण ब्रह्म) जिसमे अनेकों गुण हैं और यदि मैं अपने प्रियतम के होते हुए किसी और से बोलू तो मेरे दांतों में कालिक लग जाए। भाव है की जैसे पतिव्रता पत्नी अपने स्वामी के गुण अवगुण के बावजूद भी अपने पति के प्रति ही समर्पित रहती है वैसे ही जीवात्मा भी पूर्ण परमात्मा के प्रति समर्पित ही रहती है। जीवात्मा सदा अपने स्वामी के प्रति वफादार बनी रहती है।

कबीर रेख स्यंदूर की, काजल दिया न जाइ।
नैनूं रमइया रमि रह्या, दूजा कहाँ समाइ॥
Kabeer Rekh Syandoor Kee, Kaajal Diya Na Jai.
Nainoon Ramiya Rami Rahya, Dooja Kahaan Samai.

साखी का हिंदी भावार्थ : जीवात्मा ने अपने माथे पर सौभाग्य का सिन्दूर लगा रखा है जिस पर काजल (कालिख) नहीं लगाईं जा सकती है। भक्ति के प्रेम के रस के सिन्दूर के स्थान पर माया जनित कालिख को नहीं पोता जा सकता है। भाव है की भक्ति रस को जिसने समझा है, भक्ति के महत्त्व को जिसने समझा है वह माया जनित तुच्छ विकारों में अपना मन नहीं लगता है। 

कबीर सीप समंद की, रटै पियास पियास।
संमदहि तिणका बरि गिणै स्वाँति बूँद की आस॥
Kabeer Seep Samand Kee, Ratai Piyaas Piyaas.
Sammadahi Tinaka Bari Ginai Svaanti Boond Kee Aas.

जो जीवात्मा अपना मन पूर्ण ब्रह्म में लगाती है वह मायाजनित तुच्छ कार्यों से संतुष्ट नहीं होती है, जैसे समुद्र की सीप अथाह पानी में रहकर भी समुद्र को तिनके के तुल्य समझती है और उसे एक बूंद स्वाति की प्यास रहती है वैसे ही जीवात्मा अपने स्वामी से मिलने के लिए आतुर रहती है और वह अन्य किसी कार्य / माया से प्रशन्न नहीं रहती है। विषय वासनाओं का सुख उसके लिए तुच्छ ही रहता है।

दो जग तो हम अंगिया, यहु डर नाहीं मुझ।
भिस्त न मेरे चाहिये, बाझ पियारे तुझ॥
Do Jag To Ham Angiya, Yahu Dar Naaheen Mujh.
Bhist Na Mere Chaahiye, Baajh Piyaare Tujh.

जीवात्मा अपने प्रिय से कहती है की तुम्हारे होने पर/मिलने पर मुझे दोझक भी स्वीकार है, मुझे नरक का डर नहीं है और यदि तुम्हारे बगैर मुझे स्वर्ग भी मिले तो मैं उसको नकार दूंगी । यहाँ जीवात्मा का अपने परमात्मा के प्रति पूर्ण समर्पण भाव को परदर्शित किया गया है। इस साखी में ईश्वर के प्रति अनन्य प्रेम को दर्शाया गया है।

जे वो एकै न जाँणियाँ तो जाँण्याँ सब जाँण।
जो वो एक न जाँणियाँ, तो सबहीं जाँण अजाँण॥
Je Vo Ekai Na Jaanniyaan To Jaannyaan Sab Jaann.
Jo Vo Ek Na Jaanniyaan, To Sabaheen Jaann Ajaann.

पूर्ण ब्रह्म तत्व के प्रति साहेब की वाणी है की जिसने उस तत्व को जान लिया है उसे अब किसी अन्य को जानने की आवश्यकता नहीं है और यदि उसे छोड़कर यदि सब जान भी लिया जाए तो समझें की कुछ भी नहीं जाना है। भाव है की यदि किसी को जानने/समझने की जरूरत है तो वह पूर्ण ब्रह्म ही है।

कबीर कलिजुग आइ करि, कीये बहुतज मीत।
जिन दिल बँधी एक सूँ, ते सुखु सोवै नचींत॥
Kabeer Kalijug Aai Kari, Keeye Bahutaj Meet.
Jin Dil Bandhee Ek Soon, Te Sukhu Sovai Nacheent.

जीव ने कलयुग में आकर अनेकों जीवों और वस्तुओं से प्रेम कर लिया है, उन्हें अपना मित्र बना लिया है। जिसने अपना हृदय उस एक परम ब्रह्म में लीन कर लिया है/चित्त को लगा लिया है वह निश्चिंत होकर/ बेफिकर होकर आराम से सोता है। भाव है की संसार के समस्त व्यवहार दुखों का कारण बनते हैं, ईश्वर से प्रेम ही सच्ची शांति और सुख का कारण है।

कबीर कुता राम का, मुतिया मेरा नाउँ।
गलै राम की जेवडी, जित खैचे तित जाउँ॥
Kabeer Kuta Raam Ka, Mutiya Mera Naun.
Galai Raam Kee Jevadee, Jit Khaiche Tit Jaun.


मैं तो राम जी का कुत्ता हूँ जिसका नाम मुतिया है (मुतिया से आशय निरीह पिल्लै से है ) मेरे गले में तो राम नाम की जेवड़ी (रस्सी) पड़ी हुई है, इस रस्सी को यह जिधर भी खींचता है मैं तो उधर ही जाता हूँ। यहाँ पर अपने मालिक के प्रति पूर्ण समर्पण को दिखाकर स्वंय के अस्तित्व को बहुत ही तुच्छ कर लिया है। मालिक के प्रति हमें पूर्ण समर्पण कर देना चाहिए।

तो तो करै त बाहुड़ों, दुरि दुरि करै तो जाउँ।
ज्यूँ हरि राखैं त्यूँ रहौं, जो देवै सो खाउँ॥
To To Karai Ta Baahudon, Duri Duri Karai To Jaun.
Jyoon Hari Raakhain Tyoon Rahaun, Jo Devai So Khaun. 
 
इस साखी में भी साहेब ने स्वामी के प्रति पूर्ण समर्पण और भक्ति भाव को दर्शाया है, मालिक यदि तू तू करके पुकारे तो मैं (कुत्ते के समान) उसके पास चला जाता हूँ और जब वह मुझे दूर करे तो मैं दूर हो जाता हूँ, ज्यों हरी मुझे रखता है वैसे ही मैं तो रहता हूँ, जो हरी मुझे खाने को देता है वह मैं स्वीकार कर लेता हूँ। भाव है की अपने मालिक के प्रति हमें पूर्ण समर्पण की आवश्यकता है, वह जैसे और जिस हाल में रखे उसी हाल में हमें रहना चाहिए। "तों" "तों" (तू तू - पास बुलाना) और दुरी दुरी (दुरे दुरे-दूर हट ) देसज शब्दों का उपयोग किया गया है।

मन प्रतीति न प्रेम रस, नां इस तन मैं ढंग।
क्या जाणौं उस पीव सूं, कैसे रहसी रंग॥
Man Prateeti Na Prem Ras, Naan Is Tan Main Dhang.
Kya Jaanaun Us Peev Soon, Kaise Rahasee Rang.

साखी का हिंदी भावार्थ : मेरे हृदय में ना तो पूर्ण विशवास हा और नाही इस तन के पास कोई ऐसा ढंग है जिससे हरी/स्वामी को प्राप्त किया जा सके, पता नहीं उस प्रियतम से मिलने का आनंद किसे जीवात्मा मना पाएगी।

जिहि सर घड़ा न डूबता, अब मैंगल मलि न्हाइ।
देवल बूड़ा कलस सूँ, पंषि तिसाई जाइ॥
Jihi Sar Ghada Na Doobata, Ab Maingal Mali Nhai.
Deval Booda Kalas Soon, Panshi Tisaee Jai.

जिस सरोवर में घड़ा तक नहीं डूबता है, वहां आश्चर्य की बात है की हाथी मल मल के नहा रहा है, कलश से देवल डूब गया है, लेकिन वहां पर पक्षी भी तृप्त नहीं हो रहे हैं। भाव ही की यह जल विषय वासना से प्रथक जल है। शरीर रूपी पक्षी इसमें जल को नहीं पी सकता है क्योंकि यह विषय वासना से युक्त है।

सबै रसाइण मैं किया, हरि सा और न कोइ।
तिल इक घट मैं संचरे, तौ सब तन कंचन होइ॥
Sabai Rasain Main Kiya, Hari Sa Aur Na Koi.
Til Ik Ghat Main Sanchare, Tau Sab Tan Kanchan Hoi.

भावार्थ : मैंने बहुत से रसायनों को उपयोग में लिया लेकिन राम नाम के रसायन जैसा कोई रसायन नहीं है, राम रसायन के एक तिल के समान प्राप्त करने से सम्पूर्ण काया सोने में तब्दील हो जाती है।

हरी-रस पीया जानिये, जे कबहु ना जाई खुमार।
मैमन्ता घूमत रहाई, नाही तन की सार।।
Haree-ras Peeya Jaaniye, Je Kabahu Na Jaee Khumaar.
Maimanta Ghoomat Rahaee, Naahee Tan Kee Saar.
 
हरी के नाम का खुमार उसे चढ़ा ही रहता है जो हरी के नाम का रस पी लेता है। वह अपनी ही मस्ती में चारों तरफ घूमता ही रहता है उसे संसार का कोई होश/ खबर नहीं रहती है, उसे फिर तन की चिंता नहीं सताती है और ना ही उसे कोई विषय वासना ही सता सकती है।
कबीर हरी रस यो पिया, बाकी रही ना थाकी। 

पाका कलस कुम्भार का, बहुरी ना चढाई चाकी।।
Kabeer Haree Ras Yo Piya, Baakee Rahee Na Thaakee.
Paaka Kalas Kumbhaar Ka, Bahuree Na Chadhaee Chaakee..

कबीर के दोहे हिंदी अर्थ सहित : जिस व्यक्ति को भक्ति का रस चढ़ जाता है, जिसने भी भक्ति के रस को पी लिया है उसे फिर किसी अन्य वस्तु की आवश्यकता नहीं रहती है। वह तो कुम्हार के पक्के घड़े के भाँती बन जाता है जिसे फिर से चाकी पर चढाने की आवश्यकता नहीं रहती है।

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Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

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