
भोले तेरी भक्ति का अपना ही
कबीर के दोहे का हिंदी में अर्थ / भावार्थ Kabir Doha Hindi Meaning
कबीर साहेब इस दोहे में साधना की चरम अवस्था का वर्णन कर रहे हैं। साधना/भक्ति की सर्वोच्च स्थिति में जीवात्मा का अहम समाप्त हो जाता है। आत्मा और परमात्मा में एकाकार हो जाता है। परमात्मा को ढूंढते ढूंढते (हेरत) साधक / जीवात्मा स्वंय ही खो गयी है। एक बूँद समुद्र में समां गयी है अब उसे कैसे ढूँढा जाय ? कबीर दास जी का यह दोहा साधना की चरमावस्था में आत्मा की स्थिति का वर्णन करता है। इस दोहे में, कबीर दास जी कहते हैं कि साधना में लीन होकर, आत्मा अपने अहंभाव को खो देती है। वह अपने को परमात्मा से अलग नहीं समझती है। वह परमात्मा में लीन हो जाती है और अपना अस्तित्व मिटा देती है।
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Author - Saroj Jangir
दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं कबीर के दोहों को अर्थ सहित, कबीर भजन, आदि को सांझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें। |