कबीर चोरी जारी वैश्या वृति हिंदी मीनिंग Kabir Chori Jari Vaishya Vriti Meaning : Kabir Ke Dohe Hindi Arth Sahit
कबीर चोरी जारी वैश्या वृति, कबहु ना करयो कोए।पुण्य पाई नर देही, ओच्छी ठौर न खोए।।
Kabir Chori Jari Vaishya Vriti, Kabahu Na Kariyo Koy,
Punya Pai Nar Dehi, Ochhi Thour Na Khoy.
कबीर के दोहे का हिंदी मीनिंग (अर्थ/भावार्थ) Kabir Doha (Couplet) Meaning in Hindi
कबीर साहेब इस दोहे में सन्देश देते हैं की चोरी, वैश्यावृति आदि कभी भी किसी को नहीं करनी चाहिए। नर देह अत्यंत ही पुन्य है, इसे नीच स्थान (कुकर्म) पर जाकर बर्बाद मत करो। आशय है की मानव देह में जन्म बहुत ही यत्न के बाद मिलती है और यह अत्यंत ही मूल्यवान है, ऐसे में किसी पाप कर्म में जीवन को बर्बाद नहीं करना चाहिए। कबीरदास जी इस दोहे में चोरी, जारी और वैश्यावृत्ति को पाप कार्य बताते हैं। वे कहते हैं कि ये कार्य कभी भी नहीं करने चाहिए, क्योंकि ये मानव शरीर को नष्ट कर देते हैं। मानव शरीर बहुत पुण्यों से प्राप्त होता है और इसे शुभ कार्यों में लगाना चाहिए। कबीरदास जी कहते हैं कि चोरी और वैश्यावृत्ति से मनुष्य का मन दूषित होता है और वह पाप के मार्ग पर अग्रसर होता है. अथ जीवन के महत्त्व को समझकर हरी की भक्ति में अपना समय लगाना चाहिए.