कबीर गुरु कै भावते दुरहि ते दीसन्त हिंदी मीनिंग Kabir Guru Ke Bhavate Meaning : Kabir Ke Dohe Meaning, Hindi Arth/Bhavarth
कबीर गुरु कै भावते, दुरहि ते दीसन्त |
तन छीना मन अनमना, जग से रूठि फिरंत ||
Kabir Guru Ke Bhavate, Durahi Te Disant,
Tan Chhena Man Anmana Jag Se Ruthi Firant.
कबीर के दोहे का हिंदी मीनिंग (अर्थ/भावार्थ) Kabir Doha (Couplet) Meaning in Hindi
हरी भक्त के बारे में कबीर साहेब कहते हैं की हरी भक्त दूर से ही दिखाई देने लगे हैं। ऐसे साधक गुरु के प्रिय होते हैं और वे शरीर से क्षीण होते हैं और मन से अनमने (अलगाव) रहते हैं, वे जगत से रूठे हुए फिरते रहते हैं। आशय है की हरी भक्त साधक इस दुनिया से विरक्त रहता है, वह माया जनित व्यवहार को महत्त्व नहीं देता है। विरह की अग्नि में वह दग्ध रहता है जिससे वह तन से भी कमजोर दिखाई देता है। इस दोहे में संत कबीर दास जी कहते हैं कि जो व्यक्ति सतगुरु के ज्ञान से दूर रहता है, उसके लक्षण दूर से ही पहचाने जा सकते हैं। उसका शरीर कृश और निर्जीव होता है, उसका मन व्याकुल और अशांत होता है, और वह जगत से उदास और निराश होकर विचरण करता है।