कबीर की साखी हिंदी अर्थ सहित NCERT Solution For Class 10 Kabir Ki Sakhi Kabir Ke Dohe Meaning

कबीर की साखी हिंदी अर्थ सहित NCERT Solution For Class 10 Kabir Ki Sakhi Kabir Ke Dohe Hindi Meaning

ऐसी बाँणी बोलिए मन का आपा खोई।
अपना तन सीतल करै औरन कै सुख होई।।
Or
ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोय |
औरन को शीतल करै, आपहु शीतल होय ||
Aisee Baannee Bolie Man Ka Aapa Khoee.
Apana Tan Seetal Karai Auran Kai Sukh Hoee.
Or
Aisee Baanee Bolie, Man Ka Aapa Khoy |
Auran Ko Sheetal Karai, Aapahu Sheetal Hoy ||
 
कबीर की साखी हिंदी अर्थ सहित NCERT Solution For Class 10 Kabir Ki Sakhi Kabir Ke Dohe Hindi Meaning

ऐसी बानी बोलिए मन का आपा खोय हिंदी शब्दार्थ Aisi Baani Boliye Man Ka Aapa Kyo Word Meaning Hindi

बाणी : बोली, जुबान,
मन का आपा : 'अहम्'
खोयी : समाप्त होना।
अपना तन सीतल करै : स्वंय को भी सुखद लगता है।
औरन कै सुख होई : दूसरों के भी सुख होता है / अच्छा लगता है।

कबीर साखी का हिंदी मीनिंग Hindi Meaning of Kabir Sakhi

इस दोहे में कबीर साहेब की वाणी है की व्यक्ति को अपनी बोली में मृदु होना चाहिए. उसकी वाणी में अहम् (घमंड) नहीं होना चाहिए. मृदु वाणी जहाँ दूसरों को सुखद अनुभव करवाती है वहीँ स्वंय को भी सुखद अनुभव करवाती है. कटु वचनों के स्थान पर मृदु भाषी होने पर जहाँ अहम्, क्रोध और अन्य विकार दूर होते हैं वहीँ पर स्वंय को भी प्रशन्नता मिलती है. आत्मविश्वास और घमंड में भी अंतर होता है. 
हमें आत्मविश्वास तो रखना चाहिए लेकिन घमंड का त्याग कर देना चाहिए. मृदु वचनों का प्रभाव भी चमत्कारिक होता है और वह सभी को अच्छा लगता है. ग्यानी व्यक्ति वही होता है जो अभिमान का त्याग कर दे.

कस्तूरी कुण्डली बसै मृग ढ़ूँढ़ै बन माहि।
ऐसे घटी घटी राम हैं दुनिया देखै नाँहि॥
या
कस्तूरी कुंडलि बसै, मृग ढूँढे बन मांहि।
ऐसे घटि घटि राम हैं, दुनिया देखै नांहि॥
Kastooree Kundalee Basai Mrg Dhoondhai Ban Maahi.
Aise Ghatee Ghatee Raam Hain Duniya Dekhai Naanhi.
दोहे के शब्दार्थ Word Meaning of Kabir Doha
कस्तूरी : मृग की नाभि में पाया जाने वाला सुगन्धित द्रव्य (मृग की नाभि में कस्तूरी की थैली होती है)
कुण्डली : नाभी
बसै : रहना।
मृग: हिरण।
बन : जंगल।
माहि: के अंदर।
घटी घटी : हृदय में।
दोहे का हिंदी मीनिंग Hindi Meaning of Kabir Doha
इश्वर कहीं और नहीं बल्कि हमारी आत्मा में ही वास करता है. हरी तो घट घट में वास करता है लेकिन यह दुनियाँ उसे देखने में भूल करती है और यहाँ वहाँ भटकती रहती है. जैसे हिरण (मृग) की नाभि में कस्तूरी होती है लेकिन वह उस सुगंध को पाने के लिए उन्मुक्त होकर वन वन भटकता रहता है. ऐसे ही ज्ञान के अभाव में जीवात्मा भी इश्वर की प्राप्ति के लिए मंदिर मस्जिद और तीर्थ के साथ साथ कर्मकांडों में पड़ी रहती है. 
भाव है की जहाँ पर सत्य है वहीँ इश्वर का वास होता है.

जब मैं था तब हरि नहीं अब हरि हैं मैं नाँहि।
सब अँधियारा मिटी गया दीपक देख्या माँहि॥
या
जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नांहि।
सब अँधियारा मिटी गया, जब दीपक देख्या माँहि।।
Jab Main Tha Tab Hari Nahin, aub Hari Hain Main Naanhi.
Sab Andhiyaara Mitee Gaya, Jab Deepak Dekhya Maanhi.
 
कबीर साखी के शब्दार्थ Word Meaning of Kabir Sakhi
मैं - अहम् ( अहंकार )
हरि - परमेश्वर
जब मैं था तब हरि नहीं : जब अहंकार और अहम् (स्वंय के होने का बोध) होते हैं तब तक ईश्वर की पहचान नहीं होती है।
अब हरि हैं मैं नांहि : अहम् के समाप्त होने पर हरी (ईश्वर का वास होता है ) का भान होता है।
अँधियारा - अंधकार
सब अँधियारा मिटी गया : अंधियारे होता है अहम्, माया, नश्वर जगत के होने का।
जब दीपक देख्या माँहि : अहम् के समाप्त होने के उपरांत अंदर का विराट उजाला दिखाई देता है।
दोहे का हिंदी मीनिंग Hindi Meaning of Kabir Doha
इस दोहे में कबीर साहेब स्पष्ट करते हैं की इश्वर की प्राप्ति के लिए अहम् (अहंकार) को समाप्त करना आवश्यक होता है. जब तक अहंकार रहता है तब तक इश्वर की प्राप्त संभव नहीं हो पाती है. अहम के दमन के उपरान्त इश्वर की प्राप्ति होती है और इश्वर के प्राप्त हो जाने पर अहम् शेष नहीं बचता है. 
जब सत्य का प्रकाश उत्पन्न होता है तो सभी अन्धकार समाप्त हो जाता है. दीपक हृदय के अन्दर है और उसे वह व्यक्ति ही जान सकता है जिसने स्वंय के मान सम्मान को समाप्त कर दिया है. कबीर की इस साखी में सधुक्कड़ी भाषा का सुन्दर उपयोग हुआ है. साथ ही दीपक और अंधियारा में रूपक अलंकार का और दीपक देख्या में अनुप्रास अलंकार का उपयोग हुआ है. इस साखी का मूल भाव है की इश्वर के परिचय में सबसे बड़ा बाधक अभिमान है. 
अहम् के नाश हो जाने पर एकमात्र पूर्ण ब्रह्म का अस्तित्व ही शेष रहता है. दीपक से आशय ज्ञान के प्रकाश से है. जब ज्ञान का प्रकाश उत्पन्न होता है तो अज्ञान रूपी अन्धकार स्वतः ही समाप्त हो जाता है. 

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सुखिया सब संसार है खाए अरु सोवै।
दुखिया दास कबीर है जागे अरु रोवै।।
दोहे के शब्दार्थ Word Meaning of Kabir Doha
सुखिया -सुखी है.
सब संसार है-समस्त जगत सुखी है.
खाए अरु सोवै-खाकर चैन से सोते हैं.
दुखिया -दुखी.
दास कबीर है-जो ग्यानी है.
जागे अरु रोवै-इश्वर प्राप्ति में विरह में तडपता है.
Sukhiya Sab Sansaar Hai Khae Aru Sovai.
Dukhiya Daas Kabeer Hai Jaage Aru Rovai.
दोहे का हिंदी मीनिंग Hindi Meaning of Kabir Doha
कबीर साहेब की वाणी है की अज्ञानी व्यक्ति तो अज्ञान के अँधेरे में डूबा हुआ है और उसे किसी प्रकार के ज्ञान के अभाव में वह खा पीकर चैन से सोता है लेकिन जो ग्यानी है वे ही विरह में तडपते हैं. ज्ञान की प्राप्ति की लालसा में जीवात्मा जागती है और रुदन करती है. समस्त जगत ही मोह माया के भ्रम में पड़े हैं. 
अज्ञानी व्यक्ति मृत्यु से बेखबर होकर विषय वासनाओं की पूर्ति में ही पड़ा रहता है. लेकिन जो कबीर साहेब की तरह से जाग गए हैं, जिनको ज्ञान प्राप्ति की लालसा लग चुकी है वे अधिक दुखी रहते हैं. वे रात और दिन हरी से मिलने को व्याकुल रहते हैं. इश्वर को पाने की अतिशय बेचैनी उनको चैन नहीं पाने देती है.

बिरह भुवंगम तन बसै मन्त्र न लागै कोई।
राम बियोगी ना जिवै जिवै तो बौरा होई।।
Birah Bhuvangam Tan Basai Mantr Na Laagai Koee.
Raam Biyogee Na Jivai Jivai To Baura Hoee
दोहे के शब्दार्थ Word Meaning of Kabir Doha

बिरह भुवंगम -विरह रूपी सांप.
तन बसै - तन में वास करता है.
मन्त्र न लागै कोई-कोई उपचार कार्य नहीं करता है.
राम बियोगी ना जिवै -राम का वियोगी जीवित नहीं रहता है.
जिवै तो बौरा होई-यदि वह जीवित रह भी जाए तो पागल हो जाता है.
दोहे का हिंदी मीनिंग Hindi Meaning of Kabir Doha
विरह में घायल जीवात्मा हरी मिलन के लिए बेचैन रहती है मानों जैसे उसके तन में बिरह का सांप रहता हो जो उसे हर समय काटता रहता है. जिस पर कोई भी औशधि/मन्त्र  कार्य नहीं करता है. राम वियोगी जीवित नहीं रहता है, यदि वह जीवित भी रहे तो उसे पागल समझा जाता है, वह पागल हो जाता है. राम से मिलने को वह सदा ही आतुर रहता  है और सांसारिक क्रियाओं से उसकी क्रियाएं मेल नहीं खाती हैं इसलिए वह पागल के सद्रश्य हो जाता है. कबीर की इस साखी में सांगरूपक अलंकार का उपयोग हुआ है.

निंदक नेड़ा राखिये, आँगणि कुटी बँधाइ।
बिन साबण पाँणीं बिना, निरमल करै सुभाइ॥
या

निंदक नियरे राखिए ऑंगन कुटी छवाय,
बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।
Nindak Niyare Raakhie Ongan Kutee Chhavaay,
Bin Paanee, Saabun Bina, Nirmal Kare Subhaay.
Ya
Nindak Neda Raakhiye, Aangani Kutee Bandhai.
Bin Saaban Paanneen Bina, Niramal Karai Subhai.

कबीर साखी के शब्दार्थ Word Meaning of Kabir Sakhi
निंदक -निंदा करने वाला, अवगुणों को बताने वाला.
नियरे राखिए - निकट रखना चाहिए।
ऑंगन -आँगन में।
कुटी छवाय-कुटीया के समक्ष पेड़ पौधों की छांया रखनी चाहिए।
बिन पानी-बगैर पानी।
साबुन बिना-बगैर साबुन के।
निर्मल करे सुभाय- स्वभाव को निर्मल कर देता है। निंदक व्यक्ति अवगुणों और दोष को रेखांकित और चिन्हित करता है जिससे उनका निराकरण सम्भव हो पाता है।
कबीर साखी का हिंदी मीनिंग Hindi Meaning of Kabir Sakhi
हमें आंगन में छाया रखनी चाहिए, पेड़ पौधे लगाने चाहिए जिससे छाया मिल सके. ऐसे ही हमें हमारे आस पास निंदक व्यक्ति को अवश्य प्रशय देना चाहिए, संगत करनी चाहिए जिससे स्वंय के अवगुणों का बोध हो सके और व्यक्ति उनको दूर कर पाए. स्वंय के चित्त की निर्मलता के लिए आवश्यक है की हम हमारे अवगुणों का विश्लेषण करें जो की हमें निंदक ही बता सकता है और इसके विपरीत चापलूस व्यक्ति हमारे अवगुणों को भी नहीं बताता है और अवगुण ज्यों के त्यों बने रहते हैं.

पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।
या
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुवा, पंडित भया न कोइ।
एकै अखिर पीव का, पढ़ै सु पंडित होइ॥
Pothee Padhi Padhi Jag Mua, Pandit Bhaya Na Koy,
Dhaee Aakhar Prem Ka, Padhe So Pandit Hoy.
Ya
Pothee Padhi Padhi Jag Muva, Pandit Bhaya Na Koi.
Ekai Akhir Peev Ka, Padhai Su Pandit Hoi.
कबीर साखी के शब्दार्थ Word Meaning of Kabir Sakhi
पोथी पढ़ि पढ़ि - किताबी ज्ञान हासिल करके/किताबों को पढ़ कर।
जग मुवा-जग समाप्त हो गया है।
पंडित भया न कोइ-कोई पंडित नहीं बन सका है/ज्ञान को प्राप्त नहीं कर पाया है।
एकै अषिर पीव का-
एक अक्षर हरि का जिसने पढ़ा है। हरी का प्रिय का एक अक्षर।
पढ़ै सु पंडित होइ-वही पण्डित है /ज्ञानी है। 
कबीर साखी का हिंदी मीनिंग Hindi Meaning of Kabir Sakhi
कबीर साहेब की वाणी है की पोथी और किताबों को पढ़कर जग समाप्त होता जा रहा है। लेकिन कोई भी वास्तविक ज्ञान को प्राप्त नहीं कर पाया है। जिसने भी ढाई अक्षर प्रेम के पढ़ें हैं वही सही मायनों में पंडित है/ग्यानी है। पुस्तकें ज्ञान देती हैं लेकिन वे तभी सार्थक हैं जब हमारे स्वभाव में ईश्वर प्राप्ति के लिए सदगुण हों, प्रेम हो, दया हो और मानवीय मूल्य हों। किताबी और सैद्धांतिक ज्ञान का कोई महत्त्व नहीं होता है यदि व्यवहार में इसे ना उतारा जाए। यहां पीव के अक्षर से भाव है की अपने स्वामी/ईश्वर के सबंध में एक भी अक्षर पढ़ ले। महज पोथी के आधार पर ईश्वर को प्राप्त करना सम्भव नहीं है। इस दोहे में सधुकड़ी भाषा का उपयोग हुआ है और पोथी पढ़ी में अनुप्रास अलंकार के साथ ही पढ़ी पढ़ी में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार उपयोग में लिया गया है।
हम घर जाल्या आपणाँ, लिया मुराड़ा हाथि।
अब घर जालौं तास का, जे चलै हमारे साथि॥
Ham Ghar Jaalya Aapanaan Liya Muraada Haathi.
Ab Ghar Jaalaun Taas Ka, Je Chalai Hamaare Saathi.  
 
कबीर साखी के शब्दार्थ Word Meaning of Kabir Sakhi
जाल्या - जलाया
आपणाँ -
अपना
मुराड़ा -
जलती हुई लकड़ी , ज्ञान
हाथि-
हाथ (अपने हाथों से अपना घर जलाया है )
जालौं -
जलाऊं
तास का -
उसका 
कबीर साखी का हिंदी मीनिंग Hindi Meaning of Kabir Sakhi
कबीर साहेब की वाणी है की उन्होंने अपने अंधकार रूपी घर/विषय विकार और अहम् रूपी घर / संसारिकता के मोह माया के घर को अपने हाथों से ज्ञान की लकड़ी (मुराड़ा ) से जला दिया है। अब जो भी मेरे साथ चलना चाहे में उसका भी घर (विषय वासना, मोह माया का घर ) जला दूंगा। 
भाव है की ईश्वर की साधना में जो सबसे बड़े बाधक हैं -विषय विकार, मोह माया, इन्हे जब तक समाप्त नहीं किया जाता है, तब तक कोई भी ईश्वर की पहचान नहीं कर सकता है। यह सद्गुरु ही  होता है जो इनको ज्ञान की अग्नि से समाप्त कर देता है। जिसे भी ज्ञान की प्राप्ति करनी है उसे इनके घर को जलाना ही होगा। इस साखी का उद्देश्य व्यक्ति को भौतिकता से विमुख करके भक्ति मार्ग पर अग्रसर करना है। भाव है की मैंने अपने विषय विकार को दूर कर दिया है, उनको जला दिया है। मुराडी (जलती हुई लकड़ी) लेकर जिसका तात्पर्य है ज्ञान रूपी मशाल जिसके प्रभाव से अज्ञान का अँधेरा दूर होता है और सत्य का मार्ग प्रशस्त होता है। देसज शब्दों के अतिरिक्त इस साखी में रूपकातिश्योक्ति अलंकार का सुन्दर उपयोग हुआ है।
 
भजो रे मन राम गोविंद हरी ॥
जप तप साधन कछु नहिं लागत, खरचत नहिं गठरी ॥
भजो रे मन राम गोविंद हरी ॥
संतत संपत सुख के कारन, जासे भूल परी ॥
भजो रे मन राम गोविंद हरी ॥
कहत कबीर जो मुख राम नहीं , वो मुख धूल भरी ॥

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