कबीर के साहसी विचार Kabir Ke Prerak Sahasik Vichar

कबीर के साहसी विचार Kabir Ke Prerak Sahasik Vichar

कबीर भारत में नहीं पुरे विश्व में श्रेष्ठ संत, सामाजिक और धार्मिक चेतना के प्रतीक हैं। कबीर की वाणी में छंद, अलंकार, शब्दों की बाजीगरी भले ही ना हो लेकिन सन्देश को तार्किकता के साथ। बाह्याचार, कर्मकांड, जातीय आधार पर भेदभाव को कई सिद्ध, गुरुओं के द्वारा खंडित किया गया है लेकिन जो सहजता कबीर की वाणी में थी वो जादुई थी। तर्क ऐसे जो काटे न कटे। भाषा सहज होते हुए भी प्रभावशाली। भाषा पर कबीर का पूर्ण अधिकार था। ये सभी विशेषताएं कबीर के पास थीं। कबीर ने प्रचलित मान्यताओं का सिरे से विरोध किया, चाहे वो हिन्दू धर्म हो या फिर मुस्लिम।
 
कबीर के साहसी विचार Kabir Ke Prerak Sahasik Vichar

कबीर इतना साहस कहा से लाये। ऐसा नहीं है की कबीर को अपने जीवन से कोई लेना देना नहीं था या फिर वो अपने जीवन से हताश थे। कबीर ने कभी जीवन के प्रति निराशा नहीं दिखाई। कबीर ने जीवन के बारे में बताया की बड़े जतन से मानव देह मिलती है, इसे ईश्वर की भक्ति के लिए दिया गया है। इसे व्यर्थ में खोना नहीं चाहिए। कबीर ने वाणी में बताया है की बड़े जतन से मानव देह का निर्माण हुआ है इसे ईश्वर भक्ति में समर्पित किया जाना चाहिए। समाज सुधारक होने या साहित्य में पांडित्य प्रदर्शन करने का कबीर ने कभी प्रयत्न नहीं किया। स्वाभाव और भाषा में फक्कड़पन।

कबीर ने बहुसंख्यक लोगो की धरम सबंधी मान्यता का खंडन किया। चाहे वो धर्म के ठेकेदार हों, सामंतवादी शक्तियां हो बड़ी सहजता से उनको खरी खरी सुनाई। कबीर के साहस को आम साहस समझने की भूल कतई नहीं की जानी चाहिए क्यों की समस्त धार्मिक शक्तियों का सामंतवादी ताकतों से गठजोड़ था। जो कबीर ने कहा आज भी प्रासंगिक है लेकिन आज के युग में भी कोई कबीर जितना साहस नहीं दिखा सकता है। यह दिव्य आध्यात्मिक शक्ति ही थी जिसने कबीर में इतना साहस भर दिया था।

एक विशेष बात है जिसका उल्लेख किया जाना चाहिए। कबीर ने अपने जीवन में लोगों का तिरस्कार सहा, साम्राज्यवादी शक्तियों ने उन्हें कुचलने का प्रयत्न किया, समाज से उन्हें बहिस्कृत किया गया लेकिन इतना सब होने के बावजूद भी उनकी वाणी में प्रतिशोध और बदला लेने की भावना कहीं नहीं दिखाई देती है जो की एक संत का गुण है। उन्होंने बुराई का विरोध किया लेकिन उनका हृदय अथाह प्रेम और करुणा से भरा था।
जो तूं ब्रह्मण ब्राह्मणी का जाया
आन बाट काहे नहीं आया

जन्म के आधार पर श्रेष्ठता को कबीर ने स्वीकार नहीं किया। ब्राह्मणों की श्रेष्ठता पर उन्होंने कहा की ब्राह्मण भी आम लोगों की तरह ही है। श्रेष्ट उसके कर्म हो सकते हैं जाती नहीं। श्रेष्ठ कोई भी बन सकता है. ब्राह्मण की भी वैसे ही होती है जैसे किसी साधारण व्यक्ति की पैदा होता तो वो जन्म के आधार पर श्रेष्ठ कैसे हो सकता है। कबीर के विचारों को लोगों ने अपनाया क्यों की अब धर्म और ईश्वर के सबंधी विचार उन्हें कोई समझा रहा था। वेद, पुराण और शास्त्र संस्कृत भाषा में थे जो आम जन के पहुंच से दूर थे। पूजा पाठ और कर्मकांड ने उनकी कमर तोड़ रखी थी। कबीर ने उन्हें एक सरल और सहज राह दिखाई। ब्राह्मणों के पूजा पाठ और ईश्वर के एकाधिकार को कबीर के विचारों ने तोड़ दिया। कबीर के विचार पढ़ने के बाद आप पता लगा पाएंगे की कबीर ब्राह्मण या किसी जाती विशेष की विरोध में कतई नहीं थे अपितु उनका विरोध ब्राह्मणवाद से था। जगत का स्वामी एक है, सभी उसी की संतान है फिर कौन ब्राह्मण और कौन शुद्र।

कबीर के साहसी विचार Kabir Ke Prerak Vichaar कबीर के प्रेरक विचार 

एक बूँद ,एकै मल मुतर, एक चाम ,एक गुदा ।
एक जोती से सब उतपना, कौन बामन कौन शूद ।

धर्म का मूल है दया, शील और मानवता। पाखंड और कर्मकांड से इश्वर को प्राप्त नहीं किया जा सकता है। भेदभाव, उंच नीच और छुआछूत का स्थान किसी धर्म में नहीं है। कबीर ने देखा की कुछ लोग जन्म के आधार पर स्वंय को श्रेष्ठ घोषित करने में लगे थे। शास्त्रों और धर्म ग्रंथों पर उन्होंने कब्ज़ा जमा रखा था। उनका व्यक्तिगत जीवन और सार्वजानिक जीवन भिन्न था। कबीर ने उन लोगों पर हर स्थान पर कटाक्ष किया है जो धर्म के मूल सन्देश का पालन नहीं करते थे। सामंतवादी शक्तिया और धार्मिक शक्तियों के इस गठजोड़ था। धर्म के ठेकेदारों को सामंतवादी शक्तियों का प्रशय प्राप्त था। 
 
सामंतवादी शक्तियां लोगों का शोषण कर रही थी और धर्म के ठेकेदारों को उन्होंने प्रशय दे रखा था ताकि धर्म के नाम पर उन्हें डराया और धमकाया जा सके। पोंगा पंडितों का गिरोह उनके साथ था ताकि वो अपना कारोबार बे रोक टोक कर सके। जन्म से लेकर मृत्यु तक तरह तरह के कर्मकांड आम जनता पर थोंप दिए गए थे। उनका मकसद केवल माल बटोरने तक सिमित था। गरीब और आम जन इन दोनों के मध्य पिसते जा रहे थे। कबीर ने लोगों को इनसे सावधान रहने के लिए चेताया और बताया की इनका आचरण कैसा है।

कबीर के साहसी विचार Kabir Ke Sahasi Vichar Kabir Thoughts Hindi

एक और तो वे जिव जंतुओं पर अत्याचार करते हैं और दूसरी तरफ तिलक लगाकर, गेरुआ धारण करके इश्वर के नाम पर लोगों को गुमराह करके अपना घर भरने में लगे हैं। धर्म के नाम पर हिंशा करने वाले पण्डे, पुजारी को कबीर ने निपुण कसाई ठहराया। धर्म के नाम बलि दी जाती थी जिसे कबीर ने जिव ह्त्या के तुल्य माना और लोगों का ध्यान इस और खींच। वर्तमान समय में इसका प्रचलन ना के बराबर हो गया है लेकिन कबीर के समय निरीह जानवरों की बलि देकर ईश्वर को प्रशन्न करने की प्रथा थी। पंडा शब्द प्रज्ञा से बना है जिसका शाब्दिक अर्थ ज्ञानी और विवेकशाली होता है। लेकिन कोई विवेकशाली व्यक्ति ऐसा कैसे कर सकता है। कबीर ने देखा की देव स्थानों को बूचड़खाने में बदल दिया गया था। लोगों को उनके पाप काटने और मोक्ष प्राप्ति के लिए बेजुबान जानवरों की बली दिलवाई जाती थी। कबीर ने ऐसे पंडों और पुरोहितों पर व्यग्य करते हुए कहा है की इनका सम्मान किया जाना चाहिए क्यों की ये तो ऊँचे कुल से सबंध रखते हैं।

साधे पांडे निपुण कसाई
बकरि मारि भेड़ि को धाए, दिल में दरद न आई
करि अस्नान तिलक दे बैठे, विधिसों देव पुजाई,
आत्म मार पलक में बिनसे, रूधिर की नदी बहाई,
अति पुनीत ऊंचे कुल कहिए, सभा माहिं अधिकाई
इनसे दिच्छा सब कोई मांगे, हांसि आवै मोंहि भाई।।

सभी लोग मंदिर में क्यों नहीं जा पाएंगे, क्या वो ईश्वर की संतान नहीं है। वस्तुतःकबीर ने दलित चेतना की अलख जगाई। समाज के जिन लोगों को हाशिये पर कर दिया गया था और जिनका मंदिर में जाना प्रतिवंधित था उन लोगों में कबीर ने यह अलख जगाई की इश्वर का घर सिर्फ मंदिर नहीं है, वो इस जगत का स्वामी है और कण कण में उसका वास हैं। उसे प्राप्त करने के लिए आचरण की शुद्धता आवश्यक है। वो किसी जाती विशेष का नहीं सबका है। वो किसी तीर्थ में नहीं बल्कि सबके घट में रहता है। 

मोको कहाँ ढूंढें बन्दे मैं तो तेरे पास में
ना तीरथ में ना मूरत में ना एकांत निवास में
ना मंदिर में ना मस्जिद में ना काबे कैलाश में
ना मैं जप में ना मैं तप में ना मैं व्रत उपास में
ना मैं क्रिया क्रम में रहता ना ही योग संन्यास में
नहीं प्राण में नहीं पिंड में ना ब्रह्माण्ड आकाश में
ना मैं त्रिकुटी भवर में सब स्वांसो के स्वास में
खोजी होए तुरत मिल जाऊं एक पल की ही तलाश में
कहे कबीर सुनो भाई साधो मैं तो हूँ विशवास में

ईश्वर को कबीर ने मंदिर से निकालकर लोगों के घट में विराजमान कर दिया और और तर्कों के आधार पर सिद्ध किया की इश्वर हर जगह है, उसे सिर्फ मंदिर में ढूँढना मुर्खता है. साथ ही कबीर ने यह भी स्पष्ट कर दिया की भक्ति में आडम्बरों का कोई स्थान नहीं है वो मन से की जानी चाहिए .

कबीर के प्रेरक विचार Kabir Ke Sahasi Vichar Kabir Thoughts Hindi

कस्तूरी कुंडलि बसे, मृग ढूंढ़े वन माहिं।
ऐसे घट-घट राम है, दुनिया देखे नाहि।

जप माला छापे तिलक,सरे ना एको काम।
तन का मनका डारी दे,मन का मनका फेर।

व्यक्तिगतचेतना पर कबीर ने आडम्बर का विरोध करते हुए लोगों को समझाया की सच्ची भक्ति क्या होती है। लोगों को कबीर ने बताया की व्यक्ति दोहरे विचार रखता है जैसे मानो ईश्वर को कुछ पता ही नहीं हो। एरन की चोरी करके सुई का दान करता है और देखता है की ईश्वर उसे लेने आएंगे। ऐसे दान का कोई महत्त्व नहीं जब तक व्यक्ति दोहरे मापदंडों पर जीवन व्यतीत करता है। अंदर और बाहर का जीवन एक जैसा होना चाहिए उनमे लुकाव छिपाव नहीं होना चाहिए।

अहिरन की चोरी करै, करै सुई की दान
उॅचे चढ़ि कर देखता, केतिक दूर बिमान।

मुंड मुड़या हरि मिलें ,सब कोई लेई मुड़ाय।
बार -बार के मुड़ते ,भेंड़ा न बैकुण्ठ जाय । 

मूर्तिपूजा पर कटाक्ष करते हुए कबीर साहेब ने लोगों को चेताया की ईश्वर तो तुम्हारे अंदर है। मंदिर में जिसे तुम ढूंढ रहे हो और जिस पर तुम चढ़ावा चढ़ाते हो उसे तो पुजारी अपने घर ले जाता है और देवता को कुछ हाथ नहीं लगता है। पुजारी और पंडों ने देवताओं के नाम पर विभिन्न कर्मकांडों का अविष्कार कर लिया था। धार्मिक अनुष्ठान, पूजा पाठ और देवताओं को प्रशन्न करने के नाम पर मोटा चढ़ावा माँगा जाता था।
लाडू लावन लापसी ,पूजा चढ़े अपार।
पूजी पुजारी ले गया,मूरत के मुह छार ।
 

⭐⭐⭐ कबीर के दोहे हिंदी में : सभी दोहे देखे All Kabir Ke Dohe Hindi Me

ट्रेंडिंग कबीर दोहे Trending Kabir Dohe

एक टिप्पणी भेजें