श्री पशुपति अष्टकम


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श्री पशुपति अष्टकम

श्रीपृथिवीपतिसूरिविरचितं,
श्रीपशुपत्यष्टकं:
 
पशुपतिं द्युपतिं धरणीपतिं,
भुजगलोकपतिं च सतीपतिम्,
प्रणतभक्तजनार्तिहरं परं,
भजत रे मनुजा गिरिजापतिम्।
 
न जनको जननी न च सोदरो,
न तनयो न च भूरिबलं कुलम्,
अवति कोऽपि न कालवशं गतं,
भजत रे मनुजा गिरिजापतिम्।
 
मुरजडिण्डिमवाद्यविलक्षणं,
मधुरपञ्चमनादविशारदम्,
प्रमथभूतगणैरपि सेवितं,
भजत रे मनुजा गिरिजापतिम्।
 
शरणदं सुखदं शरणान्वितं,
शिव शिवेति शिवेति नतं नृणाम्,
अभयदं करुणावरुणालयं,
भजत रे मनुजा गिरिजापतिम्।
 
नरशिरोरचितं मणिकुण्डलं,
भुजगहारमुदं वृषभध्वजम्,
चितिरजोधवलीकृतविग्रहं,
भजत रे मनुजा गिरिजापतिम्।
 
मखविनाशकरं शशिशेखरं,
सततमध्वरभाजि फलप्रदम्,
प्रलयदग्धसुरासुरमानवं,
भजत रे मनुजा गिरिजापतिम्।
 
मदमपास्य चिरं हृदि संस्थितं,
मरणजन्मजराभयपीडितम्,
जगदुदीक्ष्य समीपभयाकुलं,
भजत रे मनुजा गिरिजापतिम्।
 
हरिविरञ्चिसुराधिपपूजितं,
यमजनेशधनेशनमस्कृतम्,
त्रिनयनं भुवनत्रितयाधिपं,
भजत रे मनुजा गिरिजापतिम्।
 
पशुपतेरिदमष्टकमद्भुतं,
विरचितं पृथिवीपतिसूरिणा,
पठति संशृणुते मनुजः सदा,
शिवपुरीं वसते लभते मुदम्।
 
हिन्दी अर्थ:
अरे मनुष्यो जो समस्त प्राणियों,
स्वर्ग, पृथ्वी और नागलोकके पति हैं,
दक्षकन्या सतीके स्वामी हैं,
शरणागत प्राणियों और,
भक्तजनों की पीड़ा दूर करनेवाले हैं,
उन परमपुरुष,
पार्वती-वल्लभ शंकरजीको भजो।
 
ऐ मनुष्यो काल के वश में पड़े हुए,
जीव को पिता, माता, भाई, बेटा,
अत्यन्त बल और कुल इनमें से,
कोई भी नहीं बचा सकता,
इसलिये तुम गिरिजापति को भजो।
 
रे मनुष्यो जो मृदंग और डमरू,
बजानेमें निपुण हैं,
मधुर पंचम स्वर के गायन में,
कुशल हैं प्रमथ और भूतगण,
जिनकी सेवामें रहते हैं,
उन गिरिजापति को भजो।
 
हे मनुष्यो शिव शिव शिव,
कहकर मनुष्य जिनको,
प्रणाम करते हैं,
जो शरणागतोंको शरण,
सुख और अभय देनेवाले हैं,
उन दयासागर,
गिरिजापति का भजन करो।
 
अरे मनुष्यो जो नरमुण्डरूपी,
मणियों का कुण्डल और,
साँपों का हार पहनते हैं,
जिनका शरीर चिता की,
धूलि से धूसर है,
उन वृषभध्वज,
गिरिजापतिको भजो।
 
अरे मनुष्यो जिन्होंने दक्ष,
यज्ञका विध्वंस किया था,
जिनके मस्तक पर,
चन्द्रमा सुशोभित है,
जो यज्ञ करने वालों को,
सदा ही फल देनेवाले हैं,
और जो प्रलय की अग्नि में देवता,
दानव और मानवों को,
दग्ध करनेवाले हैं,
उन गिरिजापति को भजो।
 
अरे मनुष्यो जगत्‌को जन्म,
जरा और मरण के भय से पीड़ित,
सामने उपस्थित भय से,
व्याकुल देखकर बहुत दिनों से,
हृदय में संचित मद का त्याग कर,
उन गिरिजापति को भजो।
 
अरे मनुष्यो विष्णु ब्रह्मा और इन्द्र,
जिनकी पूजा करते हैं,
यम और कुबेर जिनको,
प्रणाम करते हैं,
जिनके तीन नेत्र हैं तथा,
जो त्रिभुवन के स्वामी हैं,
उन गिरिजापति को भजो।
 
जो मनुष्य पृथ्वीपति सूरि के,
बनाये हुए इस अद्भुत,
पशुपति अष्टक का सदा,
पाठ और श्रवण करता है,
वह शिवपुरी में निवास करता,
और आनन्दित होता है।
 
इति श्रीपृथिवीपतिसूरिविरचितं,
श्रीपशुपत्यष्टकं सम्पूर्णम्।
 



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