सुनिये पार जो पाइया छाजिन भोजन आनि हिंदी मीनिंग Suniye Par Jo Paiya Meaning : Kabir Ke Dohe Ka Hindi Arth/Bhavarth
सुनिये पार जो पाइया, छाजिन भोजन आनि |
कहैं कबीर संतन को, देत न कीजै कानि ||
Suniye Par Jo Paiya, Chhajin Bhojan Aani,
Kahe Kabir Santan Ko, Det Na Keeje Kani.
कबीर साहेब साधू की महिमा के बारे में कहते हैं की यदि भव सागर से किसी को पार पाना है तो उसे भोजन और वस्त्र आदि संतों को देने में किसी भी प्रकार से देरी नहीं करनी चाहिए। आशय है की संत और साधुजन को यदि किसी भी प्रकार का दान दिया जाता है वह पुन्य का ही कार्य है। संतों को दान आदि देने में आना कानी नहीं करनी चाहिए।
कबीरदास जी इस दोहे में हमें यह शिक्षा दे रहे हैं कि यदि हम संसार-सागर से पार जाना चाहते हैं, तो हमें अहंकार छोड़कर संतों की सेवा करनी चाहिए। पहली पंक्ति में कबीर दास जी कहते हैं कि सुनो, यदि तुम संसार-सागर से पार जाना चाहते हो, तो भोजन और वस्त्र इकट्ठा करो और संतों को दान करो। संतों को भोजन और वस्त्र देते समय, आगा-पीछा या अहंकार मत करो, हिचको मत।