अहं अगनि हिरदै जरै गुरू सों चाहै मान हिंदी मीनिंग Aham Agani Hirade Jare Meaning

अहं अगनि हिरदै जरै गुरू सों चाहै मान हिंदी मीनिंग Aham Agani Hirade Jare Meaning : kabir ke dohe hindi arth/Bhavarth Sahit

अहं अगनि हिरदै जरै, गुरू सों चाहै मान
जिनको जम नयौता दिया, हो हमरे मिहमान
 
Ah Agani Hirade Jare Guru So Chahe Maan,
Jinko Jam Nyota Diya Ho Hamare Mehman.
 
अहं अगनि हिरदै जरै गुरू सों चाहै मान हिंदी मीनिंग Aham Agani Hirade Jare Meaning

कबीर के दोहे का हिंदी मीनिंग (अर्थ/भावार्थ) Kabir Doha (Couplet) Meaning in Hindi

संत कबीर साहेब कहते हैं की जब तक मन में अहंकार है, मान सम्मान और माया अर्जित करने की चाह है, अहम् है तब तक वह कैसे गुरु की नज़रों में सम्मान को प्राप्त कर सकता है. ऐसे लोग वे जिन्होंने जीवन के उद्देश्य को माया के प्रभाव में विस्मृत कर दिया है और यम को उन्होंने न्योता दे दिया है. संत कबीरदास जी के इस दोहे में उन्होंने अहंकार की भावना के घातक परिणामों के बारे में बताया है। जब किसी मनुष्य में अहंकार की भावना जाग्रत होती है, तो वह अपने आप को दूसरों से श्रेष्ठ समझने लगता है। वह इतना अहम् में डूब जाता है की वह अपने गुरू से भी सम्मान पाने की इच्छा रखता है।  इस तरह से वे अपने जीवन को मुश्किल बनाते हैं और अंततः मौत के मुंह में समा जाते हैं।

अहंकार एक ऐसी भावना है जो मनुष्य को अंधा बना देती है। यह उसे सही और गलत में भेद करने से रोकती है। अहंकारी व्यक्ति अपने आप को ही सर्वश्रेष्ठ मानता है और दूसरों को नीचा समझता है। वह दूसरों की भावनाओं का सम्मान नहीं करता है और उनकी मदद करने से कतराता है।

अहंकार से मुक्त होने के लिए हमें अपने मन पर नियंत्रण करना होगा। हमें यह समझना होगा कि हम कोई विशेष व्यक्ति नहीं हैं। हम सभी एक समान हैं। हमें दूसरों की भावनाओं का सम्मान करना चाहिए और उनकी मदद के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए। संत कबीरदास जी के इस दोहे में उन्होंने सही कहा है कि जब किसी मनुष्य में अहंकार की भावना जाग्रत होती है, तो वह अपने गुरू से भी सम्मान चाहता है। ऐसी प्रवृत्ति के लोग अपने देह को कष्ट देकर विपत्तियों को आमंत्रण भेजते हैं और अंततः मौत के मूंह में समा जाते हैं।
अतः इस दोहे का मूल भाव है की साधक को अपना अहम् छोड़ देना चाहिये, जैसा की कबीर साहेब कहते हैं की प्रेम की गली अति सांकरी. भक्ति और समर्पण में स्वंय के होने का भाव, मैं का कोई स्थान नहीं होता है. स्वंय को गुरु के प्रति समर्पित करके उसके द्वारा बताये गए मार्ग का अनुसरण करना, आत्मिक और सूक्ष्म स्तर पर हरी के नाम का सुमिरन ही यम से मुक्ति का द्वार है.
 
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