जब लग नाता जाति का तब लग भक्ति न होय हिंदी मीनिंग Jab Lag Nata Jati Ka Meaning : Kabir Ke Dohe Hindi Arth/Bhavarth Sahit
जब लग नाता जाति का, तब लग भक्ति न होय |नाता तोड़े गुरु बजै, भक्त कहावै सोय ||
कबीर के दोहे का हिंदी मीनिंग (अर्थ/भावार्थ) Kabir Doha (Couplet) Meaning in Hindi
इस दोहे में कबीरदास जी ने सन्देश दिया है की जब तक व्यक्ति सांसारिक जाती/पांति और वर्गों में विभक्त रहता है वह इश्वर की भक्ति नहीं कर पाता है क्योंकि ये सभी भक्ति में अवरोध हैं. साहेब कहते हैं कि जब तक साधक सांसारिक भेदभाव को मानता है, तब तक कोई भक्ति नहीं कर सकता है, चूँकि हम सभी इश्वर की ही संतान हैं, सभी का निर्माता इश्वर एक ही है। भक्ति का अर्थ है ईश्वर के प्रति प्रेम और समर्पण। जब कोई व्यक्ति ईश्वर के प्रति सच्चे मन से भक्ति करता है, तो वह ईश्वर के मार्ग पर चलने लगता है। वह अपने जीवन को ईश्वर के लिए समर्पित कर देता है। जब व्यक्ति सांसारिकता से नाता तोड़कर गुरु के चरणों में स्वंय को समर्पित करके भक्ति करता है तो वह भक्त बन जाता है, और भक्ति को पूर्ण कर इश्वर को प्राप्त कर लेता है.
कबीरदास जी कहते हैं कि जाति-भांति का भेदभाव ईश्वर के मार्ग में बाधा है। जब तक व्यक्ति जाति, धर्म और सामाजिक भेदभाव को नहीं त्याग देता, तब तक वह ईश्वर को प्राप्त नहीं कर सकता है। कबीरदास जी कहते हैं कि जब व्यक्ति जाति-भांति का भेदभाव त्याग देता है और गुरु की सेवा करता है, तो वह गुरु-भक्त कहलाता है।