जपजी साहिब पाठ Japji Sahib Full Path Lyrics Hindi by Harshdeep Kaur

जपजी साहिब पाठ Japji Sahib Full Path

जपजी साहिब परम सत्ता के प्रति प्रार्थना है जो गुरु ग्रन्थ साहिब के आरम्भ में ही अंकित है। इसकी रचना गुरु नानक देव ने की थी। जपजी का आरम्भ 'मूलमंत्र' से होता है, उसके बाद इसमें 38 और पद हैं, और अन्त में 'शलोक' (श्लोक) है। जो 38 पद हैं वे अलग-अलग छन्दों में है। गुरु ग्रन्थ साहिब की मूलवाणी जपुजी गुरु नानक द्वारा जनकल्याण हेतु उच्चारित की गई अमृतमयी वाणी है। 'जपुजी' एक विशुद्ध , सूत्रमयी दार्शनिक वाणी है जिसमें महत्वपूर्ण दार्शनिक सत्यों को सुन्दर, अर्थपूर्ण और संक्षिप्त भाषा में काव्यात्मक ढंग से अंकित किया गया है। इस वाणी में धर्म के सच्चे शाश्वत मूल्यों को सरलता के साथ प्रस्तुत किया गया है। इसमें ब्रह्मज्ञान का अलौकिक प्रकाश है। इसे रोजाना सुबह, शाम और अन्य समय में किया जाता है।
 
जपजी साहिब पाठ लिरिक्स हिंदी Japji Sahib Full Path Lyrics
 

ੴ सत नाम करता पुरख निरभओ निरवेर
अकाल मूरत अजूनी सैभं गुर प्रसाद ॥
॥ जप ॥
आद सच जुगाद सच
है भी सच नानक होसी भी सच
सोचै सोच न होवई जे सोची लख बार
चुपे चुप न होवई जे लाए रहा लिव तार
भुखिआ भुक्ख ना उतरी जे बनां पुरीआ भार
सहस सिआणपा लख होहे त इक ना चलै नाळ
किव सचिआरा होईऐ किव कूड़ै टूटे पाल
हुकुम रजाई चालणा नानक लिखिआ नाल।

हुकमी होवन आकार हुकम ना कहिया जाई
हुकमी होवन जीअ हुकम मिलै बड़ियाई
हुकमी उतम नीच हुकम लिख दुख सुख पाईयह
इकना हुकमी बख्शीश इक हुकमी सदा भवाईयह
हुकमै अंदर सभ को बाहर हुकम न कोए
नानक हुकमै जे बुझै तो ओमै कहै न कोए ॥२॥
गावे को ताण होवे किसै ताण
गावे को दात जाणै नीसाण
गावे को गुण बड़ियाईया चार
गावे को विद्या विखम वी चार
गावे को साज करे तन खेह
गावे को जीअ लै फिर देह
गावे को जापे दिसै दूर
गावे को वेखै हादरा हदूर
कथना कथी ना आवे तोट
कथ कथ कथी कोटी कोट कोट
दे दा दे लैदे थक पाहे
जुगा जुगंतर खाही खाहे
हुकमी हुकम चलाए राहो
नानक विगसै वे-परवाहो।
साँचा साहिब साँच नाय भाखिआ भाओ अपार
आखह मंगह देह देह दात करे दातार
फेर के अगै रखिये जित दिसै दरबार
मुहो कि बोलण बोलिये जित सुण धरे प्यार
अमृत वेला सच नाव बड़ियाई विचार
करमी आवे कपड़ा नदरी मोख दुवार
नानक ऐवे जाणीऐ सब आपे सचिआर।
थापेया ना जाए कीता ना होए
आपे आप निरंजन सोय
जिन सेविया तिन पाया मान
नानक गाविय गुणी निधान
गाविये सुणिये मन रखीऐ भाव
दुख परहर सुख घर लै जाए
गुरमुख नादम गुरमुख वेदम गुरमुख रहेया समाई
गुर ईसर गुर गोरख बरमा गुर पारबती माई
जे हओ जाणा आखा नाहीं कहणा कथन ना जाई
गुरां इक देह बुझाई सबना जीआ का इक दाता
सो मैं विसर ना जाई।
तीरथ न्हावा जे तिस भावा विण भाणे के नाय करी
जेती सिरठ उपाई वेखा विण करमा के मिलै लई
मत विच रतन जवाहर माणक जे इक गुर की सिख सुणी
गुरा इक देह बुझाई सबना जीआ का इक दाता
सो मैं विसर ना जाई।
जे जुग चारे आरजा होर दसूणी होय
नवा खण्डा विच जाणीअ नाळ चलै सब कोय
चंगा नाव रखाए कै जस कीरत जग लेय
जे तिस नदर ना आवई त वात न पुछै के
कीटा अंदर कीट कर दोसी दोस धरे
नानक निरगुण गुण करे गुणवंतेआ गुण दे
तेहा कोए ना सुझई ज तिस गुण कोय करे।
सुणिअै सिद्ध पीर सुर नाथ
सुणिअै धरत धवळ आकास
सुणिअ दीप लोअ पाताल
सुणिअ पोहे न सकै काल
नानक भगता सदा विगास
सुणिअै दूख पाप का नाश.

सुणिअ ईसर बरमा इन्द
सुणिअ मुख सालाहण मंद
सुणिअ जोग जुगत तन भेद
सुणिअ सासत सिमरत वेद
नानक भगतां सदा विगास
सुणिअ दूख पाप का नाश।
सुणिअ सत संतोख ज्ञान
सुणिअ अठसठ का असनान
सुणिअ पड़ पड़ पावहे मान
सुणिअ लागै सहज ध्यान
नानक भगता सदा विगास
सुणिअ दूख पाप का नाश।
सुणिअ सरा गुणा के गाह
सुणिअ सेख पीर बादशाह
सुणिअ अंधे पावे राहो
सुणिअ हाथ होवे असगाह
नानक भगता सदा विगास
सुणिअ दूख पाप का नाश।
मन्ने की गत कही न जाए
जे को कहै पिछै पछुताए
कागद कलम ना लिखणहार
मंने का बहे करन विचार
ऐसा नाम निरंजन होय
जे को मंन जाणै मन कोय।

मन्ने सुरत होवै मन बुध
मन्ने सगल भवण की सुध
मन्ने मुहे चोटा ना खाय
मन्ने जम कै साथ ना जाय
ऐसा नाम निरंजन होय
जे को मंन जाणै मन कोय।
मन्ने मारग ठाक न पाय
मन्ने पत सिओ परगट जाय
मन्ने मग ना चलै पंथ
मन्ने धरम सेती सनबंध
ऐसा नाम निरंजन होये
जे को मंन जाणै मन कोय।
मन्ने पावै मोख दुआर
मन्ने परवारै साधार
मन्ने तरै तारे गुर सिख
मन्ने नानक भवहे न भिख
ऐसा नाम निरंजन होय।
जे को मंन जाणै मन कोय।
पंच परवाण पंच परधान
पंचे पावहे दरगहे मान
पंचे सोहे दर राजान
पंचा का गुर एक ध्यान
जे को कहै करै विचार
करते कै करणै नाहीं सुमार
धौल धरम दया का पूत
संतोख थाप रखिआ जिन सूत
जै को बुझै होवै सचिआर
धवलै उपर केता भार
धरती होर परै होर होर
तिस ते भार तलै कवण जोर
जीअ जात रंगा के नांव
सबना लिखिआ गुढी कलाम
एहो लेखा लिख जाणै कोय
लेखा लिखिआ केता होय
केता ताण सुआलिहो रूप
केती दात जाणै कौण कूत
कीता पसाओं एको कवाओ
तिस ते होए लख दरीआओ
कुदरत कवण कहा विचार
वारिआ न जावा एक वार
जो तुध भावे साई भली कार
तू सदा सलामत निरंकार।
असंख जप असंख भाओ
असंख पूजा असंख तप ताओ
असंख ग्रंथ मुख वेद पाठ
असंख जोग मन रहहे उदास
असंख भगत गुण ज्ञान विचार
असंख सती असंख दातार
असंख सूर मुह भख सार
असंख मौन लिव लाए तार
कुदरत कवण कहा विचार
वारिआ न जावा एक वार
जो तुध भावे साई भली कार
तू सदा सलामत निरंकार।
असंख मूरख अंध घोर
असंख चोर हरामखोर
असंख अमर कर जाहे जोर
असंख गलवढ हत्या कमाहे
असंख पापी पाप कर जाहे
असंख कूड़िआर कूड़े फिराहे
असंख म्लेच्छ मल भख खाहे
असंख निंदक सिर करह भार
नानक नीच कहे विचार
वारिआ ना जावा एक वार
जो तुध भावे साई भली कार
तू सदा सलामत निरंकार।
असंख नाव असंख थाव
अगम अगम असंख लोअ
असंख कहह सिर भार होए
अखरी नाम अखरी सालाह
अखरी ज्ञान गीत गुण गाह
अखरी लिखण बोलण बाण
अखरा सिर संजोग वखाण
जिन एहे लिखे तिस सिर नाहे
जिव फुरमाए तेव तेव पाहे
जेता कीता तेता नाओ
विण नावे नाही को थाओ
कुदरत कवण कहा विचार
वारिआ न जावा एक वार
जो तुध भावे साई भली कार
तू सदा सलामत निरंकार।
असंख जप असंख भाओ
असंख पूजा असंख तप ताओ
असंख ग्रंथ मुख वेद पाठ
असंख जोग मन रहहे उदास
असंख भगत गुण ज्ञान वीचार
असंख सती असंख दातार
असंख सूर मुह भख सार
असंख मोन लिव लाए तार
कुदरत कवण कहा विचार
वारिआ न जावा एक वार
जो तुध भावै साई भली कार
तू सदा सलामत निरंकार।
असंख मूरख अंध घोर
असंख चोर हरामखोर
असंख अमर कर जाहे ज़ोर
असंख गलवढ हत्या कमाहे
असंख पापी पाप कर जाहे
असंख कूड़िआर कूड़े फेराहे
असंख मलेछ मल भख खाहै
असंख निंदक सिर करह भार
नानक नीच कहै विचार
वारिआ ना जावा एक वार
जो तुध भावै साई भली कार
तू सदा सलामत निरंकार।

असंख नांव असंख थाव
अगम अगम असंख लोअ
असंख कह ह सिर भार होय
अखरी नाम अखरी सालाह
अखरी ज्ञान गीत गुण गाह
अखरी लेखण बोलण बाण
अखरा सिर संजोग वखाण
जिन एहे लिखे तिस सिर नाहै
जिव फुरमाए तेव तेव पाहै
जेता किता तेता नाओ
विण नावै नाहीं को थाओ
कुदरत कवण कहां विचार
वारिया ना जावा एक वार
जो तुध भावै साई भलीकार
तू सदा सलामत निरंकार।
भरीअ हत्थ पैर तन देह
पाणी धोते उतरस खेह
मूत पळीती कपड़ होय
दे साबुण लईअ ओहो धोय
भरीअ मत पापा कै संग
ओहो धापे नावै कै रंग
पुनि पापी आखण नाहे
कर कर करणा लिख लै जाहौ
आपै बीज आपे ही खाहौ
नानक हुकमी आवहो जाहौ।
तीरथ तप दया दत दान
जै को पावै तेल का मान
सुणेआ मंनिया मन कीता भाओ
अंतरगत तीरथ मल नाओ
सभ गुण तेरे मै नाहीं कोय
विण गुण कीते भगत न होय
सुअसत आथ बाणी बरमाओ
सत सुहाण सदा मन चावो
कवण सु वेला वखत कवण कवण थित कवण वार
कवण सेरुती माहो कवण जित होआ आकार
वेल ना पाईआ पंडती जे होवै लेख पुराण
वखत ना पाइओ काजिया जे लिखन लेख कुराण
थित वार ना जोगी जाणै रुत माहों ना कोई
जा करता सिरठी कओ साजे आपे जाणे सोइ
किव कर आखा किव सालाही किओ वरनी किव जाणा
नानक आखण सभ को आखे इक दू इक सिआणा
वडा साहिब वडी नाई किता जा का होवै
नानक जे को आपौ जाणै अगै गया न सोहै।
पाताला पाताल लख आगासा आगास
ओड़क ओड़क भाल थके वेद कहन इक बात
सहस अठारह कहन कतेबा असुलू इक धात
लेखा होय त लिखीऐ लेखै होए विणास
नानक वड्डा आखीऐ आपे जाणै आप।
सालाही सालाहे एती सुरत ना पाईया
नदीआ अतै वाह पवह समुंद न जाणीअहे
समुंद साह सुलतान गिरहा सेती माल धन
कीड़ी तुल न होवनी जे तिस मनहो न वीसरहे।
अंत ना सिफती कहण ना अंत
अंत ना करणे देण ना अंत
अंत ना वेखण सुणण न अंत
अंत ना जापे किआ मन मंत
अंत ना जापे किता आकार
अंत ना जापै पारावार
अंत कारण केते बिललाहै
तां के अंत न पाए जाहै
एहो अंत ना जाणै कोय
बहुता कहीऐ बहुता होय
वड्डा साहिब ऊचा थाओ
ऊचे उपर ऊँचा नाओ
एवड ऊचा होवै कोय
तिस ऊचे कओ जाणै सोय
जेवड आप जाणे आप आप
नानक नदरी करमी दात।
बहुता करम लिखिया ना जाय
वड्डा दाता तिल ना तमाय
केते मंगह जोध अपार
केतेया गणत नहीं विचार
केते खप तुटह बेकार
केते ले ले मुकर पाहे
केते मूरख खाही खाहे
केतेआ दूख भूख सदमार
एहे भि दात तेरी दातार
बंद खलासी भाणै होय
होर आख न सके कोय
जे को खाएक आखण पाय
ओहो जाणै जेतीआ मुहे खाय
आपे जाणै आपे देय
आखह सेब केई केय
जिस नो बखसे सिफत सालाह
नानक पातसाही पातसाह।
अमुल गुण अमुल वापार
अमुल वापारीए अमुल भण्डार
अमुल आवह अमुल लै जाहै
अमुल भाए अमुला समाहै
अमुल धरम अमुल दीबाण
अमुल तुल अमुल परवाण
अमुल बख़्शीश अमुल नीसाण
अमुल करम अमुल फुरमाण
अमुलो अमुल आखिया ना जाय
आख आख रहे लिव लाय
आखहे वेद पाठ पुराण
आखह पड़े करह वखिआण
आखह बरमे आखहे इंद
आखह गोपी तें गोविंद
आखह ईसर आखहे सिध
आखह केते कीते बुध
आखह दानव आखहे देव
आखह सुर नर मुन जन सेव
केते आखह आखण पाहै
केते कह कह उठ उठ जाहे
एते कीते होर करेहे
ता आख न सकह केई केए
जेवड भावै तेवड होय
नानक जाणै साचा सोय
जे को आखै बोल बिगाड़
ता लिखीऐ सिर गावारा गंवार।
सो दर केहा सो घर केहा जित बह सरब समाले
वाजे नाद अनेक असंखा केते बामन हारे
केते राग परी स्यों कहीअन केते गावणहारे
गावह तुहनो पौण पाणी बैसंतर
गावै राजा धरम दुआरे
गावह चित गुपत लिख जाणह
लिख लिख धरम विचारे
गावह ईसर बरमा देवी
सोहन सदा सँवारे
गावह इंद इदासण बैठे
देवतिया दर नाळे
गावह सिध समाधी अंदर
गावण साध विचारे
गावणजती सती संतोखी
गावह वीर करारे
गावण पंडित पड़न रखीसर
जुग जुग वेदा नाळे
गावह मोहणीआ मन मोहन
सुरगा मछ पयाले
गावणरतन उपाए तेरे
अड़सठ तीरथ नाळे
गावहे जोध महाबल शूरा
गावह खाणी चारे
गावह खंड मंडल भर पंडा
कर कर रखे धारे
सेई तुधनो गावह जो तुध भावन
रते तेरे भगत रसाले
और केते गावणसे मै चित न आवन
नानक क्या विचारे
सोई सोई सदा सच साहिब
साचा साची नाई
है भी होसी जाए न जासी
रचना जिन रचाई
रंगी रंगी भाती कर कर
जिनसी माया जिन उपाई
कर कर वेखै कीता अपणा
जिव तिस दी वडिआई
जो तिस भावे सोई करसी
हुकम न करणा जाई
सो पातसाहो साहा पातसाहिब
नानक रहण रजाई।
मुंदा संतोख सरम पत झोली
ध्यान की करह विभूत
खिंथा काल कुआरी काया
जुगत डंडा परतीत
आई पंथी सगळ जमाती
मन जीतै जग जीत
आदेस तिसै आदेश
आद अनील अनाद अनाहत
जुग जुग एको भेष।
भुगत ज्ञान दया भंडारण
घट घट वाजह नाद
आप नाथ नाथी सबी जा की
रिध सिध अवरा साद
संजोग विजोग दुए कार चलावहे
लेखे आवहे भाग
आदेस तिसै आदेश
आद अनील अनाद अनाहत
जुग जुग एको भेष।
एका माई जुगत विआई
तिन चेले परवाण
इक संसारी इक भंडारी
इक लाए दीबाण
जिव तिस भावै तिवै चलावै
जिव होवै फुरमाण
ओहो वेखै ओना नदर ना आवै
बहुता एहो विडाण
आदेस तिसै आदेश
आद अनील अनाद अनाहत
जुग जुग एको भेष।
आसण लोए लोए भंडार
जो किछ पाया सूं एका वार
कर कर वेखै सिरजणहार
नानक सचे की साची कार
आदेस तिसै आदेश
आद अनील अनाद अनाहत
जुग जुग एको भेष।
इक दू जीभौ लख होहे
लख होवह लख बीस
लख लख गेड़ा आखीअह
एक नाम जगदीस
एत राहे पत पवड़ीआ
चढ़इहें होए इकीस
सुण गला आकास की
कीटा आई रीस
नानक नदरी पाईऐ
कूड़ी कूड़ै ठीस।
आखण जोर चुपै नह जोर
जोर न मंगण देण ना जोर
जोर ना जीवण मरण ना जोर
जोर न राज माल मन सोर
जोर ना सुरती ज्ञान वीचार
जोर न जुगती छुटै संसार
जिस हथ जोर कर वेखै सोए
नानक उतम नीच ना कोय।
राती रुती थिती वार
पवण पाणी अगनी पाताळ
तिस विच धरती थाप रखी धरम साल
तिस विच जीअ जुगत के रंग
तिन के नाम अनेक अनंत
करमी करमी होए विचार
सच्चा आप सचा दरबार
तिथै सोहन पंच परवाण
नदरी करम पवै नीसाण
कच्च पकाई ओथै पाए
नानक गया जापै जाए।
धरम खण्ड का एहो धरम
ज्ञान खण्ड का आखो करम
केते पवण पाणी वैसंतर केते कान्ह महेस
केते बरमे घाड़त घड़ीअह रूप रंग के वेस
केतीआ करम भूमी मेर केते केते धू उपदेस
केते इंद चंद सूर केते केते मण्डल देस
केते सिध बुध नाथ केते केते देवी वेस
केते देव दानव मुन केते केते रतन समुंद
केतिया खाणी केतीआ बाणी केते पात नरिंद
केतीआ सुरती सेवक केते नानक अंत न अंत।
ज्ञान खण्ड मह ज्ञान परचंड
तिथै नाद बिनोद कोट अनंद
सरम खंड की बाणी रूप
तिथै घाड़त घड़ीऐ बहुत अनूप
ता कीआ गला कथीआ ना जाहे
जे को कहै पिछै पछुताए
तिथै घड़ीअै सुरत मत मन बुध
तिथै घड़ीअै सुरा सिधा की सुध।
करम खण्ड की बाणी जोर
तिथै होर न कोई होर
तिथै जोध महाबल सूर
तिन मह राम रहिआ भरपूर
तिथै सीतो सीता महिमा माहे
ता के रूप न कथने जाहे
ना ओह मरह न ठागे जाहे
जिन कै राम वसै मन माहे
तिथे भगत वसह के लोअ
करह अनंद सचा मन सोए
सच खंड वसै निरंकार
कर कर वेखै नदर निहाल
तिथै खंड मंडल वरभंड
जे को कथै त अंत ना अंत
तिथै लोअ लोअ आकार
जिव जिव हुकम तिवै तिव कार
वेखै विगसै कर वीचार
नानक कथना करड़ा सार।
जत पाहारा धीरज सुनिआर
अहरण मत वेद हथीआर
भओ खला अगन तप ताओ
भांडा भाओ अमृत तित ढाल
घड़ीअै सबद सची टकसाल
जिन कओ नदर करम तिन कार
नानक नदरी नदर निहाल।
पवण गुरू पाणी पिता माता धरत महत
दिवस रात दुए दाई दाया खेलै सगल जगत
चंगिआईआ बुरिआईआ वाचै धरम हदूर
करमी आपो आपणी के नेड़ै के दूर
जिनी नाम धिआया गए मसकत घाल
नानक ते मुख उजले केती छुटी नाळ
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