कबीर केवल राम की तू जिनि छाँड़े ओट हिंदी मीनिंग Kabir Keval Ram Ki Meaning : Kabir Ke Dohe Hindi Arth/Bhavarth Sahit.
कबीर केवल राम की, तू जिनि छाँड़े ओट।घण-अहरनि बिचि लौह ज्यूं, घणी सहै सिर चोट॥
Kabir Keval Ram Ki, Tu Jini Chade Out.
Ghan Aharani Bichi Loh Jyu, Ghani Sahe Sir Chot.
कबीर के दोहे का हिंदी मीनिंग (अर्थ/भावार्थ) Kabir Doha (Couplet) Meaning in Hindi
कबीर साहेब व्यक्ति को आगाह करते हैं की सांसारिकता में मत उलझो, मोह माया में तुमको केवल दुख और संताप ही सहन करने को मिलेगे. यदि इस पीड़ा से मुक्त होना चाहते हो तो हरी के नाम का समीरण करो. साहेब उदाहरण देकर समझाते हैं की जैसे घन (लोहा पीटने के काम आने वाला उपकरण) और हथोडा के बीच चोट लगे वह भी सर पर ऐसे ही सांसारिकता के मायाजाल में फंसे व्यक्ति का हाल होता है. ईश्वर भक्ति ही एकमात्र मार्ग है जो हमें इस जीवन में सफलता दिला सकता है और हमें मृत्यु के बाद मोक्ष भी दिला सकता है। कबीर साहेब कहते हैं कि जो लोग ईश्वर भक्ति को छोड़ देते हैं, वे अपने जीवन में असफल हो जाते हैं। वे इस संसार में दुख और कष्टों का सामना करते हैं।
इस दोहे का संदेश यह है कि हमें ईश्वर भक्ति में अपना जीवन समर्पित कर देना चाहिए, हरी का नाम सुमिरन ही तमाम तरह के दुखों से हमको मुक्ति दिला सकता है। ईश्वर भक्ति ही हमें माया के संताप से मुक्ति दिला सकती है। इस दोहे की व्याख्या इस प्रकार भी की जा सकती है कि इस संसार में हमें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। अगर हम ईश्वर भक्ति में लीन होंगे, तो हम इन चुनौतियों से निपटने में सक्षम होंगे। इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें ईश्वर भक्ति में अपना जीवन लगाना चाहिए। हमें अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कड़ी मेहनत करनी चाहिए।
इस दोहे का संदेश यह है कि हमें ईश्वर भक्ति में अपना जीवन समर्पित कर देना चाहिए, हरी का नाम सुमिरन ही तमाम तरह के दुखों से हमको मुक्ति दिला सकता है। ईश्वर भक्ति ही हमें माया के संताप से मुक्ति दिला सकती है। इस दोहे की व्याख्या इस प्रकार भी की जा सकती है कि इस संसार में हमें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। अगर हम ईश्वर भक्ति में लीन होंगे, तो हम इन चुनौतियों से निपटने में सक्षम होंगे। इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें ईश्वर भक्ति में अपना जीवन लगाना चाहिए। हमें अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कड़ी मेहनत करनी चाहिए।
अतः इस दोहे का मूल भाव है की संसार में यदि हम धन अर्जन, सांसारिक माया जाल में फंसते हैं तो सिवाय दुख दर्द के हमें कुछ भी प्राप्त नहीं होने वाला है. सांसारिकता से हमें केवल संताप और कष्ट ही प्राप्त होंगे. अतः यदि हम सुख चाहते हैं तो संसार के तमाम तरह के बंधनों से मुक्त होकर राम के नाम का सुमिरन ही हमें कष्ट और दुखों से मुक्त कर सकता है. इस संसार के आवागमन से मुक्त होने का यही एक मात्र उपाय है.
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